- क्यों नशा इस राज्य में प्रमुख मुद्दा नहीं बन पा रहा है…?
- 2021 में राज्य में हर दिन औसतन नौ नशे के तस्करों को पुलिस ने गिरफ्तार किया
- नवंबर 2021 तक ही तकरीबन 16 करोड़ रूपये से अधिक मूल्य के नशीले पदार्थों की बरामदगी है पुलिस के नाम
देहरादून (पंकज कुशवाल): उत्तराखंड राज्य में बीते विधानसभा चुनाव के दौरान सशक्त भू कानून का निर्माण, पलायन रोकने, देवस्थानम् बोर्ड को रद करने, गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने जैसे मुद्दे सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक छाए रहे। इनमें से कुछ मुद्दों पर राज्य सरकार ने आगे कदम बढ़ाए, कुछ पर पीछे कदम खींचे तो कुछ मुद्दों को फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। लेकिन, सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक छाई चर्चा में उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या नशा तमाम तरह के मुद्दों पर बहसबाज़ी के बरक्स विमर्श का विषय नहीं बन सका है।
उत्तराखंड राज्य में नशामुक्ति आंदोलनों का इतिहास बेहद पुराना है। पृथक पर्वतीय राज्य की मांग के समानांतर ‘नशा नहीं रोजगार दो’ जैसे आंदोलन के साथ हजारों पहाड़वासी सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे थे।
राज्य गठन आंदोलन के चरम से भी पूर्व पहाड़ कई बड़े नशा विरोधी आंदोलनों का गवाह बना। करीब 100 साल पहले पैदा हुई दीपा नौटियाल उर्फ टिंचरी माई से शायद ही कोई उत्तराखंडवासी वाकिफ न हो। 19 साल की उम्र में विधवा होने वाली दीपा नौटियाल ने संन्यास लेने के बाद सामाजिक क्षेत्र में खूब काम किया लेकिन उन्हें प्रसिद्धि तब पहाड़ में नशे के लिए प्रयोग किए जाने वाले टिंचरी की दुकान फूंक कर मिली और यहीं से संन्यास के बाद दीपा नौटियाल से ईच्छागिरी माई को नया नाम मिला टिंचरी माई। टिहरी माई की प्रसिद्धि का यह आलम था कि पहाड़ में जगह-जगह महिलाओं ने खुद ही आगे बढ़कर शराबबंदी के दौरान छोटे-छोटे कस्बों में पहुंच बना चुकी टिंचरी के खिलाफ आवाज बुलंद की।
आज फिर से इस राज्य को एक टिंचरी माई की जरूरत दिख रही है। बाहरी राज्यों से नशे की आपूर्ति और राज्य के भीतर ही नशे के उत्पादन पर कानून-व्यवस्था तमाम कोशिशों के बाद भी रोक लगाने में सफल नहीं हो पा रहा है। हालांकि, उत्तराखंड पुलिस को सोशल मीडिया पर फॉलो करने वाले भी जानते हैं कि शायद ही कोई दिन हो जब राज्य के किसी न किसी हिस्से में कोई न कोई नशा तस्कर नशे की खेप के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ता है।
बीते साल 2020 में नवंबर महीने तक उत्तराखंड पुलिस के हत्थे 1908 नशे के तस्कर चढ़े थे। यानी इस छोटे से राज्य में हर दिन पुलिस औसतन 6 नशे के तस्करों को गिरफ्तार कर रही थी। उन 11 महीनों में राज्य की पुलिस ने करीब 16 करोड़ रूपये से अधिक कीमत का नशा बरामद किया। इस दौरान 260 किलो चरस बरामद की गई यानी हर दिन औसतन 1.28 किलोग्राम, तो 16 किलो स्मैक बरामद किया गया यानी हर दिन औसतन 47 ग्राम। वहीं नशे की गोलियों की बड़ी खेप बरामद हुई, इन ग्यारह महीनों में 22,346 गोलियां बरामद हुई यानी हर दिन औसतन 66 गोलियां तो नशीले कैप्सूल 18,061 बरामद किए गए यानी 53 कैप्सूल हर दिन, तो नशीले इंजेक्शन 9272 बरामद किए गए यानी हर दिन औसतन 27 इंजेक्शन।
हालांकि, पुलिस भी मानती है कि सिर्फ सटीक सूचना के आधार पर ही नशे की खेप बरामद की जा सकती है। ऐसे यह संभव है कि सैकड़ों करोड़ की कीमत का नशा राज्य में हर छोटे बड़े कस्बे तक पहुंच रहा है। जहां स्मैक, नशीली गोलियां, नशीले इंजेक्शन मैदानों से पहाड़ों की तरफ पहुंच रहे हैं तो पहाड़ों से भी चरस की बड़ी खेप मैदानी इलाकों तक पहुंचती है।
उत्तराखंड में नशे के बढ़ते प्रचलन को लेकर जिस तरह से उच्च न्यायालय ने संवेदनशीलता दिखाई है, वह कायदे से राज्य सरकार को दिखानी चाहिए थी। साल 2019 में उत्तराखंड हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की पहल पर उत्तराखंड राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने राज्य में नशे के बढ़ते चलन के खिलाफ ‘संकल्प नशामुक्त देवभूमि अभियान’ के तहत व्यापक स्तर पर कार्यक्रम चलाए। इसके तहत सभी 13 जिलों में जिलों और तहसील स्तर पर समितियों का गठन किया गया। ये समितियां नशे के गिरफ्त में आए बच्चों के इलाज, काउंसलिंग, पुनर्वास सहित भांग, डोडा इत्यादि की खेती और दुकानों में प्रतिबंधित नशे की दवाओं की बिक्री पर अंकुश लगाने सहित कई कार्य करा रही है।
इसके तहत सभी 23 जिलों में जिला एवं तहसील स्तर पर स्पेशल टीम गठित की गईं हैं, जिनमें न्यायिक अधिकारियों सहित तहसीलदार, पुलिस इंस्पेक्टर, एसडीएम, पैरा लीगल वॉलेंटियर्स, एनजीओ आदि शामिल हैं। इसके अलावा नैनीताल में नैनीताल और रामनगर में दो जिला स्तरीय टीमें भी हैं। ये टीमें विभिन्न विद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों को नशे के खिलाफ जागरूक करने, उनके अभिभावकों को बच्चों को नशे से बचने की टिप्स देने के कार्य करती हैं।
नशा और अपराध एक-दूसरे के पर्याय बन जाते हैं। बीते सालों में अखबारों में छपी खबरों को आधार माना जाए तो देहरादून शहर में ही गले से सोने की चैन झपटने, दुकानों में लूट, मोबाइल झपटने के मामलों में जिन युवा अपराधियों की गिरफ्तारी हुई है उनमें से हर दस में से नौ मामलों में अपराधी युवा नशे की गिरफ्त में था। हालांकि, आंकड़ों के हिसाब से इसकी तस्दीक करना एक मुश्किल काम है लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों को इसका आधार माना जाए तो इस बात की तस्दीक हो जाती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। पहाड़, पर्यावरण और सामयिक विषयों पर निरंतर लेखन कर रहे हैं। विचार निजी हैं।)