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‘वोटिंग मशीन अगर वोटिंग के बाद स्ट्रांग रूम में नहीं है तो समझिये कि पूरा चुनाव ही संदेह के घेरे में..’

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इंद्रेश मैखुरी का आरोप चमोली जिला प्रशासन की लापरवाही और अपरिपक्वता उजागर

(फोटो : महादीप पंवार)
Uttarakhand By-Election: उत्तराखंड में 10 जुलाई यानी आज बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान संपन्न हो गया है। मंगलौर में जहां हिंसा और बवाल की खबर सामने आई हैं वहीं अब बदरीनाथ विधानसभा सीट पर हुए मतदान को लेकर भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने मतदान संपन्न होने के बाद वोटिंग मशीनों के स्ट्रॉन्ग रूम में न पहुंच पाने को लेकर एक गंभीर चिंता प्रकट की है। सोशल मीडिया के माध्यम से इंद्रेश मैखुरी ने चमोली जिला प्रशासन पर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है।
यहां पढ़िए हुबहू भाकपा माले के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने क्या कहा है:-
“जोशीमठ में राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद रहने का आज दूसरा दिन है। इसी बीच बद्रीनाथ विधानसभा के उपचुनाव के लिए आज यहां मतदान भी था। बहुत सारे मतदाता अपने पोलिंग बूथ पर सड़क बंद होने के चलते नहीं पहुंच सके। उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था प्रशासन ने की नहीं क्योंकि प्रशासन और चुनाव आयोग के लिए तो चुनावी रस्म भर अदा करनी थी। एक आपातकालीन स्थिति में वैकल्पिक इंतजाम उनकी किताब में है ही नहीं, सो उन्होंने किया नहीं ! कॉमरेड अतुल सती ने ऐसे इंतजाम करने के लिए कहा तो जिलाधिकारी चमोली ने असमर्थता जता दी और उपजिलाधिकारी जोशीमठ ने तो फोन उठाने का कष्ट भी नहीं किया।
मतदान संपन्न हो चुका है। रात घिर आई है। सामान्य समयों में कायदा यह है कि पोलिंग पार्टियां वोटिंग मशीन सील करके स्ट्रांग रूम में जमा करती हैं। स्ट्रांग रूम गोपेश्वर में है और गोपेश्वर जाने का रास्ता बंद है। तो इन वोटिंग मशीनों का क्या होगा? जब आज सड़क बंद होने का दूसरा दिन है तो इसका विकल्प सोचा जाना चाहिए था ! सबसे आसान तात्कालिक विकल्प यह था कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को विश्वास में लेकर जोशीमठ में अस्थायी स्ट्रांग रूम बनाया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया गया। अब प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि जोशीमठ की पोलिंग पार्टियां अपने बूथों पर ही रहेंगी! प्रशासन के अनुसार पोलिंग एजेंट उनको देख सकते हैं। कायदे से पोलिंग एजेंट तभी तक है, जब तक मतदान हो रहा है। मतदान खत्म तो पोलिंग एजेंट के तौर पर उसकी वैधानिक हैसियत खत्म। और अगर ऐसी भी कोई व्यवस्था है तो वो मुंह जबानी तो नहीं चल सकती है, इसका विधिवत आदेश होना चाहिए और यह चुनाव लड़ने वालों को बताया भी जाना चाहिए। लेकिन ऐसा भी कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा है।
फेसबुक पर जिलाधिकारी चमोली के आधिकारिक पेज पर लिखा है दूरस्थ क्षेत्रों की पोलिंग पार्टियां 11 जुलाई को पहुंचेंगी। इसमें राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने का कोई जिक्र नहीं है, ना इस बात का कि जो पोलिंग पार्टियां राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने के चलते फंसी हैं, उनका और उनके पास मौजूद मशीनों की सुरक्षा का क्या इंतजाम है !

जिला प्रशासन, चमोली, जो वैधानिक रूप से,इस वक्त निर्वाचन आयोग की बाजू की तरह काम कर रहा है, इस पूरे मामले में उसकी अपरिपक्कवता और लापरवाही उजागर होती है। निर्वाचन आयोग की ओर से जो पर्यवेक्षक भेजे गए हैं,वे इस परिस्थिति में क्या सिर्फ तमाशबीन है? राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की भी कोई भूमिका है या नहीं?
चुनाव जैसी बेहद गंभीर और संवेदनशील प्रक्रिया को बेहद अगंभीर और असंवेदनशीलता से संचालित किया जा रहा है, जिसमें विपरीत और आपातकालीन परिस्थितियों के लिए कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं है। वोटिंग मशीन अगर वोटिंग के बाद स्ट्रांग रूम में नहीं है तो समझिये कि पूरा चुनाव ही संदेह के घेरे में है और उसे स्वयं निर्वाचन आयोग और चमोली जिला प्रशासन ही संदेह में डाल रहा है।”

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