देहरादून: सियासत भी अजीब शह है, कब दोस्त दुश्मन बन जाएं और कब दुश्मन दोस्त हो जाएं कहा नहीं जा सकता! बस सियासी नफ़े-नुकसान के लिहाज से शह-मात के खेल में दोस्ती टूटती रहती हैं और नफ़रत मुहब्बत में बदलती रहती है। उत्तराखंड की सियासत में आजकल दो पूर्व मुख्यमंत्रियों में कुछ इसी अंदाज में जुबानी जंग छिड़ी हुई है। 2016 में कांग्रेस से पालाबदल कर बीजेपी के साथ चले गए बाग़ियों को हरदा लगातार उज्याडू बल्द करार दे रहे थे फिर हालात ऐसे बने कि अचानक यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य के साथ कांग्रेस ज्वाइन करने दिल्ली राहुल गांधी के घर तक पहुंच गए बागी उमेश शर्मा काऊ! फिर उलटे पांव लौट भी आए काऊ लेकिन आर्य पिता-पुत्र के कांग्रेस में घर वापसी कर लेने और काऊ की कसरतबाजी ने संदेश दिया कि बीजेपी गए बागी असंतुष्ट हैं।
रही-सही कसर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के आए दिन के तेवरों से पूरी हो जा रही और हरक के माफ़ीनामे औप हरदा-हरक में हुए टेलिफ़ोन संवाद ने न केवल बीजेपी नेतृत्व को बेचैन कर दिया बल्कि 18 मार्च 2016 की बगावत की अगुआई करने वाले विजय बहुगुणा भी बेचैन होकर दिल्ली से देहरादून दौड़ पड़े। पूर्व सीएम बहुगुणा ने न केवल हरक-काऊ सहित तमाम साथी बाग़ियों से गुफ़्तगू की बल्कि हरदा पर ज़ोरदार हमला बोला। विजय बहुगुणा ने 18 मार्च 2016 के तमाम बाग़ियों के एक साथ होने और आगे भी बीजेपी के साथ एकजुट रहने का दावा तो किया ही, लगे हाथ हरीश रावत से पूछ भी लिया कि मेहनती रावत लहर पर सवार होकर आने का सपना जरूर देख रहे लेकिन यह भी बता दें कि चुनाव कहां से लड़ेंगे, एक सीट से कि दो सीटों से लड़ेंगे? जाहिर है बहुगुणा यह सवाल पूछकर न केवल 2017 के चुनाव में दो विधानसभा सीटों पर मिली करारी हार का जख्म ताजा कर देना चाह रहे बल्कि चुनावी दंगल में हरदा के इस बार खुद लड़ने की बजाय लड़ाने की चल रही अटकलबाजी पर भी कटाक्ष कर रहे हैं।
जाहिर है बहुगुणा के वार पर अब पलटवार की बारी पूर्व सीएम और कांग्रेस कैंपेन कमांडर हरीश रावत की थी। हरदा ने गुरुवार को ट्विट कर विजय बहुगुणा के वार पर पलटवार करते हुए बीजेपी की दुखती रग पर भी हाथ रख दिया है। रावत ने याद दिलाते कहा कि बाग़ियों के चलते कल हम रो रहे थे, अब आगे समय बीजेपी के रोने का है। हरीश ने बहुगुणा को मौसमी बताते हुए उनको दल-बदलुओं कै सरदार ठहराया है। हरदा ने बाग़ियों के बहाने बीजेपी पर भी हमला बोलते कहा कि वरिष्ठतम विधायक हरबंश कपूर और दलित विधायक चंदन राम दास में से किसी एक को खाली पड़ा मंत्रीपद दिया जाना था लेकिन अब दबाव दल-बदलू के लिए बढ़ गया है लिहाजा अब चंदन-कपूर को कुर्सी नही मिलेगी
हरीश रावत ने यह कहा?
कल एक ऐसे #राजनैतिक व्यक्ति देहरादून आये जिन्हें यदि मौसमी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी और जो दल-बदलूओं के घोषित सरदार भी हैं। उनके आगमन के बाद एक बात निश्चित हो गई है, अब भाजपा में दो वरिष्ठतम विधायकों के साथ अन्याय होना सुनिश्चित है। उत्तराखंड की राजनीति के #आजाद_शत्रु श्री हरबंस कपूर और मेरे छोटे भाई चंदन राम दास जो रिक्त पड़ा मंत्री पद है, वो इन दोनों में से एक को नवाजा जाना निश्चित था, अब दबाव सहयोगी दल-बदलू के लिए बढ़ गया है। अब या तो दल बदलू ही मंत्री बनेंगे या मंत्री कोई भी नहीं बनेगा। #भाजपा के लोगों मैंने आपसे कहा था न कि आज तो हम रो रहे हैं और आने वाले समय में आप लोग रोओगे और ऐसा ही होने जा रहा है।
हरीश रावत, पूर्व सीएम
दरअसल, बाग़ियों के बहाने छिड़ी जंग में अब हरदा और बहुगुणा आमने-सामने आ गए हैं। बहुगुणा ने हरक-काऊ से लेकर तमाम बाग़ियों को वार्ता की मेज़ पर लाकर बीजेपी में किसी भी तरह की संभावित बागी भगदड़ रोकने का दांव खेला है। साथ ही हरदा के लिए बीजेपी में टूट की राजनीति को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है। यही वजह है कि हरदा ने भी एक बार फिर बाग़ियों को उज्याडू बल्द कहकर नए सिरे से हमला बोला है।
दरअसल, हरीश रावत और विजय बहुगुणा में सियासी मुहब्बत और अदावत का रिश्ता काफी पुराना है। 2002 में रावत को सीएम बनाया जा रहा था तो बहुगुणा भी महाराज से लेकर अन्य नेताओं के साथ एकजुट होकर एनडी तिवारी के बहाने राह रोकने वालों में रहे। फिर 2009 में दोनों सांसद बने तो अदावत पिघलने लगी और दोस्ती बढ़ने लगी। कहते हैं कि 2012 के चुनाव में भी सीएम रेस में महाराज-आर्य-इंदिरा-हरक को काटने के लिए एक दौर में हरदा-बहुगुणा दोनों, एक-दूसरे के साथ आ गए लेकिन चांस बहुगुणा को मिला तो घर पर विधायकों को जोड़कर मोर्चा हरदा ने खोल दिया। 2014 में हरीश रावत सीएम बने और 2016 की बगावत बहुगुणा ने करा डाली।
अब बहुगुणा हरक-काऊ-चैंपियन-बत्रा जैसे कांग्रेसी गोत्र वाले नेताओं के साथ मंथन कर रहे ताकि, बकौल हरदा, कांग्रेस के उज्याड़ू बल्दों को बीजेपी से भागने से रोका जा सके। सवाल है कि क्या बहुगुणा की बात पर असंतुष्ट बागी गिले-शिकवे भुलाकर बीजेपी में बने रहेंगे? सवाल यह भी कि क्या 22 के रण में खुद को इक्कीस साबित करने के लिए कांग्रेसी गोत्र के नेताओं से किनारा बनाए रखकर रावत बीजेपी से पिछली हारों का हिसाब कर लेंगे? या फिर बहुगुणा के दावों के इतर बीजेपी में बाग़ियों के बहाने भगदड़ मचाने की रणनीति है?