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धामी सरकार को त्रुटि का हुआ अहसास! पूर्व CS इंदु कुमार पांडे वेतन विसंगति समिति से पीछे हटे, कार्मिकों के लिए आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाले हालात, मुख्य सचिव की पुरानी व्यवस्था होगी बहाल या फिर एक और पूर्व CS को मिलेगा रोजगार

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देहरादून: धामी सरकार ने 27 जुलाई को कैबिनेट बैठक में बड़ा निर्णय लेते हुए कार्मिकों की वेतन संबंधी विसंगतियों और संशोधित सुनिश्चित कैरिअर प्रोन्नयन यानी MACP को लेकर आ रही शिकायतों के निदान के लिए पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्णय लिया था। अब खबर आ रही है कि पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे ने वेतन समिति की अगुआई करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। अब हाथ पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे ने खड़े कर दिए हैं या फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उनकी सलाहकार टीम को अहसास हो गया है कि इंदु कुमार पांडे के पूर्व के अनुभव को निराशाजनक बताते हुए कार्मिक वर्ग इस वेतन समिति के गठन से पहले ही अपने हितों को लेकर आशंकित हो गया है। बड़ा सवाल यह है कि अगर इंदु कुमार पांडे पीछे हटे या हटने का संकेत पा गए, इससे महत्वपूर्ण है कि अब वेतन विसंगति समिति की अध्यक्षता कौन करेगा? चर्चा है कि पूर्व मुख्य सचिव आलोक कुमार जैन के नाम पर टीम पुष्कर धामी विचार कर रही है। नाम दूसरे पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार का भी दौड़ाया जा रहा है। लेकिन इस सबके बीच कार्मिक संगठनों की चिन्ता बढ़ गई है, क्योंकि कार्मिक संगठन MACP और वेतन विसंगति के मसले को अलग-अलग करके देखने की मांग कर रहे हैं।

सचिवालय संघ ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से वेतन विसंगति को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी की पुरानी व्यवस्था बहाली की अपील की है। सचिवालय संघ की तरफ से कहा गया है कि वेतन विसंगति समिति के अध्यक्ष के दायित्व ग्रहण न करने का संज्ञान विभिन्न समाचार पत्रों व सोशल मीडिया के माध्यम से हुआ है। यह कहीं न कहीं मुख्यमंत्री के समक्ष सचिवालय संघ व प्रदेश के अन्य कार्मिक सेवा संघों द्वारा कार्मिकों के हित में दर्ज किये गए विरोध का ही असर है।

इस सम्बन्ध में सचिवालय संघ की ओर से मुख्यमंत्री से पुनः अनुरोध व मांग की गयी है कि कार्मिक वर्ग के व्यापक सेवा हित को देखते हुए इस प्रकार की सभी समितियों को वापस लेकर पूर्व से स्थापित व्यवस्था के अन्तर्गत वेतन विसंगति के सभी मामले मुख्य सचिव के स्तर पर ही एक नियत अवधि में निस्तारित कराने की व्यवस्था अमल में लाई जाए। साथ ही कार्मिकों की अन्य जायज मांगों जैसे गोल्डन कार्ड को CGHS के अर्न्तगत किये जाने, एम0ए0सी0पी0 के स्थान पर एसीपी की 10, 16, 26 की पुरानी व्यवस्था, कार्मिक विभाग की शिथिलीकरण नियमावली 2010 को पुनः लागू कराने, पुरानी पेंशन बहाली पर राज्य सरकार का संकल्प पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजे जाने आदि पर वित्त, कार्मिक व सम्बन्धित विभाग के सेवारत आला अधिकारियों को ही उत्तरदायी बनाते हुये उनसे ही अपेक्षित कार्य लेते हुये कार्मिक वर्ग के ऐसे सभी मुद्दों को निस्तारित कराने की व्यवस्था अमल में लाया जाना ज्यादा श्रेष्यकर व अनुकूल होगा।

उत्तराखंड सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी का कहना है कि कार्मिक वर्ग को सदैव बड़ी चिन्ता रहती है कि उनकी समस्याओं पर बनायी जाने वाली कोई भी समिति कभी भी उनके सेवा हितों के अनुकूल कार्य नही करेगी। ऐसी समितियां सिर्फ अपना कार्यकाल ही विस्तारित करने का काम करती आई हैं तथा कार्मिकों के मामले कभी निस्तारित न होकर अधर में ही लटकाये जाते रहे हैं। पूर्व में वेतन विसंगतियों को लेकर बनी इंदु कुमार पांडे समिति का रहा निराशाजनक अनुभव भविष्य को लेकर भी चिन्तित कर रहा है।

दरअसल, कार्मिक संगठन MACP के साथ-साथ वेतन संबंधी लंबित मामलों को हल न होने से खफा हैं। सातवाँ वेतनमान देने के साथ ही प्रदेश में एमएसीपी योजना लागू की गई थी लेकिन लगातार संशोधित वेतनमानों का विरोध किया जा रहा है। इनके निपटारे को धामी कैबिनेट ने पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार समिति की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला किया था जिसका शासनादेश जारी हो गया। समिति में बतौर सदस्य अपर सचिव वित्त अमिता जोशी, अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान एवं वित्त विभाग के एक अन्य अपर सचिव भी शामिल हैं।इस समिति को तीन माह में विसंगतियों को दूर कर कार्मिकों की वेतन व्यवस्था दुरुस्त करने के बारे में रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपनी है। लेकिन अब इंदु कुमार पांडे पीछे हट रहे हैं और कार्मिक वर्ग भी शुरू से उनके विरोध में मुखर दिख रहा।


सवाल है कि क्या धामी सरकार एक रिटायर्ड आईएएस के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी या फिर कार्मिक वर्ग की मांग के अनुरूप मुख्य सचिव और वित्त विभाग के सचिवों की टीम के साथ समयबद्ध तरीके से समाधान के लिए स्थाई व्यवस्था बनाती है।

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