हल्द्वानी: कांग्रेस 2022 की चुनावी जंग जीतने को पूर्व मुख्यमंत्री और विकास पुरुष कहे जाने वाले स्वर्गीय एनडी तिवारी की जयंती रर हल्द्वानी में सोमवार को स्मृति यात्रा निकाल रही है। पंजे के पराक्रमी इस अवसर पर न केवल एकजुटता का संदेश देना चाह रहे बल्कि विकास के मोर्चे पर कांग्रेस पार्टी को भाजपा से बेहतर दिखाने की तैयारी भी है। लेकिन इस खास मौके पर कांग्रेस विजय के संकल्प का शंखनाद भी करने जा रही है। इस मौके पर हाल में कांग्रेस में घर वापसी करने वाले धामी सरकार में काबिना मंत्री रहे यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य का ग्रैंड वेलकम कर रही है। इससे पहले रविवार को एक सियासी तस्वीर आई जिसने कांग्रेस में बदलते-बनते नए तरह के समीकरणों की तरफ साफ इशारा कर दिया है।
ये सियासी तस्वीर है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य के बीच गाढ़ी होती सियासी दोस्ती की। वैसे हरीश रावत और यशपाल आर्य की दोस्ती नई नहीं है लेकिन इस दोस्ती में खट्टे-मीठे लम्बे भी खूब आए। 2017 के दंगल के वक्त भी एक ऐसा ही पल आया जब आर्य चाहते थे कि कॉ-ऑपरेटिव पॉलिटिक्स में सक्रिय उनके बेटे संजीव आर्य को कांग्रेस नैनीताल से टिकट दे। लेकिन तब सीएम रहते हरदा इस मोर्चे पर आर्य के साथ खड़े नहीं रह पाए और भाजपा ने मौके पर चौका मार आर्य पिता-पुत्र को अपने पाले में कर लिया। नतीजा यह रहा कि भाजपा से लड़ते हरदा कुमाऊं कुरुक्षेत्र में अकेले पड़ गए और यहाँ तक कि कुछ माह पहले सल्ट उपचुनाव में भी निर्णायक दलित वोटर भाजपा में शिफ्ट कर गया और कांग्रेस हार गई।
वक्त गुज़रा तो अब 2022 बैटल में हरदा आर्य के साथ जुगलबंदी कर कुमाऊं में सीएम धामी से लेकर केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट के बहाने बढ़त की कवायद में लगी भाजपा से दो-दो हा करने कै चक्रव्यूह बना रहे हैं। आर्य का न केवल दलित वोटरों तक असर है बल्कि पंजाबी-सिख वोटर्स से लेकर कई तबक़ों में ख़ासा दखल है। अब इसी ताकत को हरदा अपनी ताकत बनाकर कांग्रेस को भाजपा पर बाइस बैटल में इक्कीस साबित करने की रणनीति पर हैं। रविवार को आई तस्वीर इसी रणनीति का हिस्सा है। रविवार को हरदा अपने करीबी राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा के साथ यशपाल आर्य के आवास पहुँचे जहां आर्य की पत्नी ने तिलक लगाकर हरीश रावत का स्वागत किया।
हरदा-आर्य की जुगलबंदी की यह नई तस्वीर कई मैसेज देती है। एक जमाने में दलित चेहरे के तौर पर हरदा के सबसे करीबी प्रदीप टम्टा ही माने जाते थे लेकिन बदली रणनीति और सियासी हकीकत से वाबस्ता होकर हरदा आर्य के साथ अपनी दोस्ती को गहरा कर भाजपा को गहरा घाव देने की तैयारी में हैं। एक समय आर्य और टम्टा में रही प्रतिस्पर्धा जैसी भावना को भी भुलाकर सियासी दोस्ती की फ्रेम में दोनों को एक साथ साधकर रावत बदलाव की नई पटकथा लिखने को आतुर हैं। सवाल है कि क्या वाकई हरदा-आर्य की यह नई दोस्ती कांग्रेस के लिए सत्ता की सीढ़ी बन पाएगी?