देहरादून: चारधाम यात्रा को लेकर पुष्कर सिंह धामी सरकार एक तरफ दावे कर रही है कि वे जल्द से जल्द चाहते हैं कि सीमित चारधाम यात्रा शुरू हो ताकि राज्य के एक बड़े तबके की रोज़ी-रोटी का रास्ता खुल सके। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि राज्य सरकार पूरे कोविड गाइडलाइंस का पालन करते हुए
सीमित चारधाम यात्रा शुरू कराना चाहती है और इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट में SLP यानी स्पेशल लीव पिटीशन दायर की है। अब यह तो रहा मुख्यमंत्री धामी और सरकार का सबके सामने जोर-शोर से रखा जा रहा पक्ष लेकिन हकीकत क्या है यह भी जान लीजिए।
दरअसल नैनीताल हाईकोर्ट में कोविड चुनौती के मद्देनज़र राज्य की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई याचिकाओं की एक साथ चल रही सुनवाई है और कोर्ट ने जून आखिर में चारधाम यात्रा पर सरकार की तैयारियों को नाकाफ़ी मानते हुए यात्रा पर रोक लगा दी थी। इसके बाद जुलाई के शुरू में धामी सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख करती है और दावा करती है कि उसकी तैयारियाँ पुख़्ता है और सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण उसे मिलेगा और वह जल्द से जल्द चारधाम यात्रा शुरू कराएगी। लेकिन सरकारी की सुप्रीम कोर्ट में कमजोर पैरवी का हाल देखिए कि करीब एक माह बाद भी सरकार अपना मामला सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट तक नहीं करा पाई है। भले कोविड के चलते सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग कठिन हो रखी है लेकिन क्या एक सरकार इनकी बेबस और लाचार है कि लाखों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़े मसले, जैसा खुद सरकार भी मानती है, की लिस्टिंग नहीं करा पा रही। क़ानून के जानकार इसे सरकार की कमजोर पैरवी के साथ साथ चारधाम यात्रा पर सीएम धामी और सरकार की मंशा पर संदेह जता रहे हैं कि खुद राज्य सरकार चारधाम यात्रा शुरू कराना भी चाहती है या नहीं!
विधिक जानकारों का कहना है कि सरकार सॉलिसिटर जनरल की मदद ले सकती थी और ओपन कोर्ट में जाकर भी लिस्टिंग के प्रयास कर सकती थी लेकिन सरकार की तरफ से चारधाम यात्रा जैसे गम्भीर विषय पर लचर पैरवी होती दिख रही है। राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ऐसे पहुँची है जैसे कोई साधारण याचिका लेकर कोई आम आदमी पहुँचा हो!
जबकि ऐसा नहीं कि सरकार हमेशा ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करती है। मुख्यमंत्री रहते जब त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश से CBI जाँच की तलवार लटक गई थी, तब राज्य सरकार ने इसी कोविड काल में सुप्रीम कोर्ट तक ऐसी दौड़ लगाई कि दो दिन में ही HC आदेश पर रोक लग गई थी।
सवाल है कि अगर वाक़ई राज्य की धामी सरकार चारधाम रूट के लाखों लोगों की रोजी-रोटी को लेकर रास्ता निकालने को गंभीर है तब पूरी ताक़त के साथ देश की शीर्ष अदालत में पैरवी क्यों नहीं की जा रही। या फिर जूनियर वकीलों के हवाले एसएलपी कर जहाँ आए दिन की हाईकोर्ट से लग रही फटकार से बचना चाह रही और चारधाम यात्रा को लेकर कोविड प्रोटोकॉल के तहत कठिन तैयारियों की चुनौती से भी बचे रहना चाहती है। आख़िर अगस्त चल रहा है और बमुश्किल कितने दिन और रह गए इस साल के चारधाम यात्रा सीज़न के!
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