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गैरसैंण सहारे पौड़ी की हसरत! मुख्यमंत्री रहते ग्रीष्मकालीन राजधानी के झुनझुने से आगे बढ़े नहीं TSR, राजपाट लुटाकर अब नारा लगा रहे ‘जागते रहो!’

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ADDA IN-DEPTH: ऐसा लगता है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी सियासत के चतुर खिलाड़ी बनते जा रहे हैं! अलबत्ता TSR असल राजनीतिक चालें कुर्सी गंवाकर ही चल रहे। वरना सत्ता में रहते चाटुकार सलाहकार चौकड़ी ने ऐसे घेरे रखा कि आम आदमी तो आम आदमी विधायकों और पार्टी के छोटे-बड़े किसी नेता-कार्यकर्ता को वक्त देने की फुरसत तक नहीं निकाल पाए। जब पानी सिर से ऊपर गुजरता दिखा और चुनावी बेला करीब आई तो मोदी-शाह ने फीडबैक लिया और Assembly Budget Session आहूत होने के बावजूद बीच मझधार त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी से बेदखल करना पड़ा।

बहरहाल हर नेता हमेशा ही नादान भी नहीं रहता या रहना चाहता है। त्रिवेंद्र भी सत्ता गंवाने के बाद से इसी छटपटाहट में हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले कई पूर्व मुख्यमंत्री संगठन या केंद्र सरकार में कुछ न कुछ पा चुके हैं लेकिन उनका राजनीतिक वनवास खत्म होकर नहीं दे रहा। जब राज्यसभा सीट की संभावना खत्म हुई तो हरिद्वार सीट पर दो-चार दिन गुजारे लेकिन एक तो मौजूदा सांसद और पूर्व मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को वहां से उखाड़ पाना टेढ़ी खीर, ऊपर से अपने ही करीबी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक से बढ़त बनाना कठिन। लिहाजा अब त्रिवेंद्र रावत ने फोकस शिफ्ट कर ‘हिटो पहाड़’ तर्ज पर पौड़ी गढ़वाल सीट पर कर लिया है।

अब अगर किसी को पौड़ी जितना है तो फोकस गैरसैंण पर ही करना होगा क्योंकि बदरी-केदार पर खुद प्रधानमंत्री मोदी का डायरेक्ट अटेंशन ठहरा। दांव पलायन आयोग गठन पर ज्ञान बघारने का हो सकता था लेकिन चतुर होते TSR बखूबी जान गए कि पौड़ी बिठाया पलायन आयोग उनके रहते देहरादून माइग्रेट कर गया था, लिहाजा चौबीस की चुनौती के मद्देनजर सियासी तरकश से गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी का तीर क्यों ना निकाला जाए!

TSR शायद जानते नहीं कि स्थाई राजधानी की सालों पुरानी मांग पर ग्रीष्मकालीन राजधानी का मठ्ठा डाल और उस पर सिर्फ घोषणा से एक कदम आगे न बढ़कर राज्य आंदोलनकारियों के जख्मों पर मरहम कम और नमक ज्यादा छिड़कने का काम किया है।

इसकी बानगी राज्य आंदोलनकारी और सीपीआईएमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी की इस प्रतिक्रिया से समझी जा सकती है। THE NEWS ADDA ने त्रिवेंद्र रावत के राजा को जगाने के लिए गैरसैण वालों को जागते रहने का नारा देने संबंधी बयान पर पूछा तो उन्होंने तपाक से कहा,”


उन्होंने (त्रिवेंद्र रावत) कोई प्रयास नहीं किया बल्कि स्थायी राजधानी के सवाल को ही पीछे धकेलने के लिए ग्रीष्मकालीन राजधानी का झुंझना लोगों को थमाया। यह झुंझना इतना फर्जी था कि त्रिवेंद्र रावत जी के राज में भी राजधानी ग्रीष्मकाल में गैरसैंण नहीं गयी। विधानसभा का एक सत्र तो वहां त्रिवेंद्र रावत जी के सत्ता में आने के पहले से हो रहा था। मुख्यमंत्री के तौर पर लिखी उनकी इबारत इतनी कच्ची थी कि वो एक सत्र भी अब वहां नही हो रहा है। आंदोलनकारियों ने ग्रीष्मकालीन नहीं स्थायी राजधानी की मांग की थी और आंदोलनकारी उसे लड़ कर हासिल करके ही दम लेंगे।”

