Why BJP MLAs unhappy with Dhami Bureaucracy! उधर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शनिवार को जब मुक्तेश्वर में ग्राउंड जीरो पर उतरकर विकास के मोर्चे पर डबल इंजन सरकार कैसे दौड़ रही है, इसकी रफ्तार नाप रहे थे, इधर उसी दौरान देहरादून ने मंत्री सुबोध उनियाल के नेतृत्व में जिला विकास योजना ने सत्ताधारी बीजेपी विधायक इस डबल इंजन विकास रथ के पहिए पंक्चर करने में लगे थे। देहरादून जिले की धर्मपुर विधानसभा सीट से विधायक विनोद चमोली ने पहले जमकर जिला योजना बैठक में अधिकारियों पर भड़ास निकाली फिर बाहर आकर मीडिया के कैमरों के सामने भी ब्यूरोक्रेसी पर बरसे।
जाहिर है अफसरशाही से कोई बड़ी ही तकलीफ रही होगी वरना मंत्री सुबोध उनियाल के सामने खचाखच भरी बैठक में बीजेपी विधायकों के यूं फट पड़ने की नौबत न आती! आखिर तकलीफ सामान्य सी रही होती तो शायद मंत्री सुबोध उनियाल ही संभाल सकते थे हालात लेकिन शायद बीजेपी विधायकों का गुस्सा कुछ इस कदर फूटा कि प्रभारी मंत्री भी मूकदर्शक बनकर विधायक बनाम अफसरशाही जंग देखते रहे।
पहले बैठक और फिर बवाल का पूरा माजरा समझ लीजिए फिर इस सवाल से रूबरू होंगे कि क्या वाकई डबल इंजन सरकार में भी युवा मुख्यमंत्री के रहते बीजेपी विधायक ही ब्यूरोक्रेसी को लेकर गले तक भरे बैठे हैं कि जिला योजना की बैठक का मानो इंतजार ही किया जा रहा था।
दरअसल, देहरादून जिला योजना में परिव्यय को इस बार 72 करोड़ से बढ़ाकर 92 करोड़ किया गया है और शनिवार को इसी बजट को लेकर बैठक हुई थी। इसी दौरान ब्यूरोक्रेसी को लेकर भरे बैठे धर्मपुर विधायक विनोद चमोली ने जमकर अफसरों को लताड़ा। विधायक चमोली सोशल मीडिया में वायरल इस बैठक के वीडियो में कहते सुने जा सकते हैं कि ये अधिकारियों की बपौती नहीं जनता की बपौती है, हमें जनता ने बनाया है।
विधायक चमोली ने कहा कि अधिकारी विकास कार्यों को लेकर गंभीर नहीं हैं और उनके इस तरह के गैर जिम्मेदाराना और लापरवाह रवैए का हर्जाना जनप्रतिनिधियों को भुगतना पड़ता है। BJP MLA चमोली दो टूक कहते हैं कि पॉलिटिकल ब्यूरोक्रेसी यानी जनप्रतिनिधि सामान्य ब्यूरोक्रेसी से ऊपर हैं नीचे नहीं, यह अफसरों को समझना पड़ेगा। उन्होंने कहा सिर्फ एसीआर लिखने से बात नहीं बनेगी एक वातावरण बनाना पड़ेगा।
बैठक के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए BJP विधायक विनोद चमोली कहते हैं कि लोग हमसे शिकायत करते हैं, इसलिए निश्चित तौर पर जिन अधिकारियों के काम में खोट है उनको बताना तो पड़ेगा कि आप ठीक प्रकार से काम नहीं कर पा रहे हैं।
चमोली ने कहा कि अफसरशाही जनप्रतिनिधियों के हिसाब से काम करे न कि अपनी मनमर्जी से इसके लिए उत्तराखंड में माहौल बनाना पड़ेगा और सख्त भी होना होगा। इस दौरान जिला योजना से जुड़े दूसरे सदस्य कहते सुने जा सकते हैं कि ये अधिकारी जनप्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते हैं।
जबकि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि योजना का परिव्यय इस बार 72 करोड़ से बढ़ाकर 92 करोड़ किया गया है और आज उसी पर चर्चा थी। उन्होंने कहा कि बैठक में मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष और सारे डीपीसी मेंबर्स मौजूद थे। मंत्री ने कहा कि अधिकारियों को कहा गया है कि जनप्रतिनिधियों को अपडेट करते हुए ही फंड और योजना पर एक्शन लिया जाए।
अब आते हैं उस सवाल पर कि क्या वाकई डबल इंजन सरकार और युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व के बावजूद सूबे की ब्यूरोक्रेसी इस कदर बेलगाम है कि सत्ताधारी दल के विधायकों को ही बार बार बिफरना पड़ रहा कि हमारा सम्मान करिए,हमें योजनाओं पर अपडेट करिए इग्नोर मत करिए! आखिर ये नहीं तो फिर देहरादून जिला योजना की बैठक में बीजेपी विधायक विनोद चमोली का अफसरों पर बरस पड़ना क्या साबित करता है?
और क्या यह बार बार नहीं हो रहा? आखिर विधायकों के वे कौनसे काम हैं जो ये अफसर नहीं कर पा रहे? या किस तरह से जनप्रतिनिधियों की शान में अफसरशाही लगातार गुस्ताखी की जा रही? अगर ऐसा नहीं होता तो आखिर क्यों मंत्री सतपाल महाराज एक सूत्री एजेंडे पर बीते एक साल से अपने मातहत अफसरों की ACR लिखने के लिए पसीना पसीना हुआ जा रहे हैं ? क्या एसीआर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव लिखेंगे तो मंत्रियों को संतोष नहीं पहुंचेगा?
क्या मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने इतना भी सामंजस्य नहीं कि अगर मंत्री को कोई अफसर आंख दिखा रहा तो उसे मुख्यमंत्री सीधा करने की बजाय चुपके से पीठ थपथपा अपने कैबिनेट सहयोगी को परेशान करने के अभियान में लगे रहने को कहेंगे? और अगर मंत्री ही मातहत अफसर की एसीआर लिखे, ये व्यवस्था है तब मुख्यमंत्री को इसे लागू करने में समस्या क्या होगी?
वैसे सवाल सिर्फ ब्यूरोक्रेसी के बेलगाम होने का विधायक या किसी मंत्री द्वारा उठाया मुद्दा भर नहीं है। याद कीजिए सीएम धामी मंत्रियों और अफसरों को लेकर मसूरी चिंतन करने गए थे, उस दौरान भी ब्यूरोक्रेसी के बॉस यानी चीफ सेक्रेटरी डॉ एसएस संधु ने ऑन रिकॉर्ड कहा कि अधिकारी कामों को टालने और बिना देखें ही फाइलों को ठंडे बस्ते में डालने के रवैया छोड़ दें।
बड़ा सवाल यही है कि क्या वाकई अफसरशाही ना विधायकों और मंत्रियों की सुन रही और न चीफ सेक्रेटरी ही नौकरशाहों से संतुष्ट हैं, तब क्या यह व्यवस्था डबल इंजन सरकार की सेहत के लिए बेहतर कही जा सकती है? जाहिर है मंत्री सुबोध की सरपरस्ती में हुई जिला योजना बैठक में विधायक चमोली ने आइना दिखा दिया है, अब सरकार की सूरत सीएम धामी जानें वे किस अंदाज में देख पा रहे हैं!