- उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस
- कांग्रेस हाईकमान ने राज्य में नियुक्त किए पर्यवेक्षक
- जिला स्तर, विधानसभा और लोकसभा स्तर पर नियुक्त किए पर्यवेक्षक
- उत्तराखंड में कांग्रेस प्रत्याशी चयन में भी बीजेपी से बाजी मारने की तैयारी में
- कैंपेन चीफ हरीश रावत ने बताया इस बार कब तक बांट दिए जाएंगे टिकट
देहरादून/ऊधमसिंहनगर: 22 Battle में सत्ताधारी बीजेपी पर खुद तो इक्कीस साबित करने निकली कांग्रेस नामांकन के आखिरी दिन तक टिकट बांटने की अपनी परिपाटी के उलट इस बार चुनाव से काफी पहले 70 की 70 विधानसभा सीटों में पंजे के पराक्रमी उतारने जा रही है। कांग्रेस हाईकमान ने शनिवार देर रात्रि विधानसभा-लोकसभा और जिला स्तर पर ऑब्ज़र्वर घोषित कर दिए और अब विधानसभा के दावेदारों पर फाइनल फीडबैक लेने का काम शुरू किया जाएगा। वैसे पार्टी इंटरनल सर्वे कराकर 70 सीटों पर जमीनी संग्राम का खाका तैयार कर चुकी है। अपने इंटरनल सर्वे के संकेत पॉजीटिव पाकर कांग्रेस बाइस बैटल को लेकर और संजीदा हो गई है। प्रभारी देवेन्द्र यादव किसी भी क़ीमत पर स्थानीय स्तर पर कांग्रेस में छिड़े क्षत्रपों के कैंप वॉर से पार्टी के भविष्य की चुनावी संभावनाओं पर चोट न हो इसलिए लगातार हरदा और प्रीतम कैंप के संपर्क व मॉनिटरिंग बनाए हुए हैं।
अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 26 अक्तूबर को प्रदेश में आई आपदा तथा पार्टी की चुनावी तैयारियों पर मंथन को उत्तराखंड नेताओं को दिल्ली बुला लिया है। इस बैठक में राज्य के हालात और कांग्रेस की संभावनाओं को लेकर रणनीति बनेगी। इसी के साथ पार्टी की तैयारी है कि परिपाटी के उलट समय रहते टिकट बाँटे जाएँ। शनिवार को इसके साफ संकेत हरीश रावत ने भी दे दिए।
पूर्व सीएम और कांग्रेस के कैंपेन कमांडर हरदा ने कहा है कि कांग्रेस दिसंबर तक प्रत्याशियों के टिकट फाइनल कर देगी। हरीश रावत ने कहा कि कांग्रेस संगठन में जल्दी टिकट बँटवारे को लेकर कई दौर का मंथन हो चुका है और पार्टी रणनीतिकारों की कोशिश है कि समय रहते टिकट बांट दिए जाएं ताकि उम्मीदवारों को जनता में जाकर अपनी बात कहने का पर्याप्त समय मिल सके। हरदा ने एक बार फिर दोहराया कि बाग़ियों की पार्टी में वापसी होगी लेकिन पार्टी की रीति-नीति और चुनावी संभावनाओं के अनुरूप ही एंट्री होगी।
जाहिर है कांग्रेस टिकट बँटवारे के झगड़े को इस बार जल्दी सुलझा लेना चाहती है ताकि आखिरी समय की बगावत और भीतरघात के डैमेज का कंट्रोल किया जा सके। लेकिन कई सीटों पर बाग़ियों के आने न आने को लेकर जो सियासी हालात हैं और जिन सीटों पर पार्टी की स्थिति बेहतर कमजोर है, तब टिकट पर जल्दी फैसला करना कठिन चुनौती भी हो सकता है।