देहरादून: चुनावी दहलीज़ पर खड़े उत्तराखंड में अब कर्मचारी हड़ताल दस्तक देने जा रही है। 18 सूत्रीय मांगों को लेकर चरणबद्ध आंदोलन चला रही उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति 26 अक्तूबर यानी कल से बेमियादी हड़ताल पर जा रही है। इसे लेकर आज यानी सोमवार को समीक्षा बैठक भी हो रही है। बैठक में 26 अक्तूबर से शुरू हो रही अनिश्चितकाल हड़ताल पर मंथन होगा और सरकार के स्तर पर संवाद की स्थिति व आंदोलन की समीक्षा की जाएगी।
सोमवार को सद्भावना भवन यमुना कॉलोनी में समन्वय समिति की बैठक बुलाई गई है। बैठक में सभी जिलों और घटक संघों के पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। पिछले दिनों कुमाऊं में दो दिन तक हुई मूसलाधार बारिश से आई आपदा के मद्देनज़र समन्वय समिति ने सभी जिलों में अपने पदाधिकारियों को जनता की हरसंभव मदद करने का आह्वान किया है। समिति पदाधिकारियों का कहना है कि आपदा की इस घड़ी में समिति जनता के साथ है। इसके साथ ही समिति ऐसे वक्त में हड़ताल नहीं करना चाहती लेकिन सरकार को भी सोचना होगा। प्रदेश के कार्मिकों की न्यायोचित जायज मांगें सालों से पेंडिंग हैं उन पर एक्शन की दरकार है।
समन्वय समिति का आरोप है कि शासन स्तर पर आलाधिकारियों के साथ कई दौर की बैठक में सहमति बन जाने के बावजूद शासनादेश जारी नहीं हो पाता जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। समिति पदाधिकारियों की शिकायत है कि जब आश्वासन दर आश्वासन मिलें और उन पर एक्शन न हो तो इससे प्रदेश का कर्मचारी वर्ग अपने आप को ठगा सा महसूस करता है। साथ ही इससे शासन में बैठे सक्षम अधिकारियों को लेकर प्रदेश के कार्मिकों में अविश्वास की भावना भी पैदा होती है।
समन्वय समिति ने माँग की है कि राज्य सरकार पुरानी एसीपी व्यवस्था बहाली से लेकर गोल्डन कार्ड, प्रमोशन में शिथिलीकरण, पुरानी पेंशन बहाली, एसीपी में पदोन्नति के समान चरित्र पंजीकाओं को देखे जाने की व्यवस्था समेत 18 सूत्रीय मांगों पर गंभीरता से विचार कर शासनादेश जारी करें। समन्वय समिति ने कहा है कि ऐसा करने से प्रदेश के कार्मिकों के बढ़ते आक्रोश से पैदा हुई अनिश्चितकालीन हड़ताल की आपात स्थिति को टाला जा सकता है। समिति ने कहा है कि अगर सरकार 25 अक्तूबर यानी आज तक आंदोलित कार्मिकों की मांगों पर ठोस निर्णय नहीं लेती है, तो समन्वय समिति से जुड़े सभी 10 मान्यता प्राप्त परिसंघों के समस्त कर्मचारी व अधिकारी 26 अक्तूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने को बाध्य होंगे।
जाहिर है चुनाव सिर पर है और कुमाऊं में आई आपदा ने धामी सरकार के लिए चुनौती कई गुना बढ़ा दी है अब अगर कार्मिक अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए सड़कों पर उतर आते हैं तो इससे संकट बढ़ जाएगा। सवाल है कि क्या आज सरकार और आंदोलनरत कार्मिकों में कोई सुलह का रास्ता निकलेगा?