देहरादून: राष्ट्रीय स्वयं संघ पांच राज्यों और देश के सामने ज्वलंत मुद्दों पर महामंथन करने जा रहा है। संघ 2022 का बिसात पर बीजेपी के सामने की चुनौतियों और अपने स्वयं सेवकों की भूमिका को लेकर भी इस महामंथन में दिशा देने की कोशिश करेगा। तीन सितंबर से आरएसएस हेडक्वार्टर में शुरू होने वाले इस मंथन में उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनावों में बीजेपी की रणनीति कैसी हो और अपने राजनीतिक विरोधियों के मुकाबले उसका प्रदर्शन कैसे बेहतर रहे जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी।
आरएसएस के इस मंथन में बीजेपी के अलावा, एबीवीपी, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ सहित तमाम वैचारिक संगठन शिरकत करेंगे। हिन्दुस्तान से बातचीत में आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी अरविंद कुकडे ने कहा है कि संघ परिवार के अलग-अलग संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 60 प्रमुख नेता इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। मंथन सम्मेलन को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी संबोधित करेंगे।
संघ के पूर्व पदाधिकारी दिलीप देवधर के अनुसार आरएसएस यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के कामकाज से खुश है और यूपी चुनाव में स्वयं सेवक टीम योगी को जिताने को मेहनत करेंगे। जबकि संघ अन्य चुनावी राज्यों को लेकर भी रणनीति बनाएगा ताकि बीजेपी का रास्ता आसान हो सके।
सवाल है कि क्या जिस तरह से संघ यूपी में योगी सरकार की परफ़ॉर्मेंस से खुश बताया जा रहा, ठीक वैसे ही उत्तराखंड की धामी सरकार के कामकाज से भी खुश है क्या? यूपी के मुकाबले उत्तराखंड चुनाव को लेकर यह प्रश्न इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि यहाँ पिछले साढ़े चार सालों में तीसरा मुख्यमंत्री कुर्सी पर बिठाया गया है। और पहाड़ पॉलिटिक्स में कई मुद्दे ऐसे उठे हुए हैं जो बीजेपी, मुख्यमंत्री धामी और खुद संघ के लिए भी पेचीदा हैं।
सबसे बड़ा मुद्दा देवस्थानम बोर्ड का है जिसके विरोध में कई महीनों से चारों धामों के तीर्थ-पुरोहित प्रचंड आंदोलन छेड़े हुए हैं। वैसे तो देवस्थानम बोर्ड त्रिवेंद्र सिंह रावत लेकर आए थे लेकिन उसे भंग या निष्क्रिय कर पाते उससे पहले उनके बाद मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत कुर्सी गँवा बैठते हैं। अब तक सीएम पुष्कर सिंह धामी भी इस मुद्दे पर आंदोलन खत्म कराने में नाकाम रहे हैं। फिर भले बीजेपी के वरिष्ठ नेता ध्यानी को आगे कर दिया हो लेकिन पंडा पुरोहित बोर्ड भंग से नीचे किसी भी बात पर समझौते को तैयार नहीं दिख रहे।
सवाल है कि संघ इस मुद्दे पर क्या राय रखता है। क्या संघ भी त्रिवेंद्र रावत की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड को पिछले 20 साल का सबसे क्रांतिकारी कदम मानता है, या कुछ और? दूसरा संघ की राय युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लेकर योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर ही पॉजीटिव है या फिर पू्र्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरह धामी को भी संघ की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। टीएसआर राज में तो यह बात अक्सर पॉलिटिकल कॉरिडोर्स में होती रहती थी कि त्रिवेंद्र सिंह संघ नेताओं को भी ज्यादा भाव देना गंवारा नहीं करते।
जबकि अब धामी की रिपोर्ट यह आ रही कि संघ नेता-कार्यकर्ता की सुनवाई हो रही। लेकिन क्या इतना भर काफी है या फिर संघ सरकार की नीतियों का मूल्याँकन कर धामी सरकार को रेटिंग देना पसंद करेगा। आखिर संघ की मदद के बिना जैसे यूपी में बीजेपी जीत का सपना भी नहीं देख सकती, ठीक वैसे ही उत्तराखंड का सियासी पहाड़ चढ़ने को बीजेपी को संघ के समर्थन की सख्त दरकार है। क्या पुष्कर सिंह धामी ऐसा कुछ कर पाए जो संघ को यूपी की योगी सरकार की तर्ज पर्व खुशी का अहसास दिला सके!