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VIDEO टीम TSR की विरोध की रणनीति कर गई काम, दीप्ति रावत पर भारी पड़े बृजभूषण गैरोला: त्रिवेंद्र रावत ने दिखा दिया दम डोईवाला में बाकी सब पानी कम

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देहरादून: चुनाव नामांकन के आखिरी दिन तक उलझी रही भाजपा ने आखिरकार टीम टीएसआर के विरोध के आगे सरेंडर कर ही दिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने टिकट कटने के आसार बनते देख खुद ही टिकट बंटवारे से पहले ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखकर डोईवाला से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर फजीहत की स्थिति से खुद को बचाने का दांव चल दिया था। लेकिन टीएसआर ने ऐसा कर असल में भाजपा को पसीने छुड़ाने वाली स्थिति पैदा कर दी। आखिरकार भाजपा ने टीएसआर के करीबी पूर्व दायित्वधारी बृजभूषण गैरोला को टिकट देना ही मुनासिब समझा।

आलम यह रहा कि भाजपा ने एक झटके में पहले 59 और फिर दीसरा लिस्ट में 9 नामों का ऐलान कर कुल 68 सीटों पर टिकट बांट दिए। बाद में टिहरी पर किशोर उपाध्याय को मौका दे दिया लेकिन आखिर तक डोईवाला में पार्टी समझ नहीं पाई कि किसे मैदान में उतारा जाए। कभी दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत के भाई कर्नल विजय रावत तो कभी दिवंगत सीडीएस रावत की बेटी को चुनाव लड़ाने के दांव-पेंच आज़माती रही लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। थक-हारकर भाजपा ने दीप्ति रावत भारद्वाज को टिकट देने का मन बनाया और आधिकारिक ऐलान के बिना ही सोशल मीडिया के जरिए प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की।
उधर चुनाव न लड़ पाने की कसक लिए खार खाए बैठे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी टीम को लगातार स्थानीय प्रत्याशी की उठ रही आवाज को और हवा देने का इशारा कर दिया। नतीजा यह रहा कि इधर दीप्ति रावत भारद्वाज को सिंबल देने की बात उड़ी और उधर त्रिवेंद्र के सलाहकार धीरेंद्र पंवार का स्थानीय प्रत्याशी को लेकर एक बैठक करने का वीडियो वायरल होने लगा। उधर भाजपा दफ्तर तक अपने समर्थक लेकर पहुंचे सौरभ थपलियाल भी बागी तेवरों का संदेश दे चुके थे।

हारकर भाजपा नेतृत्व ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के चहेते बृजभूषण गैरोला को टिकट देने उचित समझा। उधर कांग्रेस ने भी हवाई प्रत्याशी की बजाय स्थानीय चेहरे पर ही दांव खेला है। बहरहाल डोईवाला को लेकर भाजपा में चले उलटफेर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हालात जैसे भी रहे हों लेकिन पार्टी डोईवाला में त्रिवेंद्र रावत को इग्नोर करने का जोखिम मोल नहीं ले सकती है। अब बृजभूषण गैरोला को जीत दिलाने के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत को दमखम दिखाना होगा और अगर वे कामयाब रहे तो मैसेज साफ होगा कि भले चुनाव गैरोला ने लड़ा हो लेकिन जीत टीएसआर की ही हुई है।

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