
Axiom-4 मिशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की भागीदारी गगनयान मिशन के लिए भी साबित होगा एक महत्वपूर्ण कदम

Axiom-4: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला और बाक़ी यात्रियों को लेकर स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पहुँच गया है। स्पेस यान करीब 28 घंटे की यात्रा के बाद गुरुवार आज यानी 26 जून को भारतीय समय के अनुसार शाम 4:01 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जुड़ गया। डॉकिंग अनुक्रम भारतीय समयानुसार सवा चार बजे पूरा हुआ। अंतरिक्ष यान के सॉफ्ट कैप्चर के बाद हार्ड-मेटिंग तब पूरी हुई जब दोनों ऑर्बिट बॉडी 12 हुक के सेट के साथ एक-दूसरे से जुड़ गई और उनके बीच संचार और पावर लिंक स्थापित किए गए। अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस स्टेशन पर चढ़ने से पहले हैच खोलने की प्रक्रिया में करीब दो घंटे लगते हैं। इस मिशन में अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन मिशन कमांडर हैं और शुभांशु शुक्ला Axiom-4 mission के लिए मिशन पायलट हैं। यह पहली बार है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा पर गया है।
ज्ञात हो कि स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट ने बुधवार दोपहर 12:01 बजे Axiom-4 mission के अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर फ्लोरिडा के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए सफल उड़ान भरी थी। इसी के साथ भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए सफल उड़ान भरने के साथ ही नया इतिहास रच दिया है। तीन बाकी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ रवाना हुए शुभांशु की यह यात्रा 41 साल बाद किसी भारतीय की पहली अंतरिक्ष यात्रा है। जबकि आईएसएस की यात्रा करने वाले वह पहले भारतीय हैं। उनसे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने रूसी अंतरिक्ष यान सोयूज के जरिए अंतरिक्ष की यात्रा की थी।
Axiom मिशन और भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु की भूमिका

Axiom-4 मिशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की भागीदारी ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक नया अध्याय शुरू किया है। यह मिशन न केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उदाहरण है, बल्कि भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए भी एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। शुभांशु शुक्ला इस मिशन में पायलट की भूमिका में आईएसएस भेजे जा रहे हैं। यानी जिस ड्रैगन कैप्सूल के माध्यम से Axiom-4 मिशन आईएसएस रवाना किया गया है शुभांशु का उसके नेविगेशन में अहम भूमिका निभायेंगे। यहाँ स्पेसक्राफ्ट को आईएसएस पर डॉक कराने से लेकर अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित पहुँचाने तक की ज़िम्मेदारी शुभांशु के कंधों पर ही होगी। दरअसल शुभांशु इस मिशन में सेकंड – इन – कमांड की भूमिका में रहेंगे। यानी सबसे अनुभवी पैगी व्हिटसन के बाद शुभांशु Axiom-4 मिशन के दौरान सबसे अहम भूमिका में होंगे। Axiom-4 मिशन के यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 14 दिन बितायेंगे।
अपने साथ क्या-क्या लेकर जा रहे शुभांशु, ये क्यों अहम?
शुभांशु शुक्ल एग्जियोम मिशन के दौरान अपने साथ इसरो से जुड़े कई उपकरण, एक्सपेरिमेंट के लिए जरूरी वस्तुएं, पौधे और जीवाश्वों को ले गए हैं। इसके जरिए शुभांशु कई प्रयोगों को अंजाम देंगे, जो कि भारत के पहले अंतरिक्ष मिशन- गगनयान के लिए अहम साबित होंगे। इसके अलावा शुभांशु अपने साथ विशेष तौर पर बनाया गया भारतीय खाना भी ले गए हैं। इनमें आम रस, मूंग दाल का हलवा, गाजर का हलवा और चावल से बनी कई चीजें शामिल हैं। यह पहली बार होगा, जब अंतरिक्ष में भारतीय खाना भी पहुंचा है।
- शुभांशु का Axiom-4 मिशन में होना भारत के लिए क्यों बेहद खास ?
