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‘मुक्केबाज’ मंत्री को मुख्यमंत्री ने किया तलब! प्रेमचंद अग्रवाल जी! आपको कानून का राज स्थापित करने का जिम्मा दिया था आप तो ‘आंख के बदले आंख’ पर उतर आए!

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गली के गुंडों की तरह सड़क पर सरेआम आप दबंगई दिखाएंगे और खुद को ‘माननीय’ भी कहलाना चाहेंगे?

‘सरकार’ की फजीहत कराते मुक्केबाज मंत्री!

कानून बनाने वाले प्रेमचंद अग्रवाल कैसे सरेराह तोड़ सकते हैं कानून?

ऋषिकेश के विवादित घटनाक्रम का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लिया संज्ञान

संपूर्ण घटनाक्रम की निष्पक्ष जांच के पुलिस महानिदेशक को दिए निर्देश

कल दिल्ली से देहरादून लौटने पर कैबिनेट मंत्री को किया तलब

मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देश : निर्दोष को न मिले सजा, भेद-भाव एवं पक्षपातपूर्ण कार्यवाही किसी भी सूरत में न होगी बर्दाश्त

Uttarakhand News: क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जो नेता पांच साल तक कानून बनाने वाली प्रदेश के जनप्रतिनिधियों की सबसे बड़ी पंचायत के सर्वोच्च विधायी पद पर विराजमान रहें हों और आज कानून बनाने वाली मशीनरी यानी सरकार का हिस्सा हों, वह शख्स सरेराह अपने सुरक्षाकर्मी और समर्थकों के साथ आम आदमी के साथ गली के गुंडों की तरह सड़क पर ही हिसाब करने लग जाएगा?

क्या ऋषिकेश की जनता ने इसीलिए प्रेमचंद अग्रवाल को अपना विधायक चुनकर विधानसभा भेजा था और बीजेपी या सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इसीलिए कैबिनेट मंत्री बनाया कि वे सरेराह कोई अगर मान लें कि गली गलौच या बदतमीजी पर उतर आयेगा तो उसे सड़क पर उसी अंदाज में हाथापाई कर हिसाब चुकता करने पर उतारू हो जाएं?

प्रेमचंद अग्रवाल का हाथापाई का जो वीडियो सोशल मीडिया ने वायरल हुआ है उसे देखकर ना मुख्यमंत्री और ना ही सत्ताधारी बीजेपी उनका बचाव कर सकती है। मान भी लिया जाए कि ऋषिकेश से निकले मंत्री को हाईवे पर रुकने पर कुछ लोग अपनी समस्या बताते हैं और जैसा कि दावा किया जा रहा कि अचानक उनमें से एक व्यक्ति अक्रोशित होकर मंत्री अग्रवाल से गाली गलौज या अभद्रता करने लग जाते हैं या हमला भी बोल देते हैं, तो क्या मंत्री अपने सुरक्षाकर्मी के साथ हमलावर व्यक्ति पर लात गुस्सों के साथ टूट पड़ेंगे?

अगर मंत्री की सुरक्षा ने लगे जवान/जवानों को प्रदेश के एक मंत्री की जान की सलामती की इतनी ही चिंता होती तो SOP तो ये होनी चाहिए थी कि उनको सुरक्षा घेरे में लिया जाता,सुरक्षित गाड़ी में बिठाकर मौके से निकाला जाता?

मान लीजिए सामने वाले शख्स साजिश के तहत मंत्री पर जानलेवा हमला करने के मंसूबे से आए होते और संख्या ने अधिक होते तो लात बरसाते उत्तराखंड पुलिस का “सिंघम” बना उनका सुरक्षाकर्मी किस हालात में राज्य के कैबिनेट मंत्री के जीवन की रक्षा कैसे करते?

इसलिए क्यों ना माना जाए कि दरअसल मंत्री और उनकी सुरक्षा में लगे जवान हालात की नब्ज भांपने की बजाय सड़क पर दबंगई दिखाने की मंशा से वीडियो में दिख रहे दो लोगों पर टूट पड़ते हैं?

सवाल है कि धामी सरकार के इस वरिष्ठ मंत्री से प्रेरणा लेकर अगर हरेक आम नागरिक “आंख के बदले आंख” मांगने पर आमादा हुआ तो हालात क्या होंगे? क्या सार्वजनिक जीवन में रहते हुए मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल यही संदेश देना चाह रहे कि इस राज्य में ना पुलिस है और ना कानून का राज?

सवाल युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी है कि आखिर किस लिए फिर नैनीताल से हाई कोर्ट को हल्द्वानी शिफ्ट किया जा रहा है? क्या ज़रूरत है अंकिता भंडारी के हत्यारोपियों को कानून के रास्ते सजा दिलाने की, कर दीजिए आरोपियों को भीड़ के हवाले हो जायेगा प्रेमचंद अग्रवाल के बताए रास्ते से on the spot न्याय! क्यों एफआईआर क्यों कार्ट कचहरी में तारीखों का झंझट?

शायद हालात की इसी नजाकत को भांपते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपने ही मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को तलब करने को मजबूर होना पड़ा है। आखिर कानून हाथ में लेने का हक किसी को नहीं और इस लिहाज से लॉ मेकर प्रेमचंद अग्रवाल की जिम्मेदारी कहीं अधिक हो जाती है। बशर्ते कि वे इस दायित्व को समझ पाते! इसलिए विपक्ष अगर अग्रवाल का इस्तीफा मांग रहा तो इसके लिए कोई और नहीं बल्कि खुद मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जिम्मेदार हैं।

अब मुख्यमंत्री ने कहा जरूर है कि इस घटना की निष्पक्ष जांच कर दोषी को सजा और निर्दोष को न्याय मिलेगा। उम्मीद है कि DGP इस मामले में न्यायपूर्ण तरीके से जांच कराएंगे ना कि मंत्री के दबाव में केस में लीपापोती करेंगे।

आखिर मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को समझना चाहिए कि विधानसभा बैकडोर भर्ती कांड में वे गोविंद सिंह कुंजवाल के साथ आरोपों के कटघरे में खड़े हैं और जिस तरह की दबंगई आज सरेराह उन्होंने दिखाई है उसके बाद उनके लिए चुनौतियां बढ़ेंगी ना कि कम होंगी।

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