देहरादून: कोरोना की दूसरी लहर में देश के स्वास्थ्य मंत्री के नाते हालात संभालने में नाकाम रहे डॉ हर्षवर्धन को इस्तीफा देना पड़ता है। लेकिन उत्तराखंड में हरिद्वार कुंभ में लाखों फ़र्ज़ी कोविड टेस्टिंग कर सरकार को राजस्व चूना लगाया जाता है, देश-दुनिया में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन में हुए इस फर्जीवाड़े से उत्तराखंड की भारी बदनामी हो जाती है। लेकिन एसआईटी प्राइवेट लैब ऑपरेटर धर दबोचकर बड़ा तीर मारने का ढोल पीटती है, तो अब विपक्ष के मानसून सत्र में ज़बरदस्त हल्लाबोल के बाद कुंभ मेला स्वास्थ्य अधिकारी और नोडल अधिकारी को निलंबित कर इसे धामी सरकार बड़ा एक्शन करार दे रही है। जबकि शासन से लेकर हरिद्वार जिले में बैठकर महाकुंभ का सारा ज़िम्मा संभाल रहे अफसरोें से भी तो पूछा जाना चाहिए कि आखिर इस महाफर्जीवाड़े के समय ज़िम्मेदार अधिकारी के नाते वे कहां थे!
अब दावा किया जा रहा है कि जांच रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य महकमे ने मेला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अर्जुन सिंह सेंगर और नोडल अधिकारी एनके त्यागी को सस्पेंड कर दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या कुंभ में एक लाख से ज्यादा फर्जी टेस्टिंग कर करोड़ों का घोटाला करने वाले बड़े घड़ियाल बचे रहेंगे और छोटी मछलियों को पकड़कर इस घोटाले को रफ़ा-दफ़ा करने की तैयारी हो रही है? अगर ऐसा नहीं है तो क्या कुंभ का पूरा ज़िम्मा संभाल रहे मेलाधिकारी आईएएस दीपक रावत से नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर ठीक उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कैसे हो गया? क्या तत्कालीन हरिद्वार ज़िलाधिकारी सी० रविशंकर से नहीं पूछा जाना चाहिए कि आपकी सरपरस्ती में हरिद्वार जिले में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन हो रहा था जिससे केन्द्र-राज्य सरकार ही नहीं बल्कि देश-प्रदेश की छवि का प्रश्न भी जुड़ा था फिर चूक कहां से हो जाती है कि इतने बड़े घोटाले को अंजाम दे दिया जाता है?
आखिर नैनीताल हाईकोर्ट जब रोजाना 50 हजार टेस्ट के निर्देश दे रहा था तब मॉनिटरिंग की ज़िम्मेदारी किसकी थी? क्या DM की नहीं थी! आखिर जब राज्य के 13 में से 12 जिलों में कोरोना संक्रमण दर कहीं अधिक थी और सरकारी दावों के अनुसार मेले में भारी भीड़ जुट रही थी तब भी हरिद्वार जिले में संक्रमण दर बहुत कम दर्ज हो रही थी फिर उसे लेकर पड़ताल क्यों नहीं की गई? आखिर इन्हीं फ़र्ज़ी कोरोना जाँचों के दम पर ही तो संक्रमण दर को बाकी राज्य के मुकाबले हरिद्वार में बेहद कम दिखाया जा रहा था। सवाल इस पर भी तो उठने चाहिए कि आखिर जब मैक्स कारपोरेट सर्विसेज को बिना किसी अनुभव और आईसीएमआर लिस्टेड होने पर भी तमाम नियमों को ताक पर रखकर क्या अकेले मेला स्वास्थ्य अधिकारी ने काम दे दिया? या फिर मेला स्वास्थ्य अधिकारी शासन के स्तर पर अपने किसी आका से ऑक्सीजन पा रहा था?
सवाल ये भी कि सीएम रहते तीरथ सिंह रावत ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर ठीकरा फोड़ा था और पूर्व सीएम ने हाईकोर्ट न्यायाधीश की अगुआई में जांच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया था, क्या उस पहलू से भी सच सामने नहीं आना चाहिए!
तीरथ से लेकर धामी सरकार तक इस महाघोटाले की जांच जिस अंदाज में हो रही उससे साफ पता चलता है कि इसका हश्र भी NH-74 मुआवजा घोटाले जैसा न हो!