देहरादून: 22 बैटल को लेकर 31 जनवरी नाम वापसी का आखिरी दिन था और सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने बगावत कर चुनाव मैदान में सिरदर्द बने अपने कई नेताओं को मनाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। इसका असर भी दिखा और कई सीटों पर बागी निर्दलीय चुनाव लड़ने की जिद छोड़कर घर वापसी कर गए। लेकिन अभी भी भाजपा और कांग्रेस के कई बागी हैं जो चुनावी मैदान में डटे हैं और दोनों ही दलों के कई प्रत्याशियों के गले की फांस बन चुके हैं। जबकि कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों के लिए भितरघातियोें का संकट बरक़रार है।
बाग़ियों को मनाने में नामांकन वापसी के दिन भाजपा और कांग्रेस को डैमेज कंट्रोल करने में सफलता हासिल हुई। कांग्रेस ने ऋषिकेश से बागी ताल ठोक रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण को मना लिया। सजवाण को हाथों-हाथ प्रदेश कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष और चुनाव संचालन समिति का को-चैयरमैन बनाकर कैंपेन का ज़िम्मा भी सौंप दिया।
कांग्रेस ने सहसपुर में बागी लड़ रहे पार्टी नेताओं को भी मना लिया लेकिन पार्टी लालकुआं में पूर्व सीएम हरीश रावत के खिलाफ बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रही संध्या डालाकोटी को नहीं मना पाई। इसी सीट पर भाजपा के बागी पवन चौहान भी निर्दलीय मैदान में डटे हुए हैं।
उधर भाजपा ने डोईवाला सीट पर बागी ताल ठोक रहे सौरभ थपलियाल, राहुल पंवार और सुभाष भट्ट को मना लिया। लेकिन भाजपा अपने एक और बागी जितेन्द्र नेगी को नहीं मना पाई।
भाजपा न कोटद्रार में बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे धीरेन्द्र चौहान का नामांकन वापस करा पाई और न ही उसे ऊधमसिंहनगर की रुद्रपुर सीट पर दो बार के विधायक राजकुमार ठुकराल को मनाने में कामयाबी हासिल हो पाई है।ठुकराल ने केन्द्रीयन रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और सीएम पुष्कर सिंह धामी की मान-मनुहार को ठुकरा दिया।
भाजपा ने कालाढूंगी में बागी ताल ठोक रहे गजराज सिंह बिष्ट को आखिरकार मना लिया। लेकिन भीमताल में बागी होकर चुनाव लड़ रहे पूर्व मंडी समिति अध्यक्ष मनोज साह तो पार्टी नहीं मना पाई। भाजपा ने पिरान कलियर में बागी जय भगवान सैनी, रूड़की में टेक बहादुर और नितिन शर्मा को मना लिया।
उधर सीएम धामी ने कपकोट में नाराज शेर सिंह गढ़िया को राजी कर लिया है और जागेश्वर में मोहन सिंह मेहरा को टिकट देने पर रूठे सुभाष पांडे को सीएम धामी ने मना लिया है।
जाहिर है भाजपा हो या कांग्रेस कुछेक सीटों को छोड़ दें तो बाग़ियों को मनाने में दोनों कामयाब रही हैं। लेकिन अब असल चिन्ता नाराज होकर या ख़ामोशी की चादर ओढ़े भितरघात के लिए कमर कैसे नेताओं से कैसे बचा जाएगा? भाजपा ने जहां धड़ाधड़ कई सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर नाराजगी मोल लेने का जोखिम उठाया है तो कांग्रेस ने टिकट न देकर कई दावेदारों को तरसाया है।
याद करिए 2012 का विधानसभा चुनाव जब ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के हल्ले के बीच कोटद्रार में जनरल बीसी खंडूरी शिकस्त खा बैठे थे। तब भी सिटिंग विधायक शैलेन्द्र सिंह रावत का टिकट कटने को हार और भितरघात से जोड़कर देखा गया था। 2017 में भी कई सीटों पर ऐसे भितरघातियों ने ‘खेला’ करा दिया था। अब 22 बैटल में सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के लिए भितरघात से बचना सबसे बड़ी चुनौती है।
खामोश बैठे असंतुष्टों से भितरघात के खतरे का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका खतरा लालकुआं में पूर्व सीएम हरीश रावत को है तो खटीमा में सीएम पुष्कर सिंह धामी को भी है। रामनगर से सल्ट शिफ्ट होने को मजबूर हुए रणजीत रावत को भी भितरघात से सँभलकर रहना होगा।
चकराता में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को भी सँभलकर रहना होगा तो बीजेपी अध्यक्ष मदन कौशिक भी इस बार चिन्तित होंगे। चिन्ता बगल की सीट हरिद्वार ग्रामीण से लड़ रहे मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को भी है।
कपकोट में भाजपा प्रत्याशी सुरेश गढ़िया की राह पूर्व विधायक शेर सिंह गढ़िया की सीएम धामी के प्रयास से नाराजगी दूर हो गई है लेकिन कपकोट के नतीजे बताएंगे कि बलवंत भौर्याल से लेकर गढ़िया तक किसका कितना समर्थन सुरेश को मिला। कालाढूंगी में गजराज बिष्ट ने निर्दलीय चुनाव म लड़ने का फैसला कर भाजपा को राहत दे दी है लेकिन क्या चुनावी लड़ाई में बंशीधर भगत को भरपूर समर्थन मिलेगा?
जाहिर है भाजपा ने करीब एक दर्जन सिटिंग विधायकों के टिकट काटे हैं और कई टिकट के प्रबल दावेदारों को मन मारकर शांत बैठना पड़ा है लेकिन क्या छोटे राज्य में जहां कई सीटों पर थोड़े से वोट हार-जीत तय करा सकते हैं, वहां भितरघात से बचा रहना आसान होगा? यह सवाल हरदा और प्रीतम के कैंपों में बंटी कांग्रेस के लिए भी उतना ही मौजूं जान पड़ता है।