यह अकेले इंद्रेश मैखुरी की राय नहीं विपक्षी कांग्रेस या सत्ताधारी भाजपा के राज्य आंदोलन के बैकग्राउंड वाले किसी भी नेता-कार्यकर्ता से पूछेंगे तो दर्द का मर्म यही होगा लेकिन धुन के पक्के TSR कहां मानने वाले हैं। लिहाजा गैरसैंण पर जनता को ‘जागते रहो’ ताकि राजा भी जाग जाए का नारा दे आए। फिर भले चार साल में गैरसैंण के भराड़ीसैण विधानभवन की किसी टूटी खिड़की का सीसा या पर्दा तक न लगवाया हो, हरीश रावत छोड़कर गए उसके बाद एक नई ईंट तक न लगवाई हो लेकिन अब चाहत है कि पुष्कर सिंह धामी सबकुछ छोड़-छाड़कर उनकी बजट की जमीनी हकीकत जाने बिना अपनी डगमग होती कुर्सी को बचाने की लालसा में की गई घोषणाओं को पूरा करें। अलबत्ता TSR का बस चलता तो अपने सलाहकारों की सलाह पर अल्मोड़ा कमिश्नरी के अपने इनोवेटिव आइडिया पर ही धामी सरकार को दौड़ा देते!


बहरहाल गैरसैण पर भले TSR चार साल में एक घोषणा से आगे न बढ़ें हों लेकिन गैरसैंण का राग अलापकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मुसीबत में तो डाला जा ही सकता है क्योंकि धामी भर्तियों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आक्रामक होकर घर और बाहर के विरोधियों के अरमानों पर पानी फेर चुके हैं। लिहाजा नई-नई पिच बनाकर बैटिंग करने के अभियान पर निकल चुके हैं TSR !

यह अलग बात है कि नौकरियों में लूट का हल्ला मचा तो उसमें भी हाकम सिंह रावत का पकड़ा जाना त्रिवेंद्र सिंह रावत का जायका बिगाड़ गया। वरना कहां तो UKSSSC को भंग करने का नारा बुलंद कर रहे थे और कहां UKSSSC पेपर लीक कांड में जिसे मास्टरमाइंड बताया जा रहा था उसी हाकम सिंह रावत को अनेक फोटोज में सबसे ज़्यादा गले लगाए त्रिवेंद्र ही नजर आए।


यह अलग बात है कि तेजी से राजनीतिक चातुर्य हासिल कर रहे TSR ने झट हाकम को भाजपा का कार्यकर्ता करार देकर अपनी कुर्ता उजला दिखाने का दांव चला। यह अलग बात है कि हाकम उनके ही जीरो टॉलरेंस राज में खूब फलता-फूलता गया। चर्चा तो यहां तक है कि उस दौर में डोईवाला में खनन के खेल से लेकर त्रिवेंद्र किचन कैबिनेट के अहम सिपहसालार सलाहकार के हाकम के साथ कारोबारी लेन-देन के गहरे रिश्ते हैं। अगर एसटीएफ ने परतें उतारना चाहा तो TSR का वह सलाहकार बेनकाब हो जाएगा।

जाहिर है अपने राजनीतिक रिवाइवल के लिए 2024 की चुनौती में मोदी नाम जपकर संसद सफर की टिकट तलाशने हरिद्वार छोड़ पहाड़ दौड़े TSR के लिए गैरसैंण में जागते रहो का नारा बुलंद करना मजबूरी है। वरना कुर्सी गंवाने से साल भर पहले तक गैरसैंण से पीठ फेरे रहे TSR चाहते तो हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा की चुनावी चाहत में गैरसैंण में आखिरी सत्र के बावजूद बड़ी घोषणा से चूक गए हरदा द्वारा छोड़ी मशाल थाम गैरसैंण मुद्दे का असल चैंपियन होने का संदेश दे सकते थे!

खैर अब तिरदा के ताजा बयान पर हरदा ने चुटकी लेते कह दिया है कि अब जब गैरसैंण में बर्फ गिरेगी तो वे उपवास के दौरान अपने साथ एक मोड़ा आपका भी लगवा देंगे।

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