
Backdoor Recruitment Scam in Uttarakhand Assembly and double standard of Dhami Govt as well as Speaker Ritu Khanduri Bhushan, Harish Rawat questions: धामी की तारीफ में कई मौकों पर कशीदे पढ़ते रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधानसभा में बैकडोर भर्तियों को निरस्त करने के मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घेराबंदी करनी शुरू कर दी है। हरदा ने धामी पर डायरेक्ट अटैक करते हुए उनको कटघरे में खड़ा किया है कि बर्खास्त कर्मचारियों की SLP सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने पर मुख्यमंत्री अपनी पीठ क्यों ठोक रहे हैं?

रावत ने सीएम को लपेटते हुए पूछा है कि क्या विधि विहीन नौकरी देने और दिलवाने वालों की गलती नहीं है? और अगर है तो विधि विहीन नौकरी देने वाले प्रेमचंद अग्रवाल आपके बगल में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री के रूप ने विराजमान हैं।
हरदा ने मुख्यमंत्री पर हमला तेज करते हुए कहा कि विधि विहीन नौकरी दिलाने वाले कई लोग आपके आसपास होंगे। जाहिर है हरदा ने वित्त व संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के बहाने मुख्यमंत्री पुष्कर की कमजोर नस दबा दी है।
आखिर यह किसी को भी कैसे हजम हो सकता है कि स्पीकर रहते जो व्यक्ति एक दो नहीं बंपर नौकरियों की बंदरबांट अवैध तरीके से कर डालता है और मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष इन नियुक्तियों को अवैध ठहरा दंडित कर देती हैं। लेकिन प्रेमचंद अग्रवाल उन्हीं मुख्यमंत्री धामी के बगलगीर बने शान से सरकार में कद्दावर मंत्री बने रहते हैं जिनके द्वारा की गई नियुक्तियों को अवैध मान स्पीकर कार्रवाई करती हैं तो वाहवाही बंटोरने में वे भी पीछे नहीं रहते हैं?
जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण के एक्शन के बाद कुंजवाल के बहाने कांग्रेस तो अग्रवाल के जरिए पूरा सत्तापक्ष भी उसी हमाम में नंगा खड़ा नजर आ रहा है। लिहाजा हरदा भले अपने करीबी कुंजवाल के अवैध कृत्य का जैसे तैसे बचाव करते आए हों लेकिन आज जो सवाल वे खड़े कर रहे हैं उनका जवाब देने में धामी का गला भी सूख जाएगा।
अगर नहीं तो हरदा के इस सवाल का जवाब क्या हो सकता कि बैकडोर से विधानसभा में नौकरी पाने वाले दोषी हैं तो बंदरबांट कर नौकरी देने और दिलाने वाले “साधुवाद” के पात्र कैसे हो गए?
आखिर अकेले अवैध नौकरी पाने वाले दंडित होंगे और प्रेमचंद अग्रवाल सीएम के बगल में बैठकर सत्ता सुख भोगेंगे? फिर तो UKSSSC पेपर लीक कांड के मास्टरमाइंड मूसा और हाकम सिंह को गैंगस्टर लगाकर जेल में डालने की बजाय सिर्फ पेपर पाकर नकल करने वाले अभ्यर्थियों को सजा देकर हाकम को बाइज्जत सत्ताधारी दल में प्राप्त पूर्व वाली हैसियत दे देनी चाहिए!
हालांकि इस बात के लिए उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण की हमेशा तारीफ की जाएगी कि उन्होंने दीमक की तरह राज्य के सिस्टम को चट कर रहे “भर्ती भ्रष्टाचार” पर मारक प्रहार किया, लेकिन उनके सेलेक्टिव एक्शन के बाद अब पहाड़ से मैदान, सत्तापक्ष से लेकर विपक्षी कॉरिडोर्स में सवाल यही उठ रहा है कि आखिर उसी तरह की बंदरबांट में बैकडोर से नौकरी 2016 के बाद बांटी गई और उसी अंदाज में उससे पहले अंतरिम सरकार से दूसरी विधानसभा के कार्यकाल तक। फिर एक्शन सिर्फ 2016 से 2021 के बीच स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा किए गए अवैध कृत्यों और “भर्ती भ्रष्टाचार” पर ही हंटर क्यों चला? आखिर उससे पहले रहे विधानसभा अध्यक्षों द्वारा की गई लूट पर पर्दा क्यों डाल दिया जा रहा? क्यों न अंतरिम सरकार में सूबे के पहले स्पीकर बने स्वर्गीय प्रकाश पंत से लेकर यशपाल आर्य और स्वर्गीय हरबंस कपूर द्वारा कराई गई बंदरबांट का हिसाब भी मांगा जाना चाहिए?
