रामपुर तिराहा कांड, जख्मों पर मरहम! पीएसी के दो दोषी जवानों को उम्रकैद की सजा,सीएम धामी ने कहा- पीड़ितों को मिली बड़ी राहत

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  • रामपुर तिराहा मुज़फ़्फ़रनगर मामले से संबन्धित एक केस में नामित अदालत ने पी.ए.सी. के दो पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास के साथ 1,00,000 रु. के जुर्माने की सजा सुनाई

Rampur Tiraha Case: उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलन के दौरान हुए चर्चित रामपुर तिराहा कांड में पीएससी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ितों एवं उनके परिवारजनों को अदालत के निर्णय से बड़ी राहत मिली है। अपर सत्र न्यायाधीश, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) की विचारण अदालत ने आज रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) मामले से संबंधित एक केस में पी.ए.सी. के तत्कालीन पुलिसकर्मी मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप को आजीवन कारावास के साथ 1,00,000/- रु. के जुर्माने की सजा सुनाई। उन्हें अदालत ने 15 मार्च को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 (2) (जी), 392, 354 एवं 509 के तहत दोषी ठहरा दिया था और सजा पर सुनवाई हेतु आज यानी18 मार्च को निर्धारित की गई थी। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जुर्माने की पूरी राशि पीड़िता को दी जाएगी।

दरअसल, आज अदालत से दो यूपी पुलिस कर्मियों को हुई सजा करीब 30 साल पहले हुए वीभत्स रामपुर तिराहा कांड के जख्मों पर मरहम तो है जी साथ ही यह इस बात की भी तस्दीक है कि अभी तीन दशक बाद भी न्याय की लड़ाई बहुत लंबी है क्योंकि अभी तत्कालीन डीएम, एसएसपी, डीआईजी जैसे वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं हो सका है।

ज्ञात हो कि कि उत्तराखंड संघर्ष समिति ने 02.अक्तूबर 1994 को लाल किला, दिल्ली में एक रैली का आयोजन किया था और उसी रैली में भाग लेने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग बसों में भरकर दिल्ली जा रहे थे। लेकिन उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने रैली में हिस्सा लेने वालों को रोकने के लिए जगह-जगह पुलिस बल तैनात कर पुख्ता इंतजाम कर रखे थे। जब रैली में शामिल होने जा रहे उत्तराखण्डियों का काफिला l 01 अक्टूबर 1994 की रात्रि में रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर के पास पहुंचा तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया और हिरासत में ले लिया। कुल 345 रैलीकर्ताओं को हिरासत में लिया गया, जिसमें से 47 महिलाएं थीं। हिरासत में ली गई महिलाओं के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की बर्बर हरकतें हुई। इसके बाद 2 अक्टूबर को निहत्थे लोगों पर गालियां चला दी गई जिसमें देखते ही देखते कई आंदोलनकारियों की जान चली गई।

इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने प्रारंभिक जांच (पीई) की। सीबीआई द्वारा प्रस्तुत प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर उच्च न्यायालय ने सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। सीबीआई ने दिनाँक 25 जनवरी 1995 को विभिन्न आरोपों पर मामला दर्ज किया कि रैली में हिस्सा लेने वालों को ले जा रही एक बस को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रोका गया एवं बस के शीशे, हेड लाइट और खिड़की के शीशे तोड़ दिए गए तथा तैनात पुलिस कर्मियों ने रैली में शामिल लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया। यह भी आरोप है कि दोनों पुलिसकर्मी पी.ए.सी. के थे, जिन्होंने बस में घुसकर पीड़िता के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार सहित अपराध किए थे।

जांच पूरी होने के बाद, सीबीआई ने दिनाँक 21मार्च 1996 को आरोप पत्र दायर किया। विचारण के दौरान 15 गवाहों से पूछताछ की गई। सीबीआई जांच के बाद अदालत ने दोनों आरोपियों को कसूरवार पाया और उन्हें अब जाकर आजीवन कारावास को सजा सुनाई गई है।

सीएम धामी ने कहा अदालत के निर्णय से पीड़ितों को मिली बड़ी राहत

उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलन के दौरान हुए चर्चित रामपुर तिराहा कांड में पीएससी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ितों एवं उनके परिवारजनों को अदालत के निर्णय से बड़ी राहत मिली है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 2 अक्टूबर 1994 को आंदोलन के दौरान हमारे नौजवानों, माताओं-बहनों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव किया गया,जिसमें कई आन्दोलनकरियों की शहादत हुई। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य है।
गौरतलब है कि रामपुर तिराहा कांड में अदालत ने दोनों आरोपियों पीएससी के जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के साथ ही उन पर 50-50 हजार का जुर्माना भी लगाया है।




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