
देहरादून (पवन लालचंद):
अब इसे चार साल से ज़मीं जमाई कुर्सी के अचानक चले जाने का ग़म-गुबार कहिए या फिर ‘क्या लाए थे क्या लेकर जाएंगे’ वाला वैराग्य भाव कि अपने टीएसआर, जिन्हें कुर्सी जाने के बाद अब टीएसआर-1 कहकर ज्यादा याद किया जाने लगा है, अपने घर का ‘अच्छा ख़ासा’ फ़्रिज़ दान कर आए कोरोनेशन हॉस्पिटल. लेकिन दान करके भी हो रहे हैं ट्रोल!
ठीक किया, वैसे भी कोरोना काल में गर्मी के बावजूद फ्रिज का ठंडा पानी या आइसक्रीम नुक़सानदायक ही है. कम से कम कोरोनेशन हॉस्पिटल में कोरोना से जंग लड़ रहे डॉक्टरों के लिए सहूलियत तो हुई कि मरीजों के दवा-इंजेक्शन रखने को फ्रिज मिल गया.
वो तो भला हो कोरोनेशन के डॉक्टरों/अफसरों का जो कुर्सी जाने के डेढ़ माह गुज़र जाने पर बताया कि हाय! इतना बड़ा हॉस्पिटल और एक छोटा-मोटा, टूटा-फूटा फ्रिज तक नहीं हैं कि दवा-इंजेक्शन रखने को! वरना साहब को सीएम रहते बताया होता तो क्या सूबे-सरकार के मुखिया के साथ साथ चार साल स्वास्थ्य महकमे के बॉस मने! खुद स्वास्थ्य मंत्रीजी रहते क्या इतना भी ना करा पाते!
आखिर फिर चार साल तक सत्रह साल से बीमार स्वास्थ्य महकमे को भला-चंगा बताते-बताते न थकने का फायदा क्या हुआ जब कोरोनेशन को एक फ़्रिज तक दान न कर-करा पाये. चलो तब न जो हो सका वो अब ही सही! ज़ल्दबाजी इतनी थी कि किसका शटर उठवा कर फ्रिज लाते सो अपने घर का ‘अच्छा ख़ासा’ फ़्रिज़ दान कर आए. अब भले दान दक्षिणा के फ्रिज की फोटो मीडिया में चमकाते मैसेज हिन्दी के साथ अंग्रेज़ी में भी अनुवाद कराना न भूले, जाने कौन पढ़ने से चूक जाए!
चलो देर आए पर क्या दुरुस्त भी आए? क्योंकि सोशल मीडिया में यहीं हल्ला है कि भई, टीएसआर-1 कोरोनेशन में घर का ‘अच्छा-ख़ासा’ चलता फ़्रिज दान दवा-इंजेक्शन रखवाने को कर आए याकि टीएसआर-2 को सियासी ठिठुरन का अहसास कराने को ये ‘खेल’ कर आए!
खैर ! वजह जो भी रही हो फिलहाल तो घर का ‘अच्छा-खासा’ फ़्रिज दान करके भी अपने टीएसआर सोशल मीडिया में ज़बरदस्त ट्रोल हो रहे हैं. लीजिए आप खुद देखिए और बताइये भला ये नाइंसाफ़ी नहीं तो और क्या है!