देहरादून: तीन कृषि बिलों के खिलाफ दिल्ली के तीन तरफ बॉर्डर पर नौ महीनों से जारी किसान आंदोलन की आंच अब पश्चिम बंगाल के बाद यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में बीजेपी को अपनी चपेट में लेने की तैयारी में हैं। किसान नेताओं ने पांच सितंबर को मुज़फ़्फ़रनगर में पांच लाख किसानों की राष्ट्रीय महापंचायत बुलाई है जिसमें 2022 में यूपी और पंजाब के साथ साथ उत्तराखंड में होने वाले चुनावों को लेकर बीजेपी के खिलाफ प्रचार अभियान का ऐलान होगा।
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा बुलाई इस महापंचायत में उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कैसे कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और आम आदमी को बीजेपी के खिलाफ लामबंद किया जाए इसे लेकर बड़ा रणनीतिक ऐलान किया जाएगा। दरअसल बीजेपी की चुनावी संभावनाओं पर किसानों का विरोध यूपी,खासकर पश्चिमी यूपी में ख़ासा असर डाल सकता है। पंजाब में अकालियों के छिटकने के बाद बीजेपी के लिए चुनावी लड़ाई कठिन हो चुकी है, पर यूपी-उत्तराखंड में पार्टी की बड़े बहुमत की सरकारें है लिहाजा वह नहीं चाहेगी कि यहाँ सत्ता हाथ से खिसके।
यही वजह है कि पार्टी किसान आंदोलन की काट में आम किसान तक पहुँचने का दम भर रही लेकिन उसके सामने पहाडश जैसी चुनौती नजर आ रही। वहीं उत्तराखंड की सत्ता का पहाड़ चढ़ने के लिए बीजेपी को हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर का मैदान बचाना होगा जहां 2017 में उसे प्रचंड सफलता मिली थी। आलम यह था कि उत्तराखंड की इस किसान पट्टी में बीजेपी की आँधी में कद्दावर हरीश रावत सिटिंग सीएम होकर दो जगह से बुरी तरह हार गए। लेकिन किसान आंदोलन के चलते अबके सियासी फ़िज़ा बदली हुई लग रही है।