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हरदा की ‘मायावी’ राजनीति का शिकार हो चुनावी अखाड़े में उतरने को तरस गया पहाड़ का फिक्रमंद ‘लड़ैया’

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ADDA IN-DEPTH: राज्य के लिए कुछ करने और कहने की जैसी छटपटाहट उत्तराखंड यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आनंद रावत में दिखती है, शायद बहुतों में उसकी चौथाई भी नहीं! आनंद रावत की उपलब्धि भी है कि वे हरीश रावत जैसे राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी के बेटे हैं जिनका सानी कांग्रेस राजनीति में प्रदेश छोड़िए राष्ट्रीय स्तर पर गिने चुने नेता होंगे। लेकिन यहीं हरीश रावत आनंद रावत की चुनावी राजनीति के लिए विडंबनापूर्ण ही सही लेकिन सबसे बड़े बाधक भी बनते दिखते हैं।

आनंद रावत यूथ कांग्रेस की राजनीति के सहारे भी हरीश रावत की ‘मायावी’ राजनीति का शिकार न हुए होते तो अब तक कम से कम विधानसभा की दहलीज पर एक दो बार तो दस्तक दे ही चुके होते! लेकिन 2012 से बेहद मेहनती होने के बावजूद आनंद रावत इसी इंतजार में हैं कि उनको भी चुनावी अखाड़े में खुलकर उतरने का मौका मिले। लेकिन कभी हरदा की राजनीति और कभी उनके विरोधियों की जवाबी हमलेबाजी का शिकार एक युवा नेता बनकर रह गया है।

वरना कांग्रेस से लेकर भाजपा तक में आनंद रावत के बाद राजनीतिक टीका लगाकर उतरे पहलवान विधायक बनने से लेकर मंत्री तक बन गए हैं और रावत को जहां अपने राजनीतिक रूप से वटवृक्ष पिता के साए से खुद को अलग कर वजूद तलाशने की चुनौती से जूझना है तो वहीं कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से लोहा लेकर खुद के लिए चुनावी जमीन तैयार करनी है।

सवाल है कि क्या यह संभव है अब जब हरदा अपने राजनीतिक ढलान पर हैं और उनके विरोधियों की तादाद में रोज इजाफा हो रहा तब आनंद रावत के लिए वे कुछ जमीन छोड़ पाएं! वैसे भी 2022 में जब हरदा के हाथ में काफी कुछ था तब वे भागते से अपने लिए लालकुआं और बेटी अनुपमा रावत के लिए ‘जैसे तैसे’ हरिद्वार ग्रामीण मांग पाए। लेकिन आनंद के लिए तो चुनौती कहीं अधिक इसी की है कि वे दिग्गज हरदा के बेटे हैं इसलिए हरदा खुद उनके लिए जमीन बना नहीं पा रहे और वे खुद अपने लिए संघर्ष के रास्ते कुछ हासिल करें तो पिता के साए और उनके बनाए विरोधियों के तीर सहकर बिना जंग में उतरे घायल होने को मजबूर हैं।

आज पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं तो नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य विधानसभा तक की यात्रा कर चुके हैं। इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश विधायक हैं और भुवन कापड़ी विधानसभा में उप नेता विपक्ष। भाजपा के विनोद कंडारी से लेकर और भी कई चेहरे हैं जो या तो आनंद रावत के समकक्ष या राजनीतिक अखाड़े में बाद में उतरे हैं लेकिन अब चुनावी दंगल का अनुभव लिए हुए हैं।

सोशल मीडिया के जरिए आनंद रावत की झलकती छटपटाहट उत्तराखंड को लेकर उनकी चिंता तो है ही बल्कि उनकी अपनी राजनीतिक स्थिति का प्रतिबिंब भी है, जहां वे खुद को बिना जंग लड़े थकते एक योद्धा जैसे प्रतीत होते हैं और सामने किसी शत्रु को देखने की बजाय वे खुद को अपने पिता हरीश रावत के समक्ष पाते हैं….और शायद हरदा निरुत्तर हैं…!

