- उत्तराखंड में बिजली कर्मी एक बार फिर आंदोलन की राह पर
- विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा शासनादेश जारी न होने से नाराज
- एक माह गुज़रने को है पर 14 सूत्रीय माँगों पर सरकार एक इंच आगे नहीं बढ़ पाई
- सरकार ऊर्जा सचिव के ट्रेनिंग पर होने से लेकर कई तरह की दलीलें पेश कर कार्मिकों की माँगें टालने को और टाइम चाह रही
- वैसे भी नौकरशाही में एक मैसेज कि ‘चार महीने काटो’
देहरादून: अपनी 14 सूत्रीय माँगों पर धामी सरकार के वादे के बावजूद एक महीने में एक्शन न होने से ख़फ़ा विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने नाराजगी जाहिर करते फिर से आंदोलन की राह पकड़ने की तैयारी कर ली है। ऊर्जा मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के साथ बातचीत में बनी सहमति के बाद अभी तक मांगों पर शासनादेश जारी नहीं होने से बिजली कार्मिकों का गुस्सा बढ़ रहा है।
विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा की एक आपात बैठक शनिवार को हो चुकी है। बैठक की अध्यक्षता राकेश शर्मा और संचालन मोर्चा के संयोजक इंसारुल हक ने किया। इस बैठक में बिजली से जुड़ी तमाम ट्रेड यूनियन और एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है। मोर्चा नेताओं ने कहा है कि 27 जुलाई को सरकार के साथ हुए समझौते की समय सीमा अब चंद दिनों में खत्म होने वाली है, लेकिन तीनों ऊर्जा निगम में कर्मचारियों की एक भी समस्या का समाधान निकालने की ज़हमत नहीं उठाई गई है।
फिर आंदोलन की राह पकड़ने को मजबूर बिजली कार्मिक
मोर्चा नेताओं ने यह निर्णय लिया है कि सोमवार से शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू किया जाएगा। पहले दौर में 27 अगस्त तक मोर्चा के सभी घटक संगठनों के पदाधिकारी राज्य के जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपेंगे। इसके बाद आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। कार्मिकों ने कहा कि ऊर्जा निगमों में कार्यरत संविदा, नियमित व अन्य कर्मचारी अपने पूर्व की सेवा शर्तों की बहाली की मांग पर निरंतर आंदोलनरत हैं।
क्या हुआ तेरा वादा?
बिजली कार्मिकों को जुलाई में हड़ताल के रास्ते से वार्ता की टेबल लाने के लिए धामी सरकार ने ऊर्जा मंत्री डॉ हरक सिंह रावत को आगे कर दिया था। ऊर्जा मंत्री हरक सिंह की अध्यक्षता में पिछले महीने मोर्चा नेताओं की बैठक हुई थी जिसमें 14 सूत्रीय मांग पत्र पर दोनों पक्षों में समझौता हो गया था। लेकिन समझौते के अनुसार एक महीने की अवधि पूर्ण होने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। लिहाजा कार्मिक 28 अगस्त को पूरे राज्य में ‘वायदा निभाओ दिवस’ मनाएगा। इसके तहत राज्य के ऊर्जा निगम मुख्यालय पर गेट मीटिंग और तीनों ऊर्जा निगमों के प्रबंध निदेशकों को ज्ञापन भेजा जाएगा।
बहरहाल चुनावी जंग करीब है और युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सरकार पर एक के बाद एक कार्मिक वर्ग वादाखिलाफी का आरोप लगा रहा है। विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा एक माह पहले किए समझौते की एक भी मांग पूरी न होने पर वादा याद दिलाकर फिर से आंदोलन का बिगुल फूँक रहा तो उपनल कर्मचारी मानदेय और दूसरी माँगों पर बनी सब-कमेटी की रिपोर्ट को कैबिनेट में अब तक न रखे जाने से आक्रोशित हैं। सचिवालय संघ से लेकर जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन गोल्डन कार्ड से लेकर एसीपी वर्सेस एमएसीपी, शिथिलीकरण नियमावली की बहाली, 11% महंगाई भत्ते, पुरानी पेंशन बहाली जैसे कई काॅमन मुद्दों पर सरकार से अपनी मांगों को मनवाने हेतु लगातार आवाज उठा रहे हैं, परन्तु सरकार द्वारा इन्हें अनसुना कर टालने की भरपूर कोशिश की जा रही है।
ऐसे में सवाल यही है कि प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका रखने वाले इस कार्मिक वोटर तबके से झगड़ा मोल लेकर युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कौनसा सियासी नफ़ा देख रहे हैं? या फिर सलाहकार मंडली पिछले दो मुख्यमंत्रियों की तर्ज पर तीसरे मुख्यमंत्री को भी अपने जाल में उलझाने में कामयाब हो गए हैं!