Uttarakhand Budget 2023 News: ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में चल रहे विधानसभा सत्र के तीसरे दिन बुधवार को पुष्कर सिंह धामी सरकार ने वित्तवर्ष 2023-24 के लिए अपना बजट पिटारा खोल दिया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा पेश वार्षिक बजट को विकास को रफ्तार देने वाला शानदार बजट करार दिया है। अब धामी सरकार के बजट पर विपक्ष की प्रतिक्रिया भी सामने आ गई हैं।
नेता प्रतिपक्ष आर्य ने कहा कि कर्ज में डूबे इस बजट से राज्य के युवाओं, किसानों और आम आदमी को कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
बजट पर बयान जारी कर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा है कि राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-2024 के लिए 76 हजार 592 करोड़ का बजट पेश किया है। यह बजट उधार का बजट है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना निर्माण, रोजगार सृजन जैसे विषयों के लिए कुछ भी नहीं है।
यशपाल आर्य ने कहा कि चिंता की बात यह है कि सरकार के बजट के अनुसार उत्तराखण्ड के ऊपर इस वित्तीय साल के अंत तक 1 लाख 34 हजार 749 करोड़ रु का उधार और अन्य देनदारी हो जाएंगी। आर्य ने कहा कि 2017 तक प्रदेश पर केवल 35 हजार करोड़ का कर्ज और देनदारी थी। जबकि 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद इस साल तक सरकार ने 99 हजार 749 करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है।
कांग्रेस नेता आर्य ने कहा कि इसीलिए उत्तराखण्ड के ऊपर कर्ज राज्य के सालाना बजट के आकार से कहीं अधिक हो गया है। कर्ज और देनदारी को कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी जी0एस0डी0पी0 का 25 प्रतिशत तक रखने का राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफ0आर0बी0एम0) की सीमा को उत्तराखण्ड 2019-2020 में ही लांघ चुका है। इस वित्तीय वर्ष में यह 35 प्रतिशत से अधिक हो जायेगा।
नेता प्रतिपक्ष आर्य ने कहा कि कर्ज में डूबे इस बजट से राज्य के युवाओं, किसानों और आम आदमी को कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
वहीं, वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा पेश पुष्कर सिंह धामी सरकार के वार्षिक बजट पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए भाकपा (माले) नेता इन्द्रेश मैखुरी ने कहा है कि यह बजट केन्द्रीय योजनाओं के प्रचार और शब्दजाल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इन्द्रेश मैखुरी ने कहा कि यह विडंबना है कि नकल विरोधी अध्यादेश का ढिंढोरा बजट में भी पीटा गया है, जिसका बजट से कोई संबंध नहीं है।
बजट में नौकरियों में घोटाले पर नकेल कसने की बात वो सज्जन बजट में उठा रहे हैं, जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रहते विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियां की।
उन्होंने कहा कि नकल विरोधी अध्यादेश नकल पर नकेल कसने से ज्यादा नकल के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर नकेल कसता है, लेकिन बजट से कोई संबंध नहीं होने के बावजूद बजट में उसका गुणगान है।
भाकपा (माले) के राज्य सचिव मैखुरी ने कहा, “यह भी विडंबना है कि बजट में नौकरियों में घोटाले पर नकेल कसने की बात वो सज्जन बजट में उठा रहे हैं, जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रहते विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियां की। इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है कि ऐसे व्यक्ति पर कार्यवाही के बजाय उन्हें वित्त मंत्री के पद से नवाजा गया है और वे राज्य का बजट पेश कर रहे हैं।”
वाम नेता मैखुरी ने कहा कि बरसों-बरस से की जाती शाब्दिक लफ्फाजी- युवा नौकरी मांगने वाला नहीं देने वाला बने- पुनः बजट में दोहराई गयी है। उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि युवाओं की नौकरियों की लूट राज्य सरकार की नाक के नीचे की जा रही है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के लोग शामिल हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर केवल ऋण देने की योजनाएँ ही तजवीज की जा रही हैं।
