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जेल में डॉन की दीक्षा: आईजी जेल पद पर आईपीएस बनाम आईएएस बहस फिर छिड़ी

2014 में हरीश रावत सरकार के समय उत्तराखंड गठन के बाद पहली बार आईजी जेल पद पर आईएएस को उठाकर आईपीएस को काबिज कराया गया था। आईपीएस अफसर के रूप में तब आईजी ट्रेनिंग रहे पीवीके प्रसाद को आईजी जेल का जिम्मा सौंपा गया था।

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Uttarakhand News: उत्तराखंड की अल्मोड़ा जिला कारागार में अंडरवर्ल्ड डॉन पीपी उर्फ प्रकाश पांडे को श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा द्वारा दीक्षा देकर मठाधीश बनाने की घटना ने जेलों में चल रहे अवैध खेल का नए सिरे से भंडाफोड़ कर दिया है। इससे पहले सितारगंज जेल में छापेमारी के दौरान 66 फोन मिल चुके हैं और पिछले साल हल्द्वानी जेल में बड़ी संख्या में कैदी एचआईवी पॉजिटिव मिलने के बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने जेलों में ड्रग्स की सप्लाई से लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे।

आजीवन कारावास की सजा काट रहे अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन के शूटर गैंगस्टर पीपी को जेल में ही गुपचुप दीक्षा देकर जूना अखाड़ा ने प्रकाशानंद गिरी नाम देकर उत्तराधिकार में गंगोत्री भैरव मंदिर, गंगोलीहाट के लंबकेश्वर महादेव मंदिर, मुनस्यारी में कालिका माता मंदिर और काला मुनि मंदिर का मुख्य महंत बना दिया गया।

हत्या, फिरौती, अपहरण से लेकर अनेक अपराधों में सजायाफ्ता पीपी को मठाधीश बनाने की खबर बाहर आते ही, यह जंगल की आग की तर्ज पर देहरादून-हरिद्वार से लेकर दिल्ली तक दौड़ गई है। एक तरफ उत्तराखंड गृह विभाग ने जांच बिठा दी है तो दूसरी तरफ जूना अखाड़ा की तरफ से मामले की जांच कराई जा रही है। लेकिन इस प्रकरण ने एक बार फिर आईजी जेल पद पर आईपीएस संवर्ग बनाम आईएएस संवर्ग की बहस को हवा दे दी है।

दरअसल, 2014 में हरीश रावत सरकार के समय उत्तराखंड गठन के बाद पहली बार आईजी जेल पद पर आईएएस को उठाकर आईपीएस को काबिज कराया गया था। आईपीएस अफसर के रूप में तब आईजी ट्रेनिंग रहे पीवीके प्रसाद को आईजी जेल का जिम्मा सौंपा गया था। प्रसाद से पहले आईजी जेल के पद पर आईएएस कोटे से विनोद शर्मा काबिज थे।

राज्य बनने के बाद पहली बार आईएएस से लेकर आईजी जेल का जिम्मा आईपीएस को देने के पीछे तब तर्क दिया गया था कि पुलिस महकमे का जेल प्रशासन के साथ बेहतर कोऑर्डिनेशन होगा और इससे जेल के भीतर से संचालित होने वाले अपराधों को काबू किया जा सकेगा।

अल्मोड़ा जिला कारागार में जिस तरह से अंडरवर्ल्ड डॉन पीपी को दीक्षा देकर मठाधीश बनाया गया है उसके बाद सवाल उठ रहा है कि क्या इतने वर्षों में प्रदेश की जेलों के हालात सुधरे? साथ ही क्या आईजी जेल पद पर आईपीएस की तैनाती के बाद पुलिस व जेल प्रशासन में बेहतर कोऑर्डिनेशन कायम हो पाया या फिर यह आईपीएस बनाम आईएएस संवर्ग की वर्चस्व की जंग भर साबित हुआ है? क्योंकि जिलाधिकारी ही जेल का संरक्षक होता है और ऐसे में आईएएस अधिकारी का आईजी जेल होने का मतलब भी बेहतर कोऑर्डिनेशन हो सकता है।

दरअसल, आईजी जेल पद आईएएस से आईपीएस कैडर को हासिल होने की सबसे बड़ी वजह थी कुख्यात बदमाश अमित उर्फ भूरा का पुलिस अभिरक्षा से फरार हो जाना। बदमाश भूरा को मुजफ्फरनगर में दर्ज मुकदमों में पेशी के लिए देहरादून से बागपत ले जाया गया था जहां घात लगाए उसके साथियों ने उत्तराखंड पुलिस के जवानों की आंखों में मिर्च स्प्रे फेंककर उसे फरार करा लिया और बदमाश पुलिस से दो एके-47 और एक एसएलआर भी लूटकर ले गए थे।

कैदी भूरा की फरारी की घटना में पुलिस का तर्क रहा कि ऐसे मामलों में साजिश जेल से रची जाती और वहां पुलिस की सीधी पहुंच नहीं रहती है। लिहाजा जेलों से अपराध संचालित हो रहे होते हैं और पुलिस कुछ कर नहीं कर पाती है। जांच में बदमाश भूरा की बैरक से मोबाइल और बैटरी बरामद हुई थी।

हालांकि प्रदेश में आईजी जेल पद आईपीएस संवर्ग से लेकर वापस आईएएस संवर्ग को देने की तैयारी 2019 में भी हुई थी। लेकिन तब भी यह कैबिनेट में नहीं आ सका था जिसके चलते आईएएस कैडर आईजी जेल पद से महरूम रह गया।

अब जब जेलों में सुधार की दिशा में कुछ खास काम नहीं हो पाए हैं और जेलों दे अपराध संचालित होने से लेकर मोबाइल फोन जब्त होने जैसी घटनाओं के बाद अंडरवर्ल्ड डॉन प्रकाश पांडे का दीक्षा कांड हुआ है उसने नए सिरे से शासन स्तर पर यह मुद्दा जीवंत हो गया है।

 

सवाल है कि क्या अल्मोड़ा जेल में हुई इतनी बड़ी लापरवाही के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी क्या रुख अख्तियार करते हैं। जाहिर है उनका रुख भी बहुत हद तक गृह विभाग द्वारा कराई जा रही जांच के रिजल्ट पर निर्भर कर सकता है।

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