Sunday ADDA Analysis: …तो धामी सरकार 2.0 के असल ‘महाराज’ सतपाल ही हैं! CM धामी से लेकर पूर्व CM हरदा तक हुए मुरीद

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देहरादून: दो दिन पहले सूबे की सियासत में नुमाया हुई पूर्व सीएम हरीश रावत और धामी सरकार में नंबर-2 समझे जाने वाले कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की मुलाकात की तस्वीरें कई पुराने अफ़साने ताजा कर गई हैं। यह तस्वीर बताती है कि कांग्रेस में राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे सतपाल महाराज और हरीश रावत में लंबी गुफ़्तगू होना नए दौर की सियासत में इन दो दिग्गजों के बीच बरसों से जमी बर्फ के पिघलने का संकेत है। साफ संकेत इस बात का भी कि लगातार दो विधानसभा और इतने ही लोकसभा चुनाव हारकर उत्तराखंड कांग्रेस और पार्टी के शीर्ष नेता हरीश रावत जंग के मैदान में इस तरह से लहुलुहान हो चुके हैं कि अब रिकवरी आसान नहीं होती दिख रही।


यही वजह है कि हरदा भी बदले सियासी माहौल में कदम पीछे खींचकर अपने धुर विरोधियों से दोस्ताना होना चाह रहे हैं। ये अलग बात है कि लगातार चौथी चुनावी शिकस्त के बाद भी हरदा और प्रीतम के दो कैंपों में बंटी कांग्रेस एक छत के नीचे बैठकर हार के कारणों की समीक्षा रस्म अदायगी से आगे बढ़कर नहीं कर पा रहे हैं। बहरहाल आज बात धामी सरकार 2.0 में सतपाल महाराज की बढ़ती ताकत की करते हैं।

23 मार्च को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुआई में धामी मंत्रिमंडल ने पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। उसके बाद विभाग बँटवारे से पहले ही कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से विभागीय सचिवों की ACR लिखने का अधिकार मांग कर अपने इरादों का इज़हार कर दिया था। दरअसल, सतपाल महाराज को प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का भारी समर्थन हासिल है लेकिन पिछली त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में महाराज को ‘डाउन’ करने का खेल खूब चलता रहा।

इसी से आहत महाराज ने बाइस बैटल में चुनावी ताल ठोकने से इंकार कर दिया जिसके बाद भाजपा आलाकमान ने हालात की गंभीरता को भांपते हुए उनको मोर्चे पर उतारने में कामयाबी हासिल की। महाराज को चुनाव लड़ने के लिए राजी करने की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि ठीक चुनाव से पहले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य अपने विधायक पुत्र संजीव आर्य के साथ भाजपा छोड़कर कांग्रेस में घर वापसी कर गए। फिर दूसरे कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत भी कांग्रेस लौट गए, तो पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज जैसे चेहरों को लेकर भाजपा नेतृत्व पहले से ज्यादा संजीदा हो गए।

यही वजह है कि जहां विजय बहुगुणा के पुत्र और सितारगंज से दोबारा जीते सौरभ बहुगुणा को मंत्री बनाया गया, वहीं सतपाल महाराज के पुराने विभाग लोक निर्माण विभाग, पर्यटन, सिंचाई एवं लघु सिंचाई,जलागम प्रबंधन, संस्कृति और धर्मस्व विभाग रिटेन करते हुए उनको पंचायती राज और ग्रामीण निर्माण जैसे नए अहम मंत्रालयों का ज़िम्मा भी सौंप दिया।

जाहिर है देवभूमि उत्तराखंड में टूरिज्म जैसे विभाग जहां राज्य की आर्थिकी की रीढ़ हैं तो PWD और पंचायती राज और ग्रामीण निर्माण जैसे सड़क निर्माण और सूबे के इंफ़्रास्ट्रक्चर को ताकत देने वाले तमाम विभागों का सतपाल महाराज के पास होना साबित करता है कि न केवल भाजपा आलाकमान का महाराज को वरदहस्त हासिल है बल्कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बखूबी जान चुके हैं कि महाराज को साथ लिए बिना इस सरकार को चलाना आसान नहीं रहने वाला है। लिहाजा सीएम रेस में प्रतिद्वन्द्वी रहे महाराज को मुख्यमंत्री धामी ने अहम विभाग देकर खुश रखना ही बेहतर समझा है।

जाहिर है सरकार के ग्रोथ इंजन को गति देने वाले अहम विभाग संभाल रहे मंत्री महाराज की इसी बढ़ी ताकत को पूर्व सीएम हरीश रावत भी पहचान चुके हैं। वरना एक जमाने में हरदा के सीएम बनने के विरोध में महाराज ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली थी और रावत ने भी मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराज की पत्नी अमृता रावत को अपने मंत्रिमंडल से हटा दिया था। अब बदले हालात में मंत्री महाराज की बढ़ती ताकत की चर्चा राजनीतिक गलियारे में खूब हो रही है। ऐसे समय जब कद्दावर हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य भी भाजपा से जा चुके हैं, तब मंत्री महाराज पहले से बहुत ताकतवर बनकर उभरे हैं। यानी भले महाराज मुख्यमंत्री बनने से चूक गए हों लेकिन सरकार के असल पॉवरफुल ‘महाराज’ वहीं हैं, तभी तो धामी से लेकर हरदा तक सब उनके मुरीद हुए जा रहे।


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