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“तुम आसमां की बुलंदियों से जरा जल्द उतर आओ, हमें कुछ ज़मीं के मसाइलों पर बात करनी है….”

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कॉमन मैन की क़लम (अभिषेक यादव)

“तुम आसमां की बुलंदियों से जरा जल्द उतर आओ,
हमें कुछ ज़मीं के मसाइलों पर बात करनी है….”

जी हां, बस यही सच रह गया है हमारा और हमारे हुक्मरानों के बीच. फिर से फसल कटाई का मौसम आया है और हर साल की तरह अपनी मेहनत के पसीने को बेमौसमी बारिश की गुस्ताखियों में बहते देखने को किसान फिर से तैयार है. जी तैयार! क्योंकि भारत में किसान जानता है कि कहते भले सब उसे अन्नदाता हो पर उससे नाता कोई नही रखता. चाहे वो समाज का कोई वर्ग हो ,हम सबको हमारी थाली में पहुंची रोटी की खेत से थाली तक की यात्रा शायद ही कभी जानने योग्य लगी हो! हमे लगता है कि बस आटा खत्म हो गया, चलो आटा ले आते है. पर ये ‘आटा’ वास्तव में ‘आता’ कहाँ से और कैसे है यह जानने की फुरसत हम ‘डाटा’ पसन्द लोगों को नहीं !

चलिये आधुनिक शहरी कार्यशैली के माध्यम से समझते हैं. मान लीजिए आप 6 महीने तक दिन रात एक कर किसी प्रेजेंटेशन पर काम करते हैं और प्रेजेंटेशन भी बेहद शानदार बन जाता है. आपके साथी और आपकी कंपनी के अधिकारी भी संतुष्ट नजर आते है, और फिर आता है क्लाइंट के सामने प्रेजेंटेशन का दिन. आप पाते हैं कि जिस कंप्यूटर में आपका प्रेजेंटेशन था वो ब्रेक डाउन हो गया है! ऐसा आपके साथ हर साल लगातार हो और वो भी पूरे दशक तक! उस पर ये भी कि आपको कंप्यूटर ब्रेकडाउन करने वाले का भी पता हो ..!

बस, जो भाव आया न आपको, उसकी तीव्रता को हजार से गुणा कर दीजिये, अब जो महसूस कर रहे उसे भी अधिक परेशान हो जाता गै हमारा किसान का मन, जब वो देखता है कि जो फसल उसने लू के थपेड़ों और सर्द रातों से लड़कर-डटकर उगाई थी, उसकी दुर्गति सरकार हर बार की तरह बड़ी निर्ममता से कर रही है.कहीं अनाज मंडियों में तिरपाल नहीं, कहीं शेड नहीं, कहीं गोदाम नहीं ,कहीँ कोई मानक फसल खरीद प्रणाली नहीं!ये सब उस देश में जहां, अगर क्रिकेट मैच में मैदान भीग जाए तो राष्ट्रीय अपमान जैसा हो जाता है! हम शायद कुछ जरूरत से ज्यादा अक्लमंद हो गये हैं! सोचिये ऐसा और कौन सा जीव होगा धरा पर जिसे अपने भोजन से ज्यादा अपने मनोरंजन की फिक्र हो!

किसान को खेती में प्रोत्साहित नही कर सकते, किसान को फसल का सही और समय पर दाम भुगतान नही कर सकते, किसान को लोन देना मुश्किल और वसूलना आसान बनाये रख सकते हैं. तुर्रा ये कि आने वाली सदियों की प्लानिंग कर सकते हैं, इससे ज्यादा हास्यास्पद बात शायद हो ही नहीं सकती ….!

नीतिकारों और नियंताओं ने अगर जल्दी किसानों को अपनी प्राथमिक सूची में नही रखा, तो जान लीजिये आपके बाग-बग़ीचे में फूल तो होंगे पर रसोई में आटा नहीं!अगली बार जब बेमौसमी बरसात देख के पकोड़े खाने का मन करे तो एक पल उस किसान के बारे में भी सोचियेगा जिसकी महीनों की मेहनत से तैयार फसल सरकार की बेरहम और निर्लज लापरवाही के चलते खुले आसमान के नीचे हैं…और बादलों की हर गरज उसके रोंगटे खड़े कर दे रही है. ‘डाटा’ उपलब्धता की फ़िक्र करने वाले हम लोगों को जाने और कितना वक्त लगेगा यह समझने में की ‘आटा’ डाउनलोड नहीं होता….!


(लेखक समाज अध्येता, मनोविश्लेषक एवं स्वतंत्र चिंतक हैं, जीवन यात्रा चक्र का मौजूदा पड़ाव फिलहाल चंडीगढ़ को बना रखा है)

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