और शायद कोई उत्तर न पाकर आनंद रावत फिर सवालों का एक जाल बुनने लगते हैं शायद कोई रोशनी का कतरा नजर आए..! आनंद की ताजा सोशल मीडिया पोस्ट उनके इसी दर्द का एक संकेत है।

यहां हुबहू पढ़िए आखिर आनंद रावत ने किन किन सवालों के जरिए अपने पिता हरीश रावत को कटघरे में खड़ा किया है और सीएम धामी और नए चुनकर आए विधायकों पर भी व्यंग्य कसा है:

“ मैं फ़्लावर नहीं फ़ायर है “

आँकड़े बता रहे है की पहाड़ से तेज़ी से पलायन हो रहा है । बिन्दुखत्ता में प्रतिदिन औसतन 5 परिवार कपकोट के इलाक़े से अपना राशन कार्ड ट्रान्स्फ़र करा रहे है, मतलब बिन्दुखत्ता में अपना घर बना रहे है ।

ऐसा ही ट्रेण्ड बरेली रोड की तरफ़ द्वाराहाट, रानीखेत, चौखुटिया और शीतलाखेत के आसपास के लोग अपना निवास बना रहे है । डीडीहाट, थल और बेरीनाग वालों का ट्रेण्ड छड़ायाल से लेकर चकुलुवा की तरफ़ देखने को मिल रहा है ।

ये आँकड़े मेरे नहीं है, ज़िला पूर्ति कार्यालय में राशन कार्ड ट्रान्स्फ़र के ट्रेण्ड को देखकर ये आँकड़े जुटाए है ? प्रॉपर्टी डीलर भी एक सूचकांक है इस ट्रेण्ड को पता लगाने का ? वैसे सुविधाजनक स्थान पर निवास करने का सबको अधिकार है ?

अब सुविधाजनक स्थान की बात चली है, तो क्या नैनीताल शहर सुविधायुक्त स्थान नहीं है ? ये सवाल इसलिए पूछ रहा हूँ, क्योंकि हाई कोर्ट शिफ़्टिंग की प्रक्रिया चल रही है ? 7 हज़ार करोड़ रुपे खर्च करके हाई कोर्ट की व्यवस्था नैनीताल में जुटायी थी, और अब नए सिरे से मैदानी इलाक़े में ये सब व्यवस्था करनी पड़ेंगी ?

पता नहीं हिमाचल प्रदेश के लोगों ने कैसे अपनी राजधानी व हाई कोर्ट पहाड़ों में बनाया ?

अगर 13 ज़िलों में स्थापित संस्थाएँ, संस्थान, सिडकुल, अभिकरण और उपकरण साढ़े 3 ज़िलों ( नैनीताल का मैदानी क्षेत्र, ऊ सिंग नगर, हरिद्वार व देहरादून ) में स्थापित कर दोगे तो जनता तो सुविधापरख स्थान की तरफ़ आकर्षित होगी ?

हाई कोर्ट को ग़ैरसैण में स्थापित किया जाना चाहिए ? कर्णप्रयाग तक रेल पहुँचने वाली है, तो कनेक्टेवीटी की परेशानी भी नहीं होगी और कर्णप्रयाग से ऋषिकेश तक फ़ोरलेन रोड भी है ?

आस्ह्चर्यजनक रूप से प्रदेश का कोई भी नेता या पत्रकार इस विषय पर कुछ बोल नहीं रहा है या शायद विज़न ही नहीं है ? उत्तराखंड की राजनीति के भीष्म पितामह हरीश रावत जी पुष्कर धामी जी की सुबह सैर करने वाली नौटंकी पर टिप्पणी कर रहे है, परन्तु इस विषय पर कुछ नहीं बोल रहे है ?

नए नवेले विधायक बने लोग अभी शायद रोज़ अपने विधायकी के प्रमाण पत्र को देखकर विश्वास नहीं कर पा रहे है की जनता ने उन्मे ऐसा क्या देखा की उनको इतना प्यार दिया ? जागो मेरे साथियों जागो ? कुछ करो वरना उत्तराखंड के लिए आने वाला समय बहुत कठिन हो जाएगा ?

आनंद रावत
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