जाहिर है स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने विधानसभा में चलते आ रहे बैकडोर “भर्ती भ्रष्टाचार” पर अपने तरकश से जो धारदार तीर चलाया है, वह आने वाले दिनों में उत्तराखंड के पूरे राजनीतिक समूह को लहूलुहान करता दिखेगा क्योंकि कटघरे में कांग्रेस है तो बीजेपी भी। खास बात यह है कि कुंजवाल को उनके अवैध कृत्य की एक सजा 2022 में जनता जनार्दन दे चुकी है और उन पर कानूनी डंडा चलाने के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपने करीबी दागी मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का मोह त्यागना होगा। सवाल है कि क्या “धाकड़” धामी अग्रवाल को कैबिनेट से बर्खास्त कर भ्रष्टाचार पर जो अभियान ऋतु खंडूरी भूषण ने छेड़ा है उसमें आहुति देने का साहस दिखा पाएंगे? साहस स्पीकर खंडूरी को भी 2016 से पहले चले “भर्ती भ्रष्टाचार” को लेकर दिखाना होगा। तब तक इस मुद्दे की चिंगारी रह-रहकर धामी सरकार को झुलसाती रहेगी।
यहां पढ़िए हुबहू हरदा ने क्या कहा?
विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों की एसएलपी के खारिज होने पर मुख्यमंत्री जी अपनी पीठ ठोक रहे हैं। वह उत्तराखंडी का स्वभाव है, जहां भी उसको नौकरी मिलेगी, नौजवान वहां पर टूट पड़ेगा। विधानसभा में 2001 से भर्तियां हो रही हैं उनकी क्या गलती है, जिन्होंने उन नौकरियों को प्राप्त कर लिया? और यदि गलती है भी तो केवल क्या उन्हीं की गलती है?
विधि विहीन नौकरी देने वालों की गलती नहीं है या दिलवाने वालों की गलती नहीं है? विधि विहीन नौकरी देने वाला एक व्यक्ति आज भी आपके बगल में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री के रूप में विराजमान हैं और दिलवाने वाले कई लोग, आपके आस-पास होंगे तो केवल नौकरी को ही सब कुछ मानने वाले इन उत्तराखंडी नौजवानों की ही गलती है?
उनको ही दंडित होना चाहिए? या ऐसे लोगों की भी निंदा विधानसभा को करनी चाहिए जिन्होंने इस तरीके की नियुक्तियां की हैं या करवाई हैं और फिर अभी तो 2016 से पहले की ऐसी नियुक्तियों के लोग विधानसभा का संचालन कर रहे हैं!
यदि नियुक्तियां विधि विरुद्ध हैं तो ऐसे विधि विरुद्ध नियुक्त पाये हुये लोग नियमितीकरण के आड़ में नहीं बच सकते हैं! अपराध कभी भी किया गया हो, उसका दण्ड तो रिटायरमेंट के बाद भी दिया जा सकता है, यदि विधानसभा में नियुक्ति पाना अपराध है तो यह अपराध 2001 से लेकर अभी-अभी तक नियुक्ति पाये प्रत्येक व्यक्ति ने किया है, यहां तो अभी भी लोग सेवारत हैं।
क्या विधानसभा में विधि विहीन तरीके से नियुक्त व्यक्ति कार्यरत रहना चाहिए? माननीय अध्यक्षा जी विदुषी महिला हैं, यदि समाधान चाहती हैं तो विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस समस्त प्रकरण पर चर्चा करें और निर्णय लें। अन्याय या भेदपूर्ण न्याय, किसी संस्था को महान नहीं बनाते हैं।
सनत रहे, इन नियुक्तियों में 2001 से अब तक मैं ही एकमात्र ऐसा भूत या वर्तमान हूं जिसका कोई भी आत्मज़ या निकटस्थ व्यक्ति विधानसभा में नौकरी नहीं पाया है।
जय उत्तराखंड।।
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Pushkar Singh Dhami Ritu Khanduri
हरीश रावत ,पूर्व मुख्यमंत्री