ADDA ANALYSIS मंत्री महाराज ये क्या मांग लिया! ब्यूरोक्रेसी में तो मुख्यमंत्री की ‘जान’ बसती है, आप ‘तोते’ की गर्दन क्यों मांग बैठे धामी से?

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देहरादून: धामी सरकार 2.0 में नंबर 2 पर शपथ लेने वाले कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज या तो बेहद ‘भोले-भाले’ हैं या फिर कतई चतुर राजनेता! वरना भला आज के राजनीतिक दौर में कोई सूबे के सरकार के मुखिया से ऐसी मांग करता है! मंत्री महाराज ने पहली ही कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मांग कर डाली कि बहुत हुआ अब बाकी राज्यों की तरह हम मंत्रियों को भी अपने विभागीय अधिकारियों मसलन सचिव, अपर सचिव आदि की ACR यानी सालाना गोपनीय प्रविष्टि या आसान भाषा में कहें तो प्रमोशन के लिहाज से बेहद अहम कॉन्फ़िडेंशियल रिपोर्ट लिखने का अधिकार दिया जाए।

मंत्री महाराज का दिल मांगे मोर

अब वैसे तो मंत्री महाराज की मांग सौ फीसदी जायज है लेकिन इस दौर ए सियासत में उत्तराखंड का कौन मुख्यमंत्री चाहेगा कि नौकरशाही उनके दरबार की बजाय मंत्रियों के अंगना में सलाम बजाते नजर आएं। अब महाराज कह रहे हैं कि पड़ोसी राज्य यूपी, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़ और बाकी जगह मंत्रियों को अपने सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार है लेकिन उत्तराखंड में ही यह अधिकार नहीं है। वैसे तिवारी राज तक अफ़सरशाही को क़ाबू करने के लिए मंत्रियों को कॉन्फ़िडेंसियल रिपोर्ट लिखने का अधिकार रहा, लेकिन उसके बाद से मंत्री महज मंत्री बनकर रह गए और नौकरशाही ने मुख्यमंत्री दरबार में ही सलाम बजाने का रिवाज स्थापित कर दिया।

त्रिवेंद्र राज में मंत्री महाराज की मांग रही अनसुनी

मंत्री महाराज ने बाकी कैबिनेट सहयोगियों का आह्वान किया है कि वे भी एसीआर के अपने खोये अधिकार को लेकर जागें और मुख्यमंत्री पर दबाव बनाएं। लेकिन मंत्री महाराज भी जानते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार में वे खुद खूब हल्ला काट चुके लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हर बार एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। अब कम से कम नई सरकार बनते ही फिर मंत्री महाराज ने इस मांग को उठाया है लेकिन सीएम धामी क्यों चाहें सचिवालय के चतुर्थ तल से लेकर मुख्य सेवक सदन यानी मुख्यमंत्री आवास में अफसरों की उठक-बैठक में कमी आए!

मुख्यमंत्री क्यों चाहते मंत्री बने रहे ‘काग़ज़ी शेर’ ?

यूं तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में नौकरशाही घोड़ा और सरकार यानी मंत्री-मुख्यमंत्री घुड़सवार बनकर जनता के कामकाज कराएं। लेकिन उत्तराखंड के अब तक के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो कुछेक अपवाद छोड़कर घोड़ा ही घुड़सवार पर सवार होता रहा है। ज्यादा दूर क्या जाना डबल इंजन के प्रचंड बहुमत की राज्य की सबसे मजबूत सरकार यानी त्रिवेंद्र सरकार में जब विधायिका को कार्यपालिका पर हावी रहना था तब भी तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत चार साल के कार्यकाल में अधिकतर नौकरशाही को तवज्जो देते रहे। तब भाजपा कॉरिडोर्स में ही यह चर्चा आम रहती थी कि मुख्यमंत्री अंदर तीन-चार खास अफसरोें की टोली से घिरे रहते थे और बाहर इंतजार में विधायक कुढ़ते रहते थे। जिलों में कप्तान और डीएम की हनक ऐसी थी कि सत्ताधारी दल के विधायक तो छोड़िए मंत्री उनके आगे पानी मांगते थे क्योंकि मुख्यमंत्री का हाथ उनके कंधे पर रहता था। जाहिर है धामी क्यों न चाहेंगे मंत्री ‘मोम की गुड़िया’ बने रहें।

