हरिद्वार: कोरोना महामारी को भी कुछ लोग आपदा में अवसर के रूप में देख रहे हैं। फिर महाकुंभ जैसा आयोजन मिल जाए तो ऐसे लुटेरों की समझो पौ बारह! कम से कम कोरोना के फ़र्ज़ी टेस्टिंग का जो खेल की परतें हर दिन जिस प्रकार से उजागर हो रही हैं उससे तो यही लग रहा है। महाकुंभ के दौरान अकेले मेला प्रशासन ने साढ़े नौ करोड़ की जांच कराई गई और अब निजी लैब का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद शासन सं लेकर हरिद्वार जिला प्रशासन जांच का झुनझुना लेकर निकल पड़े हैं। लेकिन जांच शुरू होने से पहले ही दो निजी लैब तीन करोड़ रु से ऊपर के बिल के एवज में भुगतान भी करा चुकी हैं। अब जब नींद खुली है तब नौ प्राइवेट लैबों की के भुगतान को रोका गया है.
ज्ञात हो कि पिछले हफ्ते एक प्राइवेट लैब द्वारा एक लाख से ज्चादा फ़र्ज़ी डॉक्यूमेंट और एक ही व्यक्ति के नंबर-पते पर सैंकड़ों टेस्ट फ़र्ज़ी तरीके से कर दिए। यानी टेस्टिग हुई नहीं लेकिन बिलिंग करके सरकार को चूना लगा दिया गया। ग़ौरतलब है कि कोरोना काल में कुंभ हो रहा था जिसके चलते नैनीताल हाईकोर्ट ने हर दिन पचास हजार टेस्ट करने के सख्त निर्देश दिए थे।लेकिन सरकार पचास हजार टेस्ट को एक भी दिन नहीं करा पाई लेकिन जो टेस्ट कराए गए उसमें बड़ा फर्जीवाड़ा हो गया।
दरअसल, सरकार ने 11लैब पैनल में शामिल की और आरटीपीसीआर के प्रति टेस्ट पांच सौ रुपए और एंटीजन टेस्ट के 354 रु प्रति टेस्ट तय किए थे। इस हिसाब से मेला प्रशासन ने 2 लाख 51 हजार टेस्ट कराए जिसमें 44,278 RT-PCR जिसका बिल 2 करोड़ 21 लाख 39 हजार रु बना। जबकि 2 लाख 6 हज़ार 722 एंटीजन कोविड टेस्ट कराए गए जिसका खर्च 7 करोड़ 31 लाख 79 हजार 588 बना। इस तरह 9 करोड़ 53 लाख 18 हजार 588 रु बना और दो लैब को इसमें से 3 करोड़ से ज्यादा अदा कर दिए।हरिद्वार की नोवस पैथ लैब को 2 करोड़ 41 लाख और देहरादून की डीएनए लैब को 84 लाख 57 हजार का भुगतान कर दिया गया है। हालाँकि फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद नौ लैबों का करीब छह करोड़ का बिल होल्ड कर दिया गया है।
उधर, सरकार की पेशानी पर बल बढ़ता जा रहा है क्योंकि विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया है और कांग्रेस तो सीबीआई जांच की मांग कर रही है। जबकि आम आदमी पार्टी ने इसे सरकार की तरफ से फ़र्ज़ी आंकड़ेबाजी का खेल करार दिया है। वहीं एसडीसी फ़ाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि एक अप्रैल के डेटा से ही इशारा हो गया था कि कुंभ में हरिद्वार जिला प्रशासन की नाक के नीचे गड़बड़झाला हो रहा है। महाकुंभ के शुरुआती दिनों में स्पष्ट हो गया था कि कोविड टेस्ट के नाम पर कुछ गलत हो रहा है। हालांकि, उत्तराखंड में अधिकारियों ने इन गड़बड़ियों को न तो महसूस किया और न ही इन पर कोई एक्शन लिया। सरकार के पास डेटा विश्लेषण तंत्र मौजूद था, यदि हम इसका लाभ उठाते तो महाकुंभ शुरू होते ही इस पूरी गड़बड़ी को टाला जा सकता था।
पहले दिन यानी 1 अप्रैल, 2021 से हरिद्वार जिले का पॉजिटिविटी रेट बेहद कम था। इसी दिन जिले में पाॅजिटिविटी रेट उत्तराखंड के अन्य 12 जिलों की तुलना में 75% कम था। 2 अप्रैल को यह अंतर 20% था। 4 अप्रैल को हरिद्वार में पाॅजिटिविटी रेट अन्य 12 जिलों की तुलना में 85% कम था।इतना सब साफ नजर आने के बाद भी यदि किसी ने जांच करने की जहमत नहीं उठाई, तो यह हमारे प्रबंधन और शासन करने की क्षमता पर एक बड़ा सवाल है, जो कि दुखद है। यदि ध्यान देने के बाद भी किसी ने कुछ नहीं कहा तो यह सीधी-सीधी बड़ी लापरवाही है। हम उम्मीद रखते हैं की इस प्रकरण के बाद उत्तराखंड सरकार अपने डाटा फ्रेमवर्क को मजबूत करने की दिशा मे काम करेगी।