देहरादून: इसे कांग्रेस नेतृत्व की रणनीतिक चूक ही कहा जाएगा कि जो नेता अपने राज्य में चुनाव कैंपेन कमेटी की अगुआई कर रहे हैं उन्हीं के कंधों पर दूसरे चुनावी राज्य का पार्टी प्रभार भी है। दूसरा राज्य भी वो जहां पार्टी सत्ता में है और आंतरिक कलह कुरुक्षेत्र से दो-चार है। लेकिन अब हरीश रावत ने तय कर लिया है कि वे कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर पंजाब के प्रभारी पद से खुद को रिलीव करने का आग्रह करेंगे।
दरअसल, कैप्टेन वर्सेस सिद्धू के ज़रिए पंजाब में पार्टी के भीतर छिड़ा कलह कुरुक्षेत्र अब न सिर्फ पंजाब में कांग्रेस की चुनावी जीत की संभावनाओं पर असर डाल रहा है बल्कि चुनावी राज्य उत्तराखंड में पार्टी की धार को भी कुंद कर रहा है।
कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब के पार्टी प्रभारी महासचिव हरीश रावत को ही उत्तराखंड में कांग्रेस की कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बना दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उसी अंदाज में धामी सरकार और बीजेपी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल लोहा भी ले रहे लेकिन आए दिन के पंजाब के पचड़े हरदा के हमलावर तेवरों की धार कुंद कर दे रहे।
ताजा घटनाक्रम में तो जिस तरह से पंजाब कांग्रेस के असंतुष्ट नेता-विधायक देहरादून पहुंच गए और हरीश रावत के स्तर पर उनकी मान-मनौव्वल शुरू हुई इसने कांग्रेस को दोहरा झटका दिया है। एक तो पंजाब कांग्रेस का कलह उत्तराखंड तक पहुंच गया तो इससे बीजेपी को विपक्षी दल की एकजुटता की पोल खोलने का मौका मिल गया। दूसरा, जिस वक्त उत्तराखंड में विधानसभा का सत्र चल रहा है और विपक्ष के नाते नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की अगुआई में विधायक सदन में सरकार पर हमलावर तेवर अपनाए हैं, तब सदन के बाहर से हरदा के पास लगातार हल्लाबोल का अवसर था। लेकिन पंजाब के पचड़े में उलझकर हरदा को देहरादून से दिल्ली दौड़ लगानी पड़ रही।
यही वजह है कि अब हरदा ने कांग्रेस हाईकमान के सामने इस संकट को रखने का फैसला कर लिया है। क्योंकि पंजाब और उत्तराखंड में एक साथ चुनाव होने हैं और मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह बनाम पीसीसी प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू में सुलह-शांति स्थापित होती नहीं दिख रही। रह-रहकर दोनों कैंप आमने-सामने आ जा रहे हैं। लिहाजा अब हरदा ने पंजाब से हाथ खड़े कर सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड पर फोकस करने का मन बना लिया है।
वैसे भी उत्तराखंड में सत्ताधारी बीजेपी भी हरीश रावत की ही घेराबंदी की रणनीति पर काम कर रही है। कुमाऊं से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बाद अजय भट्ट को केन्द्रीय राज्य मंत्री बनाकर यही मैसेज दिया गया है। मुद्दों पर मोर्चा लेने की बात करें तो भी हरीश रावत ही हैं जो दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों से लेकर मौजूदा सीएम धामी को सरकारी नीतियों को लेकर आईना दिखा रहे तो सांलद अनिल बलूनी, मंत्री हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य के साथ भी ज़ुबानी जंग जब-तब चलती रही है। ऐसे में कांग्रेस नेतृतव को सोचना पड़ेगा कि दो नावों पर हरदा की सवारी से उसे पंजाब से लेकर उत्तराखंड तक फायदा कितना मिल रहा और घाटा कितना उठाना पड़ सकता है।