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Baba Tarsem Singh’s Shooter killed in encounter: रणवीर एनकाउंटर के बाद पहली बार उत्तराखंड पुलिस ने दिया मुठभेड़ को अंजाम, इनामी बदमाश अमरजीत ढेर

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Baba Tarsem Singh’s Shooter killed in encounter: उत्तराखंड पुलिस ने देर रात्रि हरिद्वार जिले के भगवानपुर में एसटीएफ के साथ ज्वाइंट ऑपरेशन में बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी शार्प शूटर एक लाख के इनामी बदमाश अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू को मुठभेड़ (police encounter) में मार गिराया। हालांकि उसका साथी पुलिस को चकमा देकर भागने में कामयाब रहा जिसकी धरपकड़ के लिए पुलिस ने अभियान छेड़ रहा है। उत्तराखंड पुलिस और एसटीएफ को इनपुट मिला था कि ये दोनों बदमाश कलियर की तरफ से उत्तराखंड से यूपी में दाखिल होकर भागने की फिराक में थे।

पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार बीती रात्रि भगवानपुर क्षेत्र में चेकिंग के दौरान रोकने का प्रयास करने पर वांछित बदमाशों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी जिसके बाद जवाबी फायरिंग में एक लाख का इनामी बदमाश अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू मारा गया जो डेरा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी है, लेकिन इसी दौरान उसका साथी मौके से भागने में कामयाब रहा। बाबा तरसेम सिंह की 28 मार्च को डेरा में घुसकर बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

हरिद्वार जिले के एसएसपी प्रमेंद्र डोभाल ने बताया कि मुठभेड़ में बदमाश अमरजीत सिंह को गोली लगने के बाद अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। दरअसल नानकमत्ता गुरुद्वारे के बाबा तरसेम सिंह की हत्या में वांछित अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू उत्तराखंड पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ था। ऐसे समय जब लोकसभा चुनावी का बिगुल बजा हुआ तब सरेआम डेरा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह की गोलियों से छलनी कर हत्या करने की घटना ने कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर धामी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था।

विपक्ष लगातार हमलावर था और इसीलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डीजीपी अभिनव कुमार को साफ संदेश दिया था कि अपराधियों की धरपकड़ कर जल्द से जल्द इस केस को सुलझाया जाए। हालांकि बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड का मुख्य आरोपी अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू को जिंदा नहीं पकड़ा जा सका और पुलिस एनकाउंटर में उसे ढेर कर दिया गया। देखना होगा इसका दूसरा फरार साथी कब तक पुलिस गिरफ्त में आता है।

  • चुनाव के दौरान पुलिस एनकाउंटर का पॉलिटिकल मैसेज

बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू के पुलिस एनकाउंटर की असल कहानी तो धीरे धीरे सामने आएगी लेकिन ऐसे में जब उत्तराखंड में पहले चरण में 19 अप्रैल को वोटिंग होगी तब लॉ एंड ऑर्डर के मोर्चे पर पुलिस और एसटीएफ का यह एक्शन कई निहितार्थ लिए हुए है। हो सकता है मुख्य आरोपी को जिंदा पकड़ना पुलिस के लिए असंभव हो रहा हो जिसके चलते आत्मरक्षा में जवाबी फायरिंग की कार्रवाई को अंजाम दिया गया हो लेकिन 2009 में हुए रणवीर सिंह फर्जी एनकाउंटर के बाद उत्तराखंड पुलिस और एसटीएफ ने यह पहला एनकाउंटर किया है।

चुनावी सीजन में हुए इस पुलिस एनकाउंटर के बाद यह मैसेज स्वत: चला गया कि उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार लॉ एंड आर्डर के मोर्चे पर बदमाशों और उपद्रवियों से सख्ती से पेश आएगी। साथ ही जब लगातार कहा जाता रहता था कि उत्तर भारत के कई अपराधी अपने राज्यों में आपराधिक घटना को अंजाम देकर सॉफ्ट स्टेट समझे वाले टूरिस्ट प्रदेश उत्तराखंड में आकर कहीं भी छिपकर शरण ले लेते थे। उत्तराखंड की जेलों में उत्तर भारत के कई अपराधी सजा काट रहे हैं।

बाबा तरसेम सिंह की हत्या जिस तरह से की गई उसके बाद सीएम धामी और उत्तराखंड पुलिस पर भारी दबाव था लेकिन इस एनकाउंटर के बाद स्थिति बदल सकती है क्योंकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में तो योगी आदित्यनाथ सरकार लॉ एंड ऑर्डर के मोर्चे पर टफ इमेज बनाए हुए है ही। इसके चलते ही यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि बुलडोजर बाबा की बनी हुई है और यूपी सीएम खुद कहते रहे हैं कि अपराधी अपराध छोड़ दें या यूपी अन्यथा दुनिया छोड़नी पड़ सकती है।

तो क्या हरिद्वार में हुए एक लाख के इनामी बदमाश अमरजीत सिंह उर्फ बिट्टू के एनकाउंटर से सीएम धामी ने भी संदेश दे दिया है कि वे “फ्लावर नहीं फायर” हैं? देखना होगा विपक्ष इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है।

  • जब फर्जी एनकाउंटर में हुई उत्तराखंड पुलिस को सजा

उत्तराखंड पुलिस की साख पर उस समय काला धब्बा लगा जब दिल्ली हाई कोर्ट ने 22 वर्षीय एमबीए स्टूडेंट रणवीर सिंह के एनकाउंटर को फर्जी करार देते हुए सात पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। तीन जुलाई 2009 को देहरादून पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में उत्तरप्रदेश के रणवीर सिंह की हत्या कर दी थी। पहले उत्तराखंड पुलिस ने पांच जुलाई को दो एफआईआर दर्ज कर मामले की लीपापोती करना चाही लेकिन रणवीर सिंह के पिता रविन्द्र पाल सिंह और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ को लेकर बने आक्रोश के हालात के बाद तत्कालीन सरकार ने केस सीबी सीआईडी को सौंपा और परिवार की मांग पर अलग से एफआईआर दर्ज की गई और भारी विरोध के बाद राज्य सरकार को नौ जुलाई 2009 को यह केस सीबीआई को सौंपना पड़ा। 22 दिसंबर 2009 को सीबीआई 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करती है। 31मार्च 2010 को राज्य सरकार आरोपी पुलिसकर्मियों पर केस चलाने की मंजूरी दे देती है। सुप्रीम कोर्ट यह मामला देहरादून कोर्ट से दिल्ली की सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज को ट्रांसफर कर देता है। 6 जून 2014 को दिल्ली की अदालत सात पुलिस कर्मियों को हत्या का दोषी पाती है और बाकी 10 को आपराधिक षड्यंत्र और अपहरण कर हत्या और एक को सबूत मिटाने का दोषी ठहराती है। 9 जून 2014 को 17 अपराधी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। 14 जुलाई 2014को कुछ दोषसिद्ध पुलिसकर्मी दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हैं। 6 फरवरी 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट 17 में से 7 पुलिस कर्मियों की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हैं। हालांकि इस रणवीर पुलिस एनकाउंटर को कवर करने वाले कई पत्रकार मानते हैं कि अदालत में निचले स्तर के पुलिसकर्मी तो दोषी सिद्ध हो गए लेकिन कई टॉप कॉप खुद को बचाने में कामयाब रहे।

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