देहरादून: 23 मार्च को परेड मैदान में शपथ के बाद से ही शुरू हुआ सस्पेंस कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहां से उपचुनाव लड़ेंगे?, अब खत्म हो चुका है। चंपावत से चुनाव जीते कैलाश गहतोड़ी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सबसे पहले सीट छोड़ने का ऐलान किया था और गुरुवार को उन्होंने स्पीकर ऋतु खंडूरी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद सीएम धामी ने चंपावत जिले में स्थापित गोरक्षनाथ धाम पहुंचकर जीत की मन्नत माँगी। जाहिर है चंपावत का उपचुनाव जीतना सीएम धामी के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि खटीमा की हार के बावजूद चीफ मिनिस्टर की शपथ लेने के बाद अब छह माह के भीतर उनको विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी। लेकिन भाजपा या मुख्यमंत्री धामी से कहीं ज्यादा बड़ी अग्निपरीक्षा कांग्रेस की होनी है।
हालाँकि कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने ताल ठोकी है कि पार्टी चंपावत में चुनाव जीतने के इरादे लेकर लड़ेगी। लेकिन दावा ठोकने से आगे बढ़कर जमीनी स्तर पर खेमेबाज़ी और अंदरूनी कलह में उलझी कांग्रेस के लिए मौजूदा हालात में चुनावी जंग जीतना मतलब खड़े पहाड़ पर बिना सहारे चढ़ाई करने जैसा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस न केवल लगातार दूसरा विधानसभा चुनाव बुरी तरह से हार चुकी है बल्कि हार से कार्यकर्ता पूरी तरह हताश है और नेताओं में अध्यक्ष-सीएलपी लीडर बनने को लेकर शुरू हुई सिर-फुटौव्वल नई नियुक्तियो के बाद चरम पर हैं।
पुष्कर सिंह धामी ने लड़ने-भिड़ने की राजनीति की बजाय सकारात्मक और सुरक्षित सियासी रास्ता अपनाकर खंडूरी राज और बहुगुणा राज में विरोधी दल के विधायक को पटाकर सीट खाली कराने की परिपाटी से दूरी बनाई है। वरना सीएम धामी के सामने कम से कम दो कांग्रेसी विधायक अपनी सीट की क़ुर्बानी देने को तैयार थे। हरदा के बेहद करीबी धारचूला विधायक हरीश धामी तो नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष की रेस में पिछड़ने के बाद इतने आहत-आक्रोशित हो बैठे कि क्षेत्र के विकास की चाहत में सार्वजनिक तौर पर सीएम के लिए अपनी सीट ऑफर कर बैठे थे। एक विधायक और थे जो कारोबारी हितों की चिन्ता में सीएम के लिए सीट छोड़ने को लालायित बताए जा रहे थे। खैर सीएम धामी ने अपनी पार्टी के विधायक की सीट खाली कराना बेहतर समझा है।
धामी ने जिस चंपावत सीट से उपचुनाव लड़ने की ठानी है, वह सीट आज भले लगातार दूसरी बार चुनावी जीत के चलते भाजपाई गढ़ प्रतीत हो रही हो लेकिन इस क्षेत्र में पूर्व सीएम हरीश रावत के राजनीतिक प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है। पिछले पांच विधानसभा चुनावों में दो बार मोदी सूनामी सहित कुल तीन बार भाजपा और दो बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। सवाल है कि क्या लगातार चुनावी शिकस्त खा रहे हेमेश खर्कवाल हार की हैट्रिक से बचने के लिए धामी की धमक रोक पाएंगे? या फिर जिस तरह की खबरें आ रही हैं कि मुख्यमंत्री का मुकाबला करने की बजाय खर्कवाल रास्ते से हट जाएंगे? अगर ऐसा होता है तो क्या हरदा यहां से चुनावी ताल ठोकेंगे या फिर नए चेहरे को आगे कर चीफ मिनिस्टर को उपचुनाव में वॉक ऑवर देने की पटकथा लिख दी जाएगी?
जाहिर है नए नवेले कांग्रेस प्रदेश अघ्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के लिए परीक्षा की घड़ी आ गई है। अगर कांग्रेस नेतृत्व की यह नई जोड़ी पूरी मजबूती के साथ चुनावी जंग में उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाती है तो 2024 की जंग के अंजाम का अहसास इसी उपचुनाव से हो जाएगा।