
Uttarakhand News: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से उनके डिफेंस कॉलोनी स्थित आवास पर पहुंचकर मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने कोश्यारी के साथ राज्य के विकास से संबंधित विभिन्न सम सामयिक विषयों पर चर्चा की।
दरअसल, यह तो वह जानकारी है जो बताई या समझाई जा रही है लेकिन असल बात यह है कि भगत दा ऐसे वक्त महाराष्ट्र राजभवन से विदा होकर पहाड़ प्रदेश लौटे हैं जब उनकी बड़ी ही शिद्दत के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को जरूरत महसूस हो रही है। सियासी गुरु के कदम अपनी जन्मभूमि पर तब पड़े हैं जब शिष्य धामी चौतरफा घिरे नजर आ रहे हैं और राजनीतिक जानकर भी मजबूती से मान रहे कि युवा मुख्यमंत्री को भगत दा के आने से कोई नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही होगा।
जानकार मान रहे हैं कि जहां पुष्कर सिंह धामी अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में अधिक पॉपुलर और उम्मीदों पर उतरने का भरोसा देते नजर आ रहे थे,उसके मुकाबले अब जब पांच साल का मौका है तब वे मुद्दा दर मुद्दा उलझते और कमजोर फैसले लेते नजर आ रहे हैं। जी युवा वर्ग एक समय युवा सीएम की सबसे बड़ी ताकत नजर आ रहा था, वह अब पेपर लीक कांड की सीबीआई जांच को लेकर छिड़े आंदोलन और उस पर हड़बड़ी में हुई पुलिसिया कार्रवाई के बाद सबसे कमजोर कड़ी बनता दिख रहा है। प्रधानमंत्री का रोजगार मेले के बहाने युवाओं को संदेश देना सवाल उठाता है कि कहीं दिल्ली तक बेरोजगारी युवाओं के गुस्से की गर्माहट तो महसूस नहीं कर ली गई है?
बेरोजगार युवाओं का गुस्सा तो ताजा मामला है लेकिन इससे पहले भी जोशीमठ भू धंसाव मामले में धामी सरकार के देर से आए रिस्पॉन्स, पीएमओ के सक्रिय होने के बाद मुख्यमंत्री का जोशीमठ दौरा और फिर मुआवजे को लेकर बनी स्थिति ने राज्य सरकार के कामकाज को कटघरे में खड़ा किया। फिर सतपाल महाराज और धन सिंह रावत जैसे मंत्रियों के भी इस संकट में सोए रहने से गंभीर सवाल खड़े हुए। रही सही कसर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने जोशीमठ को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे लोगों को माओवादी और चीन के लिए काम करने का आरोप लगाकर पूरी कर दी।
इससे पहले अंकिता भंडारी हत्याकांड में बुलडोजर एक्शन और वीआईपी कौन था? इस सवाल पर राज्य सरकार का गोल मोल दिखना सीएम धामी के लिए नुकसानदेह ही रहा। जानकार मानते हैं कि अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद पौड़ी गढ़वाल में बीजेपी के लिए चौबीस की चुनौती और कठिन हो गई है।
जबकि UKSSSC पेपर लीक कांड के बड़े आरोपियों का जमानत पाकर जेल से लगातार छूटते जाना और विधानसभा बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार पर स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण का सीएम के पत्र लिखकर चले गए नहले पर कुंजवाल अग्रवाल के रखे 228 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिखाना दहला दांव साबित हुआ था।
धामी कैबिनेट में जहां एक चौथाई पद पहले से खाली हैं और बचे मंत्रियों में से अधिकतर का अपने अंदाज में अलग चलना भी युवा सीएम के लिए परेशानी का सबब जरूर बन रहा होगा। मंत्री चंदन राम दास अस्वस्थता के चलते उतना दमखम नहीं दिखा पा रहे हालांकि भगत दा फैक्टर के चलते सीएम के करीबियों में शुमार होते हैं। लेकिन मंत्री सुबोध उनियाल, रेखा आर्य और डॉ धन सिंह रावत की अपनी लाइन है और मंत्री गणेश जोशी को लेकर दिल्ली से देहरादून तक हल्ला मचा ही रहता है।
जबकि मंत्री सतपाल महाराज प्रदेश में कम और बाहर अपने आध्यात्मिक कार्यों में अधिक व्यस्त नजर आते हैं। वैसे भी महाराज की ना ठीक से नौकरशाह सुनते हैं और रही सही एसीआर लिखने की हसरत पूरी न हो पाने से वे खुद भी आहत होकर समय काट रहे हैं। इंतजार बिल्ली के भागों छींका टूटने और एक बार सीएम बनने का ही दिखता है। मंत्रियों में सौरभ बहुगुणा सीएम की तरह ही युवा हैं और भाग दौड़ करते नजर भी आते हैं।
युवा सीएम के लिए संकट सिर्फ अपने मंत्रियों से मिल रहे पूअर रिस्पॉन्स या गर्मजोशी न दिखने भर का नहीं है बल्कि संकट बीजेपी के भीतर से भी दिखाई दे रहा है। फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट अपना कोई खास असर नहीं बना पाए हैं और उनको अभी सीएम द्वारा दिखाए रास्ते का फॉलोअर ही समझा जा रहा है। लेकिन सांसद और पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत यूपी के जमाने के जीरो से 20 परसेंट कमीशन के मुकाबले आज की सरकार के समय में चल रही कमीशनखोरी का जिक्र कर धामी सरकार को असहज कर चुके हैं। लेकिन अपने एक बयान के बाद तीरथ जरूर चुप बैठ गए हैं लेकिन एक दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तो मानो आए दिन हर दूसरे मुद्दे पर धामी सरकार की पोल खोलते नज़र आ रहे हैं।
ऐसा लगता है कि खानपुर विधायक उमेश कुमार के साथ छिड़ी उनकी जंग में धामी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में किया गया एसएलपी प्रकरण पूर्व मुख्यमंत्री TSR को काफी नाराज कर गया है। हाल में बेरोजगार युवाओं पर बरसी पुलिस की लाठियों को दुर्भाग्यपूर्ण करार देकर माफी मांग TSR ने युवा सीएम को असहज कर दिया है।
इतना ही नहीं स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण से मिल रहे चुनौतीपूर्ण मुकाबले में जीत के लिए भी युवा मुख्यमंत्री धामी को अपने सियासी गुरु भगत दा की उपस्थिति मदद पहुंचाने वाली साबित होगी। जाहिर है भले भगत दा का होना पॉवर के नए सेंटर के खड़े होने का जोखिम लिए है लेकिन कम से कम आज के हालातों में गुरु की प्रदेश में एंट्री नुकसान कम और नफा अधिक देती दिख रही है। जाहिर है सीएम धामी भगत दा से मुलाकात में इन तमाम समसामयिक चुनौतियों से पार पाने के मंत्र लेकर लौटे होंगे!