दृष्टिकोण (आनंद रावत): पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र और कांग्रेस के युवा नेता आनंद रावत लगातार राज्य के समक्ष चुनौतियों को लेकर सोशल मीडिया के जरिए अपना नजरिया रख रहे हैं। कई बार सोशल मीडिया पर ही आनंद अपने पिता हरीश रावत से भावनात्मक और राजनीतिक मसलों पर संवाद करते हैं। इस बार उन्होंने राज्य खासकर कुमाऊं क्षेत्र की कुछ ज्वलंत समस्याओं को लेकर अपनी बात तर्कों के साथ रखी है।
यहां पढ़िए हुबहू क्या कहा आनंद रावत ने-
“ग़मों की धूप में भी मुस्कुराकर चलना पड़ता है,
ये दुनिया है, यहाँ चेहरा सजा कर चलना पड़ता है ,
तुम्हारा क़द मेरे क़द से बहुत ऊँचा सही लेकिन,
चढ़ाई पर कमर, सभी को झुका कर चलना पड़ता है।ये चार पंक्तियां जीवन के फ़लसफ़े को ख़ूबसूरती से परिभाषित करती है । इसको समझने के लिए कोई रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है ?
पता नहीं क्यों हमारे हुक्मरानों को “पहाड़ के विकास को कैसे करे?” समझ नहीं आ रहा है।
असंतुलित व अव्यवहारिक विकास ने प्रदेश में पलायन की एक नयी समस्या खड़ी कर दी है। देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार व रुद्रपुर में जनसंख्या के दबाव के कारण यातायात, कूड़ा निस्तारण व पेयजल की समस्या पैदा हो गयी है।
आज मैं कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्र के दो ब्लॉक सोमेश्वर व लोहाघाट पर अपने विचार रखूँगा, जिनका अगर नियोजित विकास किया जाए तो वे कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्र से पलायन को रोक सकते है।
मेरा ये अध्ययन 2011 की जनगणना, व्यापक भ्रमण व राजनीतिक समझ पर आधारित है ।
इत्तेफाक से इन दोनों ब्लॉकों से अपेक्षाकृत कम पलायन हुआ है, जिसका प्रमुख कारण है यहाँ की प्राकृतिक व नैसर्गिक सुन्दरता व उपजाऊ ज़मीन तथा लोगों का अपनी संस्कृति व तीज त्यौहारों से प्यार । सांख्यिकी के आँकड़े जैसे लिंगानुपात, साक्षरता, सम्पन्नता, व हैपीनेस इंडेक्स में राज्य के अन्य ब्लॉकों से बेहतर है ।
सोमेश्वर की लोद व बरौरॉ घाटी को चावल का कटोरा कहते हैं, तो लोहाघाट का गुमदेश व बिसूँग़ का इलाक़ा अपनी उपजाऊ ज़मीन के लिए विख्यात है। पंचायत चुनाव में ब्लॉक प्रमुख बनाने के गुमदेश व बिसूँग़ इलाक़े में अघोषित मुक़ाबला रहता है, जिसमें प्रतिनिधि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने इलाक़े का प्रमुख बनाना चाहते हैं।
सोमेश्वर तहसील क्षेत्र का शहरीकरण अभी नहीं हुआ है, हालाँकि कौसानी जैसा रमणीक पर्यटन स्थल यहाँ है । लोहाघाट में एक नगर पंचायत के अलावा पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र है ।
सरकार को इन दोनों ब्लॉकों को मॉडल के रूप में विकसित करना चाहिए।
सर्वप्रथम इन दोनों ब्लॉकों में ज़मीन चिन्हित कर आवास विकास की तर्ज़ पर शहर बसाएं जैसे हल्द्वानी, रुद्रपुर, काशीपुर, किच्छा, सितारगंज व खटीमा में आवास विकास कॉलोनी हैं।
समाज के प्रसिद्ध व विख्यात जैसे डॉक्टर, प्रोफ़ेसर, टीचर, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, अभियन्ता, व अन्य लोगों की यहाँ बसायत हेतु योजना बने। जैसे हरिद्वार के बीएचईएल (BHEL ) शहर है।
उसके बाद स्कूली शिक्षा व अस्पताल की सुविधा उपलब्ध कराएं व पेयजल की दीर्घकालिक योजना बनाएं।
पूरे पाँच साल की दीर्घकालिक योजना बनाते हुए इस मॉडल पर काम किया जाए ।
लीक से अलग हटकर कार्य नहीं किया गया तो, अनियंत्रित व अनियोजित विकास हल्द्वानी, देहरादून, हरिद्वार व रुद्रपुर शहरों में जनसंख्या विस्फोट कर देगा और पहाड़ और बदहाल हो जाएगा ?
अगली बार गढ़वाल क्षेत्र पर मैं अपना दृष्टिकोण साझा करूँगा ……….”