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विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाला: High Court ने कर्मचारियों को बर्खास्त करने के स्पीकर के फैसले पर लगाई रोक, इंद्रेश ने कहा सिर्फ स्टंटबाजी था

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  • स्पीकर ऋतु खंडूरी द्वारा एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश पर लिए निर्णय पर कोर्ट ने रोक लगाई

HC stays Speaker Ritu Khanduri decision on Assembly Backdoor recruitment: उत्तराखंड विधानसभा स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण द्वारा तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश पर बैकडोर से पूर्व विधानसभा अध्यक्षों द्वारा भर्ती की गए कर्मचारियों को बर्खास्त करने के फैसले पर रोक लगा दी है। ज्ञात हो कि स्पीकर ऋतु ने पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा की गई भर्तियों को निरस्त कर दिया था। इनमें 228 तदर्थ और 22 उपनल के जरिए की गई नियुक्तियों को निरस्त कर धमाका कर दिया था।


कोर्ट ने स्पीकर के इस फैसले पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी है और विधानसभा सचिवालय को चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार चाहे तो रेगुलर नियुक्ति की प्रक्रिया जारी रख सकती है और अब मामले में अगली सुनवाई 19, दिसंबर को होगी।

हालांकि हाई कोर्ट की रोक के बाद सरकार और स्पीकर पर राजनीतिक हमला भी तेज हो गया है। राज्य आंदोलनकारी और सीपीआईएमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने प्रेस बयान जारी कर कहा है कि


विधानसभा के बर्खास्त कर्मचारियों की नियुक्ति पर उच्च न्यायालय से लगी रोक दर्शाती है कि यह कार्यवाही सिर्फ स्टंटबाजी थी। इन कर्मचारियों की नियुक्ति में वैधानिक प्रक्रिया नहीं अपनाई गयी और इन्हें हटाते समय भी किसी वैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन किया गया। विडंबना यह है कि इस अवैधानिकता का लाभ नियुक्ति और बर्खास्तगी, दोनों ही बार बैक डोर इंट्री से आये कर्मचारियों को हुआ।
विधानसभा के इन बर्खास्त कर्मचारियों को बच निकलने का यह रास्ता इसलिए दिया गया क्योंकि पूर्व विधानसभा अध्यक्षों के करीबी हैं, उनकी कृपा से विधानसभा में नियुक्ति पाए हुए हैं। अदालती रास्ते के राज्य की सत्ता में बारी बारी बैठने वाले भाजपा-कांग्रेस के चहेतों को अवैधानिक तरीके से बच निकलने का रास्ता भाजपा सरकार द्वारा दिया गया है।
प्रदेश के आम युवाओं के साथ पुनः छल किया गया है. मेहनत से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के मुँह पर यह करारा तमाचा है।
विधानसभा में बैक डोर से नियुक्ति पाए कर्मचारियों को यह बच निकलने का रास्ता इसलिए मिल पाया क्योंकि उनको नियुक्त करने वालों यानि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विरुद्ध कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गयी। कानूनी रूप से गलत नियुक्ति पाने वाले से गलत नियुक्ति करने वाला अधिक जिम्मेदार है। लेकिन उत्तराखंड सरकार और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा जानबूझ कर इस कानूनी पहलू की उपेक्षा की गयी.
भाकपा (माले) द्वारा 19 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख कर यह माँग की गयी थी और हम पुनः यह दोहराना चाहते हैं कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज करके उनको गिरफ्तार किया जाए। यह कार्यवाही अमल में लाने के बाद ही बर्खास्त कर्मचारियों की बर्खास्तगी को अदालत में सही ठहराया जा सकेगा। अन्यथा की दशा में तो यह स्पष्ट है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार और विधानसभा अध्यक्ष इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी के स्टंट पर वाहवाही बटोर कर इन्हें बच निकलने का रास्ता दे रहे हैं।

इन्द्रेश मैखुरी

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