अंतरिक्ष में होने वाले एक्सपेरिमेंट
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचकर एग्जियोम मिशन के ज़रिए शुभांशु शुक्ला कुल सात एक्सपेरिमेंट्स करेंगे। इन सभी प्रयोगों के जरिए अंतरिक्ष और पृथ्वी में जीवन के फर्क को लेकर अहम जानकारियां मिलेंगी और यह भारत के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होगा।
- प्रयोग-1: छह फसलों के बीज का परीक्षण
शुभांशु आईएसएस पर छह तरह की फसलों के बीच साथ लेकर गए हैं। अपने 14 दिन के सफर के दौरान वे इन बीजों के माइक्रोग्रैविटी में विकास को लेकर अहम जानकारी इकट्ठा करेंगे। इस प्रयोग का मकसद आने वाले समय में अंतरिक्ष में खेती करने के विकल्पों को तलाशना होगा।
- प्रयोग-2: काई के इस्तेमाल पर एक्सपेरिमेंट
शुभांशु अपने मिशन के लिए माइक्रोएल्गी (Microalgae) यानी काई के तीन स्ट्रेन लेकर पहुंचे हैं। वे कम गुरुत्वाकर्षण के बीच इन्हें खाने, ईंधन और लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशन के दौरान जीवन बचाने के विकल्प के तौर पर प्रयोग में लाएंगे।
- प्रयोग-3: कठिन परिस्थितियों में जीवाश्मों के सुरक्षित रहने पर
Axiom-4 के मिशन में शुभांशु टार्डीग्रेड्स (एक तरह का छोटा जीव, जो कि चरम स्थितियों में भी खुद को सामान्य रख सकता है) पर परीक्षण करेंगे। इसके जरिए यह जानने की कोशिश की जाएगी कि अंतरिक्ष के खतरनाक माहौल में कौन से जीवाणु सुरक्षित रह सकते हैं।
- प्रयोग-4: मांसपेशियों के कमजोर होने पर
एक और प्रयोग के जरिए यह जानने की कोशिश की जाएगी कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में इंसानों में मांस कैसे कम होता है और इससे निपटा कैसे जा सकता है। आमतौर पर लंबी अवधि के मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को मसल एट्रोफी यानी मांस घटने की शिकायत आती है। ऐसे में अंतरिक्षयात्रियों पर पाचन से जुड़े सप्लीमेंट्स का असर देखा जाएगा।
- प्रयोग-5: आंखों पर पड़ने वाला प्रभाव
Axiom-4 मिशन के दौरान एक स्टडी माइक्रोग्रैविटी के आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी की जाएगी। इस रिसर्च में यह पता लगाया जाएगा कि अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स की आंखों की पुतलियों का मूवमेंट किस हद तक प्रभावित होता है। साथ ही इससे किसी की तनाव और सजगता कितनी प्रभावित होती है।
- प्रयोग-6: अलग-अलग फसलों की पोषण गुणवत्ता
मिशन के दौरान कुछ बीजों को अंकुरित करने का प्रयास किया जाएगा। इनके पोषक तत्वों को भी मापा जाएगा, जिससे पृथ्वी और जीरो ग्रैविटी में पैदा हुई फसलों के पोषण में अंतर को समझने का प्रयास किया जाएगा। यह प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के बोझ को घटाएगा, क्योंकि अगर अंतरिक्ष में फसलें बराबर या ज्यादा मात्रा में पोषक होती हैं, तो इन्हें वहीं उगाने की कोशिश की जाएगी।
- प्रयोग-7: यूरिया और नाइट्रेट में सायनोबैक्टेरिया का इस्तेमाल
शुभांशु के सबसे कठिन प्रयोगों में से यह एक रहेगा। दरअसल, अंतरिक्ष में खाना, पानी और ऑक्सीजन की उपलब्धता बड़ी समस्या रही है। खासकर लंबी अवधि के अभियानों के लिए। ऐसे में वैज्ञानिक काफी समय से आईएसएस पर ही इन चीजों की व्यवस्था की कोशिशों में जुटे हैं। अब यूरिया और नाइट्रेट में सायनोबैक्टीरिया का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक यह देखने की कोशिश में हैं कि क्या अंतरिक्ष की जीरो ग्रैविटी में खाना और ऑक्सीजन एक साथ पैदा किए जा सकते हैं। गौरतलब है कि यूरिया और नाइट्रेट दोनों ही खाना बनाने के लिए अहम हैं।