RajyaSabha Elections: संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की खाली हो रही 56 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव हो रहा है। 27 फरवरी को वोटिंग होनी है जिसके लिए उम्मीदवारों को 15 फरवरी तक नामांकन दाखिल करना है। आज बीजेपी ने अपने राज्यसभा के लिए जिन उम्मीदवारों का एलान किया है, उस लिस्ट में उत्तराखंड से राज्यसभा के लिए प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का नाम शामिल है।
प्रचंड मोदी लहर में बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर चुनाव हार गए महेंद्र भट्ट को जब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया तब भी बहुत लोगों के लिए चौकने का वक्त था और आज एक बार फिर संसद के ऊपरी सदन के लिए नाम तय होने पर बहुतों के लिए स्थिति चौकने वाली ही रही। लेकिन मोदी शाह की मौजूदा दौर की बीजेपी में हो रहे फैसलों से आप अचंभित भी न हों ऐसा तो बीते एक दशक में एकाध बार ही बमुश्किल हुआ होगा।
खैर अब जब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के नाम का एलान हो चुका है तो सवाल है कि इसका पहाड़ पॉलिटिक्स पर आने वाले समय में क्या असर पड़ सकता है। देखा जायेगा तो महेंद्र भट्ट का राज्यसभा जाना प्रदेश की बीजेपी सियासत में तेजी से करवटें लेते नए समीकरणों की ओर साफ इशारा कर रहा है।
सबसे बड़ा असर तो यही कि जिस राज्यसभा सीट के लिए महेंद्र भट्ट के नाम पर मुहर लगी है, उसे दो अप्रैल को सांसद अनिल बलूनी खाली कर रहे हैं। अनिल बलूनी लोकसभा चुनाव की दहलीज पर जीत की हैट्रिक लगाने को पूर्ण आश्वस्त दिख रही बीजेपी के न केवल मीडिया प्रमुख हैं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भी बेहद करीबी व विश्वस्त हैं।इस लिहाज से बलूनी को आगे राज्यसभा में कंटिन्यू न करने का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी पक्के तौर पर उनको लोकसभा की लड़ाई में उतारने का मन बना चुके हैं। सवाल है कि क्या बलूनी को पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से मोदी के सिपाही के तौर पर चुनावी समर में उतारा जाएगा या फिर धर्मनगरी हरिद्वार के लोकसभा क्षेत्र से चुनावी ताल ठोकने को कहा जाएगा। वैसे अगर अनिल बलूनी को इन दोनों में से किसी भी सीट से उतारा गया तो सीटिंग सांसदों और प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके डॉ रमेश पोखरियाल निशंक या तीरथ सिंह रावत के लिए संकट का सबब हो सकता है।
वैसे यह संकट का सबब एक और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भी होगा क्योंकि हरिद्वार से लेकर पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट पर चुनावी ताल ठोकने का मन उनका भी अरसे से है।
दूसरा, महेंद्र भट्ट को राज्यसभा उम्मीदवार घोषित करने से लोकसभा चुनाव को लेकर ही प्रदेश के सियासी समीकरण नहीं बदलेंगे बल्कि महेंद्र भट्ट को TSR जैसे नेताओं के मुकाबले राज्यसभा के लिए तरजीह मिलना दिग्जजों के लिए झटके से कम नहीं। आखिर मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत केंद्रीय पार्टी संगठन या असम के पूर्व सीएम सर्वानंद सोनोवाल या त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देव की तर्ज पर संसद के ऊपरी या निचले सदन में स्थान पक्का करने को प्रयासरत हैं लेकिन अभी तक किसी तरह की उम्मीद उनके हिस्से आती नजर नहीं आई है।
अगर अनिल बलूनी का लोकसभा की लड़ाई में हरिद्वार से उतारा गया तो यह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और चार बार के विधायक मदन कौशिक तथा सीएम पुष्कर सिंह धामी जिनकी पैरवी कर रहे पूर्व मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद के लिए भी सियासी झटके से कम न होगा। किसी ने चुटकी लेते यह तक कह दिया कि अब जब एक और भट्ट (महेंद्र) संसद में होंगे तब मौजूदा समय में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट की 2024 के लोकसभा चुनाव और बाद की सियासी स्थिति देखना भी दिलचस्प है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या कई अन्य राज्यों की तरह संसद सदस्य रहते महेंद्र भट्ट प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भी बने रहते हैं। लेकिन इतना तय हैं कि राज्यसभा के लिए महेंद्र भट्ट के नाम पर मुहर साफ बतलाता है कि मोदी शाह लोकसभा चुनाव 2024 के साथ साथ नए दौर की नई बीजेपी भी गढ़ रहे हैं और इस बदलाव की बयार में कई वरिष्ठ और बुजुर्गवार चेहरे मार्गदर्शक मंडल की तरह धकेल दिए जाएंगे। पुष्कर सिंह धामी, महेंद्र भट्ट और अनिल बलूनी जैसे चेहरों को इस दौर की बीजेपी में पहाड़ पॉलिटिक्स में सत्ता प्रतिष्ठान के नए शिखरों पर देखा जा सकता है।