इन्द्रेश मैखुरी ने कहा कि शिक्षा के नाम पर प्राइमरी विद्यालयों को फर्नीचर उपलब्ध कराने की योजना की घोषणा की गयी है, लेकिन अहम सवाल तो है कि प्राइमरी स्कूलों पर ताला लगना कैसे रुकेगा? इसका इंतजाम क्या होगा, इसका कोई जवाब नहीं है।
उन्होंने कहा कि पॉलीटेक्निक संस्थानों का रैंकिंग फ्रेमवर्क तैयार करने की बात बजट कहता है।लेकिन पॉलीटेक्निक संस्थान बिना शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के चल रहे हैं, जर्जर हो रहे हैं, इनकी रैंकिंग नहीं दशा सुधारने की आवश्यकता है।
मैखुरी ने आगे कहा कि तकनीकी शिक्षा के दूसरे संस्थान- आईटीआई की भी प्रदेश में यही हालत है, वे भी धीरे-धीरे उजाड़ हो रहे हैं। ऐसे में तकनीकी शिक्षा की सुदृढ़ता की बात कोरी लफ्फाजी है।
उन्होंने कहा कि बजट में अनुपूरक पोषाहार कार्यक्रम का जिक्र किया गया है। जमीनी हकीकत यह है कि बीते 01 दिसंबर से आंगनबाड़ी केन्द्रों पर राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत धात्री महिलाओं और आंगनबाड़ी जाने वाले बच्चों को मिलने वाला टेक टु होम राशन बंद हो गया है। अब केवल मंडुवा मिल रहा है, जो आंगनबाड़ी की पर्ची पर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि नंदा गौरा योजना का जिक्र बजट में है, लेकिन जमीनी यथार्थ यह है कि यह छात्रवृत्ति हासिल करने की प्रक्रिया बेहद जटिल बना दी गयी है। जबकि सबके लिए स्वास्थ्य- का नारा टु बजट में लगाया गया है, लेकिन प्रदेश में खास तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खस्ता है और पहाड़ में मेडिकल कॉलेज समेत अधिकांश सरकारी अस्पताल सिर्फ रेफर सेंटर ही हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि को विकास यात्रा का प्राथमिक बिंदु बजट कहता है। लेकिन पर्वतीय कृषि पूरी तरह से तबाह होने के कगार पर पहुंच गयी है। उसके उन्नयन, संवर्द्धन की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। मैदानी क्षेत्रों में भी किसान बदहाल है।
इन्द्रेश मैखुरी ने कहा कि औद्यानिकी के विकास की बात तो कही गयी है, लेकिन उद्यान विभाग की समस्त योजनाएँ तो उसके भ्रष्ट निदेशक के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं, जिन पर सरकार की घोषणा के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।
मैखुरी ने आगे कहा कि वित्त मंत्री के बजट भाषण का बिंदु संख्या 113 कहता है कि “देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, रूड़की, हल्द्वानी, भगवानपुर एवं अल्मोड़ा का मास्टर ड्रेनेज प्लान तैयार करने की कार्यवाही विभिन्न चरणों में गतिमान है।” स्मार्ट सिटी बनाने का ढ़ोल पीटते हुए लगभग एक दशक होने को है। लेकिन शहर कितने स्मार्ट बने यह वित्त मंत्री के बजट भाषण का उक्त बिंदु बता रहा है कि अभी भी राज्य के प्रमुख शहरों का ड्रेनेज प्लान ही बन रहा है।
उन्होंने कहा कि बजट में उद्योगों को प्रोत्साहन और निजी क्षेत्र के औद्योगिक संस्थानों की स्थापना की बात कही गयी है। लेकिन उन उद्योगों के भीतर स्थानीय युवाओं एवं श्रमिकों के हितों का संरक्षण हो, इसकी कोई योजना सरकार के पास नहीं है।
इसका जीता-जागता उदाहरण सितारगंज के सिडकुल की जायडस फैक्ट्री है, जिसके बंदी को राज्य सरकार ने अवैध घोषित किया है, लेकिन ढाई सौ दिन से अधिक बीतने के बावजूद 1200 से अधिक मजदूरों के हितों को संरक्षित करने में राज्य सरकार संरक्षित करने में नाकामयाब रही है। जब सरकार बजट में निजी क्षेत्र के औद्योगिक आस्थानों की स्थापना की बात कह रही है तो श्रमिकों के अधिकारों पर यह हमला और तेज होगा।
उन्होंने कहा कि कुल मिला कर राज्य पर कर्जे का बोझ निरंतर बढ़ रहा है, उससे उबरने की कोई ठोस नीति व दृष्टि सरकार के पास नहीं है और उत्तराखंड सरकार भी केंद्र सरकार की तर्ज पर केवल प्रचार करने और गाल बजाने को ही एकमात्र कार्यभार समझती है।