देहरादून: कांग्रेस नेतृत्व ने उत्तराखंड में मिशन 2022 को लेकर अपने सूरमाओं का ऐलान कर दिया है। एक ही झटके में कैंपेन कमेटी चेयरमैन, नए पीसीसी चीफ, सीएलपी लीडर से लेकर तमाम कमेटियों का भी ऐलान कर दिया गया है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व ने सबको समायोजित करने की खूब कोशिश की है। लेकिन कई बार सियासत के खेल में सब कुछ पाकर भी बहुत कुछ छूट जाता है।
कांग्रेस की गुरुवार शाम रिलीज़ हुई तमाम कमेटियों और नए चेहरों के ऐलान का अगर विश्लेषण करें तो एक बात समझ आती है कि आलाकमान ने पूर्व सीएम हरीश रावत यानी हरदा को काफी ताकत देकर भी उनका सबकुछ पा लेने का भ्रम दूर कर दिया है। हरदा की पसंद गणेश गोदियाल अध्यक्ष बना दिए गए हैं और कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर प्रो जीतराम को भी उनका करीबी समझा जा सकता है। तिलकराज बेहड़ के साथ भी हरदा की मौजूदा सियासी हालात में रणनीतिक पटरी बैठ पा रही है।
लेकिन दो कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत रावत और भुवन कापड़ी को जगह देकर पार्टी आलाकमान ने बैलेंस करने की कोशिश कर दी है। जाहिर है ये बैलेंसिंग एक्ट टीम हरदा को अखर रहा और हरदा के सबसे क़रीबियों में शुमार धारचूला विधायक हरीश धामी की कांग्रेस छोड़ने की धमकी इसी बिगड़े ज़ायक़े का परिणाम समझिए। खास तौर पर रंजीत रावत की चुनावी बिसात पर एंट्री हरीश रावत के लिए पचाना कठिन होगा क्योंकि इंदिरा ह्रदियेश के बाद अब प्रीतम को रंजीत का साथ मिलने से हरदा कैंप को झटका लगा है।
कैंपेन कमिटी की कमान देकर हरदा को उनके करीबी प्रदीप टम्टा और दिनेश अग्रवाल भी देकर फुल कमांड दे दी है लेकिन आर्येन्द्र शर्मा को कोषाध्यक्ष बनाकर फिर संतुलन साधने का दांव खेल दिया गया जो हरदा कैंप को लाज़िमी तौर पर अखरेगा लेकिन इससे प्रीतम कैंप को राहत मिल गई।
जाहिर है कांग्रेस आलाकमान ने बैलेंसिंग एक्ट खेला है लेकिन चुनाव से पहले सबकुछ अपने पाले में लाने की रणनीति पर चल रहे हरदा कैंप को काफी मिला पर कुछ दर्द ऐसे भी मिले जिनकी दवा शायद धामी के कांग्रेस छोड़ने जैसी धमकी के दांव से मिले लेकिन संभावना बहुत कम ही है अब!