मंत्री नहीं मुख्यमंत्री दरबार में हाज़िरी से बढ़ता अफसरों का वज़न

अक्सर देखा जाता है कि कैबिनेट के इतर मुख्यमंत्री अपनी एक अलग ‘किचन कैबिनेट’ या सलाहकारों की मंडली बनाकर सरकार चलाते हैं। मौजूदा धामी कैबिनेट में भी कितने मंत्री मुख्यमंत्री के मुरीद होंगे और कितनों पर मुख्यमंत्री मेहरबान होंगे, अगर इसका अंदाज लगाना हो तो परेड मैदान के शपथग्रहण समारोह की तस्वीरों को रिवाइंड करके देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों की निगाहें किस ‘समकोण-विषमकोण’ पर जाकर टकरा रही थी मालूम पड़ जाएगा। रही-सही कसर मंत्रियों को विभाग बँटवारा होने के बाद दिख सकती है।

नौकरशाही का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखने की मुख्यमंत्री की चाहत का ही नतीजा रहा कि पिछली सरकार में मंत्री सतपाल महाराज से लेकर मंत्री यशपाल आर्य और मदन कौशिक जैसे दिग्गज अपने विभागीय अधिकारियों से उलझते रहे। मुख्यमंत्री कैसे अफ़सरशाही के सहारे मंत्रियों से खेलते हैं इसी की बानगी थी कि 2017 में मंत्री बनते ही महाराज ने माँगकर आईएएस मीनाक्षी सुंदरम को टूरिज्म विभाग का सचिव बनवाया लेकिन इससे पहले ही मंत्री महाराज और सेक्रेटरी पटरी बिठाते उनका तबादला कर दिया और उसके बाद दलीप जावलकर जैसे अफसर को टूरिज्म विभाग में बिठाकर मंत्री महाराज के साथ कैसा ‘खेला’ हुआ पॉवर कॉरिडोर में कौन नहीं जानता! ऐसे ही कई और मंत्री अफसरों से उलझते रहे थे। यशपाल आर्य और रेखा आर्य का झगड़ा भी रहा।

मंत्रियों पर कितने ‘मेहरबान’ होंगे मुख्यमंत्री धामी

मंत्री और विभागीय सचिव में पटरी न बैठने से विभागीय योजनाएं और नई प्लानिंग तो चौपट हो जाती है। अलबत्ता किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह सुखद स्थिति होती है कि मंत्री फ़्लॉप साबित हो जाए। आखिर कैबिनेट के अधिकतर मंत्री अपने मुख्यमंत्री के लिए अपनी कुर्सी बचाए रखने की एक सम्भावित चुनौती तो होते ही हैं। धामी राज 2.0 में भी सभी मंत्री न सही लेकिन सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल और डॉ धन सिंह रावत जैसे चेहरे मुख्यमंत्री की रेस में धामी के प्रतिद्वन्द्वी रहे ही थे। अब देखना दिलचस्प होगा कि धामी विभागों से लेकर अधिकारियों की किस तरह की फ़ील्डिंग लगाकर इन दिग्गज मंत्रियों पर ‘मेहरबान’ होते हैं!

बहरहाल, मंत्री सतपाल महाराज ने एक वाजिब मांग उठाकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर दबाव बनाने का दांव चल दिया है। अब सवाल है कि कैबिनेट के कितने मंत्री और होंगे जो महाराज की तर्ज पर अपने खोए अधिकार को पाने को लेकर आवाज बुलंद करेंगे?

फ़िलहाल मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल और सौरभ बहुगुणा ने तो समर्थन कर ही दिया है।


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