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UCC in Uttarakhand: नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने आरोप लगाया है कि यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) लागू करने के पीछे सरकार का सभी धर्मों के संस्कारों में सुधारात्मक कदम उठाना नहीं है बल्कि इसके पीछे मंशा राजनीतिक फायदा उठाने की है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि उत्तराखंड की जनता को इस समय अविलंब कठोर भू कानून एवं मूल निवास का स्थायी हल चाहिए था पर सरकार ने इस महत्वपूर्ण विषय से ध्यान हटाने के लिए समान नागरिक संहिता थोप दी है।
उन्होंने कहा कि देश के किसी भी धर्म में लिव इन रिलेशन को मान्यता नहीं दी जाती है फिर उत्तराखंड की सनातन बाहुल्य जनसंख्या में तो लिव इन रिलेशन बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देकर धामी सरकार ने देवभूमि उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का घनघोर अपमान किया है।
यशपाल आर्य ने कहा कि दूसरे राज्यों के निवासियों के एक वर्ष लिव इन रिलेशन में रहने पर उन्हें कानूनी रूप से स्थाई निवासी की भांति स्वीकारने के प्राविधान से उत्तराखंड में बहुत बड़े डेमोग्राफिक परिवर्तन की साजिश है। आर्य ने इसे राज्य के निवासियों के साथ बहुत बड़ा धोखा और षडयंत्र बताया है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि समान नागरिक संहिता के कानून लागू होने के बाद देवभूमि उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने बताया कि हाल में लागू समान नागरिक संहिता के भाग 3 में धारा 378 से 389 तक लिव इन रिलेशनशिप सम्बन्धी प्रावधान शामिल किये गये हैं। इन प्रविधानों में जहां लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दे दी गयी है, वहीं ऐसे संबंध से जन्मे बच्चों को भी वैध बच्चा मान लिया गया है तथा पुरूष साथी द्वारा महिला को छोड़ने पर महिला को भरण पोषण का अधिकार दे दिया गया है।
उन्होंने कहा कि इन प्रावधानों के लागू होते ही उत्तराखंड में बड़े परिवर्तन आएंगे। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हाल में लागू यूसीसी में सभी धर्मों के लिये तलाक या विवाह विच्छेद को तो कठिन बना दिया गया है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाला एक व्यक्ति कभी भी धारा 384 के अन्तर्गत रजिस्ट्रार के समक्ष कथन प्रस्तुत करके संबंध को समाप्त कर सकता है। कानून के इस दोहरेपन के कारण उत्तराखंड में युगल शादी के स्थान पर लिव इन रिलेशनशिप में रहना पंसद करेंगे।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि लिव इन रिलेशन संबंध को प्रारंभ करना और समाप्त करना दोनों आसान हैं । इससे उत्तराखंड में विवाह संस्था को नुकसान पहुंचेगा और ऐसे सम्बन्धों से जन्मे बच्चों और उनकी उत्तराखंड मूल की माताओं का भविष्य भी खतरे में रहेगा। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि विधेयक को पेश करते समय सदन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया था कि उत्तराखंड में यूसीसी महिलाओं को लैंगिग समानता देने के उद्देश्य से लाया गया विधेयक है। लेकिन प्रदेश की अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या को इस कानून के दायरे से बाहर रखा है ।
उन्होंने पूछा कि क्या इस कथित समानता के अधिकार की अनुसूचित जनजाति की 4 प्रतिशत जनसंख्या से संबध रखने वाली महिलाएं हकदार नहीं थी? उन्होंने आरोप लगाया कि, समान नागरिक संहिता के माध्यम से बीजेपी का मकसद विपक्ष को अल्पसंख्यक समुदाय के रूढ़िपरस्त नेतृत्व के साथ दिखाना था जो संभव नहीं हुआ। भाजपा को अंदेशा था कि अल्पसंख्यक समुदाय इसका विरोध करेगा जिसका राजनीतिक फायदा भाजपा उठाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ।
उन्होंने साफ किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के बजाय उत्तराखंड की सनातनी जनसंख्या लिव इन रिलेशन जैसे प्रावधानों का खुलकर विरोध कर रही है। उनका मानना है कि उत्तराखंड की जनता को जल्दबाजी में लाए समान नागरिक संहिता कानूनी विसंगतियों का सामना करना पड़ेगा जिसके लिए भाजपा की धामी सरकार जिम्मेदार होगी।