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विशेषाधिकार की आड़ में बेटे-बहू को ‘अर्जी पर मर्जी’ की नौकरी बांटिए, ग्लानि क्यों करनी? अग्रवाल की ढाल बने कुंजवाल तो हरदा अब उनकी ढाल

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  • विधानसभा में बैकडोर नौकरियों की बंदरबांट पर छिड़े कुरुक्षेत्र में चौतरफा हमले से ग्लानि महसूस न हों इसलिए हरदा ने दिया कुंजवाल को ‘कर्म’ ज्ञान
  • बेटे-बहू, भतीजे को विधानसभा में कुंजवाल ने सादे कागज पर अर्जी लेकर मर्जी की नौकरी दे डाली
  • अब आलोचना हो रही चौतरफा तो बचाव में हरदा खड़े हो गए ढाल बनकर, बोले ग्लानि न करिए
  • क्या संकट में फंसी सरकार बचाने का हरदा ने दिया था विधानसभा में मनचाही नौकरी बांटने का इनाम ?

देहरादून: UKSSSC Paper Leak Scam को लेकर उठा बवंडर विधानसभा में हुई बैकडोर नियुक्तियों तक जा पहुंचा। सवालों के घेरे में मौजूदा सरकार में संसदीय कार्य मंत्री और पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल आ गए थे। लगातार मीडिया और विपक्षी कांग्रेस अग्रवाल को अपने करीबियों को बांटी 72 नौकरियों के लिए कटघरे में खड़ा कर रहा था कि तभी हरीश रावत सरकार के दौरान तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा विधानसभा में बैकडोर से सादे कागज पर महज एक बिना तारीख वाली अर्जी लेकर मनमर्जी की करीब 158 नौकरियां बांटने का मुद्दा उठ खड़ा हुआ। और फिर गोविंद सिंह कुंजवाल ढाल बनकर प्रेमचंद अग्रवाल की मदद को आन खड़े हुए।

चूंकि गोविंद सिंह कुंजवाल स्पीकर रहते अपने बेटे बहू और भतीजे को नौकरी बांट देते हैं और कई बाकी कांग्रेसी विधायकों और मंत्रियों का भी भला कर डालते हैं। लिहाजा अब अग्रवाल की ढाल बनकर कांग्रेस के हमले की धार तो कुंद करते ही हैं बल्कि अपने किए को कानूनी बैसाखी भी थमा दे रहे हैं।

कई दिनों की चुप्पी जब लोगों के सवाल बनकर चिकोटी काटने लगी तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहले इसे यूकेसीएसएसस पेपर लीक कांड से ध्यान भटकाने की चाल बताने लगे। लेकिन कुंजवाल द्वारा अपने विशेषाधिकार की आड़ लेकर अपनों को नौकरी बांटने को लेकर निशाने पर हैं तो अब हरदा भी हिचक छोड़कर खुलकर कुमाऊं के गांधी कहलाने वाले अपने सहयोगी के समर्थन में खड़े हो गए हैं।

हरदा ने विचलित होते कुंजवाल को ढांढस बंधाते कहा हुए कहानी में 2018 की बगावत वाला तड़का लगाकर कहा है कि आपके सरकार बचाने के फैसले से खार खाए लोग अब हमला कर रहे लिहाजा आलोचना से ग्लानि नहीं बल्कि उजला पक्ष देखकर खुश होइए। बात सही भी है सत्ता में रहते परिवालजनों को सरकार में एडजस्ट कराकर निराश होने का तो कोई अर्थ भी नहीं आखिर बेरोजगारी के भंवर से बेटे-बहू, भतीजे को निकालकर उन्होंने स्पीकर का न सही पिता का फर्ज तो बखूबी निभा ही दिया है।

हरदा ने बाकायदा एक लंबी चौड़ी पोस्ट सोशल मीडिया में लिखकर गोविंद सिंह कुंजवाल को कहा है कि उन्हें ग्लानि नहीं करनी चाहिए क्योंकि ग्लानि तो तब होती जब उन्होंने किसी गरीब को नौकरी देकर सेवा के बदले मोल भाव कर कोई कीमत वसूली होती। वैसे हरदा बात सही ही कह रहे कुंजवाल ने नौकरी या तो अपने बेटे बहू भतीजे या बाकी परिवार जनों और प्रभावशाली पार्टी नेताओं के बेटे बेटियों या रिश्तेदारों को दी। गरीब का हक तो वैसे भी नौकरियों खासकर विधानसभा की बैकडोर नौकरियों पर हो भी नहीं सकता।

आखिर ये तो नेता पुत्र पुत्रियों के समायोजन हेतु बनी हैं। राज्य बनने से अब तक का हाल देख सकते हैं इस दावे का सच जानने को इसलिए कुंजवाल ने ठीक कहा कि उन्होंने अकेले थोड़े ना अपने बेटे-बहू भर्ती किए बल्कि वे तो परम्परा के बस अनुगामी बने। यही अग्रवाल की दलील है। है ना राज्य की जनता से क्रूर मजाक?

यहां पढ़िए हुबहू क्या कहा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए

भराड़ीसैंण में विधानसभा सचिवालय चुनाव से पहले संचालित करने की चाह में जब मैंने 150 पदों को तदर्थ रूप से भरने की स्वीकृति दी तो मैंने श्री कुंजवाल जी से कहा था, उस समय उनके विधानसभा सचिव और अन्य कुछ अधिकारी भी थे कि मैं आपको आग में झोंक रहा हूं। उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों का प्रश्न हमेशा संवेदनशील बना रहेगा और हर कोई नेता से अपेक्षा करता है कि वो उसके बेटे की नौकरी लगाए। चाहे उसे कुछ भी करना पड़े और मुझे यह स्मरण है कि मेरे कार्यकाल के दौरान अंतिम दिनों में केवल 2 लोगों की शिकायतें लेकर के लोग मेरे पास आते थे, कांग्रेस के नेतागण, विधायकगण, एक व्यक्ति का तो मैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन दूसरे विधानसभा के अध्यक्ष जी थे और उनसे हर व्यक्ति यह अपेक्षा करता था, चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का हो कि उसके खास व्यक्ति को नौकरी पर लगा दे। क्योंकि उसके लिये उस व्यक्ति के ऊपर भी बहुत दबाव होता है। मैं, कुंजवाल जी से कहना चाहता हूं आपने कर्म किया है और आपको यह खुशी होनी चाहिए कि आपने दो निर्णय लिए एक तदर्थ नियुक्तियों का और दूसरा दल-बदल के खिलाफ, दोनों को माननीय उच्च और उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया, बिना किसी विधिक पृष्ठभूमि के किसी व्यक्ति के निर्णयों को माननीय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सही ठहरा दे तो यह बड़ी बात है, आप अपने निर्णयों के उज्जवल पक्ष को देखिए। आलोचना से विचलित न होइए। इस राज्य में बहुत सारी शक्तियां जो मेरी सरकार का पटाक्षेप चाहती थी, दल-बदल के खिलाफ आपका त्वरित निर्णय उनको बहुत अखरा था, मौके की तलाश में लोगों को कुछ बहाना मिल गया। ग्लानि तो तब होती है, जब किसी गरीब से मोल-भाव कर उससे सेवा की कीमत वसूली जाती है।

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