
Bihar Assembly Elections 2025: इस साल के आखिर में होने वाले देश के सबसे बड़े चुनाव का बिगुल बज चुका है। बात बैटल ऑफ बिहार की हो रही है जिसके लिए सोमवार को चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया। बिहार के महापर्व छठ के बाद दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी।
चुनाव आयोग द्वारा छह अक्तूबर को तारीखों का ऐलान करने के साथ ही राज्य में चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। ज़ाहिर है बिहार चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के लिए तो ‘करो या मरो’ की स्थिति वाला चुनाव है ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तथा आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के लिए ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ के मैसेज वाला चुनाव है।
चुनाव कार्यक्रम
- बिहार विधानसभा में कुल सीटें 243
- बहुमत के लिए चाहिए 122 सीटें
- दो चरणों में मतदान, 6 और 11 नवंबर
- चुनाव नतीजे आएंगे 14 नवंबर को
- पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान
- दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान
दांव पर साख और सियासत
बिहार का चुनावी बिगुल बजते ही अब चर्चा शुरू हो गई है कि आख़िर इस बार जीत किस गठबंधन को नसीब होगी? एनडीए रिपीट करेगा या फिर महागठबंधन जोरदार वापसी करेगा? ज़ाहिर है इस सवाल की तरह ही यह सवाल भी उतना ही मौजूं हैं कि इस सियासी संग्राम में आख़िर साख कौन-कौन बचा पाएगा। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी अगुआई वाले जेडीयू के सामने कठिन राजनीतिक अग्निपरीक्षा का समय है बिहार का इस बार का विधानसभा चुनाव।
राजग और महागठबंधन के दो सियासी पाटों के बीच हिलती-डुलती मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वफ़ादारियों ने जेडीयू को आज कठिन हालात में पहुँचा दिया है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में वोट और सीट की घटती हिस्सेदारी बताती है कि कभी बीजेपी और कभी आरजेडी के साथ होते-होते आज जेडीयू अपनी बड़ी सियासी ज़मीन खो बैठा है।
राजनीति में अटल-आडवाणी के दौर से बिहार में बीजेपी के लिए जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में रहा। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देखने को मिला जब नीतीश कुमार पाँच साल सत्ता का पहला सफल प्रयोग कर जनता की अदालत में पहुंचे तो जेडीयू को 22.58 प्रतिशत वोटों के साथ 115 विधानसभा सीटें हासिल हुई। जबकि बीजेपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और 91 सीटों के साथ 16.49 प्रतिशत वोट हासिल हुए। इस चुनाव में जेडीयू 142 सीटों पर लड़ता है और छोटे भाई भाजपा को 102 सीटें मिलती हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश लालू यादव और कांग्रेस के साथ चले गए। लालू-नीतीश साथ आए तो आरजेडी-जेडीयू मिलकर कुल 178 सीटों पर जीत हासिल करते हैं। आरजेडी को 80 सीटें और जेडीयू ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की।
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू फिर बीजेपी के साथ मिलकर लड़ती है और 43 सीटों के साथ वह तीसरे पायदान पर रह जाती है। जबकि आरजेडी 75 सीटें, और बीजेपी 74 सीटें जीत लेती है। इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी और कुछ समय के लिए महागठबंधन के साथ हो लिए थे। सुशासन बाबू ने जनवरी 2024 में चौथी बार पलटी मारी और वे एनडीए में शामिल हो गए।
सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इधर से उधर और उधर से इधर पलटी मारते-मारते आज उत्तराखंड की राजनीति में नीतीश कुमार आज उस जगह पर पहुंच चुके हैं जहाँ से एक भी चुनावी हार हमेशा-हमेशा के लिए राजनीतिक ब्रेक साबित हो सकती है। मोदी- शाह की इमेज और चुनावी रणनीति और राजनीति का असल खुलासा बिहार चुनाव में होता दिखाई देगा।
इसी तरह यह चुनाव बिहार की राजनीति में विपक्षी चेहरे तेजस्वी यादव के लिए भी करो या मरो की स्थिति वाला है क्योंकि इस बार अगर महागठबंधन सत्ता से चुका तो इसकी सबसे बड़ी क़ीमत तेजस्वी यादव को चुकानी पड़ेगी। यही हाल कांग्रेस का भी है जो आरजेडी के सहारे बिहार में कामयाब होना चाहती है और खुद राहुल गांधी के लिए बिहार चुनाव के अलहदा मायने हैं। राहुल गांधी ने इसी परिस्थिति को समझते हुए वोटर अधिकार यात्रा निकाली जिसके बाद कांग्रेस नेताओं का जोश हाई है।
चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर जन सुराज के माध्यम से नीतीश सरकार के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए है। यानी बैटल ऑफ बिहार में बहुत कुछ दांव पर लगा है।