अक्षय कुमार की नहीं फटती! भाषा रचनात्मकता की यही अभिव्यक्ति है तो दादा कोंडके की फिल्में ‘बॉस डीके’ और ‘अंधेरी रात में, दिया तेरे हाथ में’ की भाषा से परहेज़ कैसा?
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