“मेरा कसूर सोनिया-राहुल की कांग्रेस स्थापित करना”
Dehradun News: कांग्रेस में जिस कलह कुरुक्षेत्र की आशंका सियासी गलियारे में थी, नए अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और उप नेता प्रतिपक्ष का ऐलान होते ही, जंग का नगाड़ा बज गया है। प्रीतम सिंह ने साफ शब्दों में उत्तराखंड के प्रभारी देवेन्द्र यादव और कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगपाल को निशाने पर लेते चुनौती दी है कि अगर उन पर गुटबंदी के आरोप सत्य सिद्ध होते हैं तो वे विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे।
दरअसल प्रीतम सिंह ने आज कहा कि जब पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव ही ये कहते हैं कि उत्तराखंड में कांग्रेस की हार गुटबाजी के चलते हुई और उन पर ही गुटबाजी करने का आरोप लगाया गया है तो यह उनके लिए असहनीय है। प्रीतम सिंह ने कहा कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर आए हैं और गुटबंदी के आरोपों की जांच कराई जाए और अगर ये सत्य सिद्ध होते हैं तो वे विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे। जाहिर है कांग्रेस में हार को लेकर रार मची है और नई नियुक्तियों ने इस चिंगारी को हवा देकर दावानल का रूप दे दिया है।
रविवार शाम को ही कांग्रेस आलाकमान ने करन माहरा को प्रदेश अध्यक्ष और यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। जबकि सीएम पुष्कर सिंह धामी को हराकर विधानसभा पहुँचे भुवन कापड़ी को उप नेता विपक्ष बनाया है। इसके तुरंत बाद सोमवार सुबह होते-होते कांग्रेस में कलह कुरुक्षेत्र छिड़ गया है। प्रीतम सिंह ने जिस तल्ख लहजे में वेणुगोपाल और देवेन्द्र यादव को गुटबंदी के आरोपों की जांच की चुनौती दी है यह कांग्रेस के लिए संभावित संकट का सबब साबित हो सकती है। नई नियुक्तियों के ऐलान से पहले प्रीतम सिंह की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर हुई मुलाकात ने राजनीतिक टेम्परेचर पहले ही बढ़ा दिया है।
राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि प्रीतम सिंह ने एक खास रणनीति के तहत कड़ा रुख अख़्तियार कर लिया है।
प्रीतम सिंह हरदा की उस रणनीति से खार खाए हैं जिसके तहत ये तर्क दिया गया कि हार की ज़िम्मेदारी सामूहिक है और हरीश रावत और गणेश गोदियाल ज़िम्मेदार हैं तो प्रीतम सिंह कैसे नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष का इनाम पा सकते हैं। इसी तर्क ने कांग्रेस नेतृत्व को मजबूर किया और हरदा-गोदियाल के साथ-साथ हार का ठीकरा प्रीतम के सिर भी फूटा।
इस रणनीति को अंजाम तक पहुँचाने के लिए हरदा ने अंदरूनी तौर पर दांव-पेंच आज़माने के साथ ही पहले ही तरह सोशल मीडिया को माध्यम बनाकर ‘आर-पार’ के संकेत दे दिये थे। सीएम धामी की तारीफ के पुल बाँधने से लेकर कांग्रेस कितने दिन अपने साथ रखेगी जैसे तीर छोड़कर निशाना साधा था। हालाँकि तीर निशाने पर लगा! वो अलग बात है कि यशपाल आर्य भले हरदा के आजकल करीब हों लेकिन प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी को प्रीतम के नज़दीक ही माना जाता है।
अब प्रीतम सिंह ने भी हरदा के अंदाज में कड़ा बयान देकर कांग्रेस नेतृत्व को संभावित संकट के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। यह भी संभव है कि प्रदेश अध्यक्ष और उपनेता विपक्ष पद अपने क़रीबियों को मिलने के बावजूद प्रीतम सिंह खुद को कुछ न मिलने का विक्टिम कार्ड खेलकर राष्ट्रीय संगठन में जगह पक्की करने का दांव चल रहे हों।
प्रीतम कैंप को लगता है कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने कांग्रेस आलाकमान के कान भरे हैं कि प्रीतम सिंह, रणजीत रावत और आर्येन्द्र शर्मा आदि नेताओं ने गुटबाजी को बढ़ावा दिया जिससे कांग्रेस की हार हुई। जबकि प्रीतम कैंप का आरोप रहा है कि कई सीटों पर न केवल हरदा कैंप ने नुकसान कराया बल्कि रामनगर की जीत पकड़कर भी कांग्रेस का माहौल बिगाड़ा। प्रीतम कैंप अकील अहमद के बयान से उठे मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बवाल को भी हरदा कैंप की कारस्तानी करार देता रहा है।
सवाल है कि लगातार चुनावी हार से हाहाकार करती कांग्रेस अब इस नए दौर के अंदरूनी दंगल को झेलते हुए 2024 में भाजपा के सामने खड़ी भी हो पाएगी?