देहरादून: पिछले 15 दिनों में देश में औसतन कोविड जांच के आंकड़े बढ़े हैं। जबकि इस दौरान कोरोना की दूसरी लहर की रफ़्तार थमती दिखी है. लेकिन जिन राज्यों में कोरोना का कहर अभी भी रफतार बनाए हुए हैं वहाँ इस दौरान छह फीसदी टेस्टिंग घट गई। या यूँ कहिए कि संक्रमण के आंकड़े घटाने का आसान पर ख़तरनाक रास्ता ये कि टेस्टिंग कम कर दी जाए मामले अपने आप कम आएंगे!
सबसे ज्यादा प्रभावित छह राज्यों में उत्तराखंड भी शामिल है, बाकी पांच राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना और दिल्ली शामिल हैं जहां चार मई से लेकर 17 मई के बीच जांच धीमी कर दी गई।
उत्तराखंड में जब इस दौरान पॉजीटिविटी रेट 22-23 फीसदी तक रही तब एक लाख के करीब टेस्ट कम किए गए। उत्तराखंड ने 21 अप्रैल से मई के दौरान 4लाख 84 हजार 554 टेस्ट किए जबकि अगले पखवाड़े में ये टेस्टिंग घटकर 3 लाख 79 हजार 172 ही रही। जबकि होना ये चाहिए था कि डबल डिजिट में पॉजीटिविटी रेट की चुनौती के सामने न केवल टेस्टिंग बढ़नी चाहिए थी बल्कि संक्रमित आबादी की ठीक से ट्रेसिंग पर फोकस होना चाहिए था।
केन्द्र सरकार भी बार-बार राज्यों को टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट बढाने खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां संक्रमण ने रफतार पकड़ी तो क़ाबू करना आसान न होगा। बावजूद इसके टेस्टिंग में फिसड्डी साबित होना संकट का सबब बना हुआ है।
उत्तराखंड में कोविड डाटा पर लगातार शोध कर रहे एसडीसी फ़ाउन्डेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि ये ख़तरनाक संकेत हैं क्योंकि जब हमें टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए, खासतौर पर पहाड़ी जिलों में तब टेस्टिंग घटाने वाले छह राज्यों में उत्तराखंड का शुमार करना चिन्ताजनक है, सरकार को अगले पखवाड़े सैंपलिंग तेज करनी चाहिए।
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