
देहरादून: लोकसभा चुनाव के फाइनल और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना सहित पांच राज्यों के सेमीफाइनल मुकाबले से पहले छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे बड़ा मैसेज दे गए हैं। लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बुल्डोजर बाबा यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मैजिक घोसी में फेल होता दिखा है। लेकिन कभी यूपी का हिस्सा रहे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की धमक बरकरार नजर आ रही है।

घोसी में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने धुआंधार चुनाव प्रचार कर फ्रंट फुट से मोर्चा जरूर संभाला लेकिन वे घोसी में साइकिल को पंक्चर नहीं कर पाए और दारा सिंह चौहान लगातार सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह से पिछड़ते ही चले गए। नतीजा ये रहा कि अखिलेश यादव ने घोसी उपचुनाव को 2024 की दिल्ली की लड़ाई का ट्रेलर बता दिया है।

हालांकि बुल्डोजर बाबा योगी आदित्यनाथ भले INDIA bloc नेताओं को 2024 की लड़ाई को लेकर घोसी के बहाने शेखी बघारने से नहीं रोक पाए लेकिन उत्तराखंड में युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कांग्रेस यानी इंडिया गठबंधन के हाथ बागेश्वर उपचुनाव में बढ़त का मौका नहीं लगने दिया।
यूं तो बागेश्वर विधानसभा सीट हमेशा से बीजेपी का गढ़ रही है और इसी का नतीजा है कि 2002 के पहले विधानसभा चुनाव को छोड़कर बाकी चार विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से दिवंगत चंदन राम दास जीत हासिल करते रहे। लेकिन चंदन राम दास के निधन के बाद हुए बागेश्वर उपचुनाव में बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं थी क्योंकि अब तक कभी आम आदमी पार्टी, कभी निर्दलीय चुनाव लड़कर त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी की जीत आसान करते रहे बसंत कुमार इस बार खुद कांग्रेस के कैंडिडेट बन गए थे। यानी पहली बार आमने सामने की टक्कर थी और 2002 के चुनाव में भी आमने सामने की टक्कर में रही थी जिसमें कांग्रेस को कामयाबी मिली थी।
सीएम पुष्कर सिंह धामी टिकट बंटवारे के बाद 2002 की तरह संभावित सीधी चुनौती में करीबी मुकाबले के आसार ताड़ गए थे। यही वजह रही कि सीएम धामी ने जहां संगठन और सरकार के तमाम चेहरों को तो खास जिम्मेदारियां देकर काम पर लगाया ही, चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में तीन दिन तक खुद मुख्यमंत्री ने डोर टू डोर कैंपेन से लेकर असंतुष्टों को समझाने बुझाने के अलावा व्यूह रचना का पूरा मोर्चा संभाला।
यह सीएम धामी की रणनीति का ही नतीजा रहा कि गरुड़ में जहां लगातार चंदन राम दास को बड़ी बढ़त मिलती रही वहीं इस बार यह अंतर कम हो गया। बावजूद इसके करीबी मुकाबले में धामी ने पार्वती दास की जीत सुनिश्चित करा दी।
बागेश्वर में बीजेपी की जीत इस लिहाज से भी ज्यादा अहम है क्योंकि चुनाव दर चुनाव धड़ेबाजी के चलते सियासी नुकसान उठाती आ रही कांग्रेस इस उपचुनाव में यूनाइटेड हाउस नजर आई। कुमाऊं के सबसे बड़े दलित चेहरे और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने तो मोर्चा संभाला ही, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भी लगातार चुनाव क्षेत्र में कैंप किया।
यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव ने 26 से 29 अगस्त तक बागेश्वर में डेरा डाले रखा और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी इस अपनी प्रतिष्ठा का चुनाव बनाया। जबकि बसंत कुमार ने पिछले कई चुनावों में वोटों का आंकड़ा हासिल कर साबित कर ही दिया था कि उनको हल्के में लेना बीजेपी के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है।
साफ है पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार के विकास के एजेंडे को आगे रख बड़ी ही चतुराई के साथ बागेश्वर की पिच पर अपनी सियासी धमक दिखा दी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकसभा चुनाव से पहले हुए बागेश्वर उपचुनाव की जीत मोदी-शाह और बीजेपी आलाकमान को यह आश्वस्ति तो दे ही देगी कि मुख्यमंत्री के नाते पुष्कर बखूबी जानते हैं कि विपक्षी एकजुटता के बावजूद जीत का कमल कैसे खिलाना है।
आमतौर पर विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव चेहरे के तौर पर बीजेपी 2014 से लगातार मोदी के मैजिक के सहारे ही जीत हासिल करती आ रही है। लेकिन उपचुनाव की हार जीत मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की परफॉर्मेंस का बैरोमीटर समझी जाती है। इस लिहाज से जब यूपी के संग्राम में योगी आदित्यनाथ घोसी उपचुनाव में बीजेपी को जीत नसीब नहीं करा पाए हैं तब बाबा बागनाथ की धरा से जीत का आशीर्वाद ‘पार्वती’ को मिलना बड़ा संदेश दे रहा है।
इस चुनाव के बाद अब जहां 2024 को लेकर धामी पर मोदी-शाह का भरोसा और बढ़ेगा जिसकी छाप पांचों सीटों पर टिकट बंटवारे के रूप में बड़े उलटफेर के रूप में भी नजर आ सकती है और राज्य में कैबिनेट विस्तार की हलचल बढ़ना तो तय है ही!