- अगले साल सात राज्यों में चुनाव, टीएसआर वन को मिल सकती है संगठन में बिग रोल
दिल्ली/देहरादून: दिल्ली से आई ये तीन तस्वीरें बयां कर रही हैं कि न तो पूर्व मुख्यमंत्री होकर त्रिवेंद्र सिंह रावत कोपभवन में चले गए हैं और ना पार्टी नेतृत्व उनको पूरी तरह से दरकिनार कर आगे बढ़ चला है। दिल्ली पहुँचे टीएसआर ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख रामलाल से मुलाक़ात की है। हालाँकि ये तमाम मुलाक़ात शिष्टाचार मेल-मुलाक़ात ही बताई जा रही लेकिन सियासी फ्रंट पर गहरे निहितार्थ लिए हैं।
मार्च में जिस तरह बीच बजट सत्र त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी छोड़नी पड़ी उसके तीन महीने बाद वे दिल्ली में पार्टी नेतृत्व और मंत्रियों से मुलाक़ातें कर रहे हैं। सवाल है कि क्या इसे सरकार से रुखसत किए गए टीएसआर की बीजेपी की राष्ट्रीय टीम में वापसी का संकेत नहीं माना जाना चाहिए? आख़िर 2017 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ताजपोशी से पहले त्रिवेंद्र रावत संगठन में ही थे और राष्ट्रीय मंत्री के साथ साथ झारखंड के प्रभारी थे। उससे पहले उत्तरप्रदेश के रास्ते देश की सत्ता पर बीजेपी की दस साल बाद वापसी के सूत्रधारों में से एक सह-प्रभारी के तौर पर गृहमंत्री अमित शाह (तब प्रभारी महासचिव यूपी थे) के साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत भी थे।
यूपी में पार्टी के सह प्रभारी के तौर पर सांगठनिक सूझबूझ के बूते ही टीएसआर को झारखंड का प्रभार मिला था, जहाँ पार्टी की सरकार बनी और त्रिवेंद्र का क़द दिल्ली दरबार में इतना मज़बूत हुआ कि उन्हें उत्तराखंड का प्रभारी बना दिया गया था।
अब सवाल है कि तीन महीने बाद दिल्ली दरबार में एक्टिव होते टीएसआर की संगठन में किस रूप में वापसी होती है। क्या परम्परा के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए अमूमन रिज़र्व जैसे समझे जाने वाले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से उनको भी नवाज़ा भर जाएगा या फिर महामंत्री जैसा पद देकर टीम नड्डा में किसी चुनावी राज्य में मोर्चे पर उतारा जाएगा?
अगले साथ उत्तराखंड के अलावा उत्तरप्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और साल के आखिर में पहले हिमाचल प्रदेश और फिर गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में जल्द टीएसआर की संगठन में वापसी तय मानी जा रही लेकिन ज़िम्मेदारी क्या मिलती है ये उनके राजनीतिक भविष्य को तय कर देगी।