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वायनाड से बड़े खतरे की जद में रुद्रप्रयाग और टिहरी

क्यों दरक रहे पहाड़!

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ADDA Xplainer on Landslide: उत्तराखंड हो या हिमाचल प्रदेश या फिर दक्षिण का तटीय राज्य केरल भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और पहाड़ों के दरकने तथा निचले इलाकों में मलबा लुढ़ककर आने की खतरनाक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वैसे उत्तर हिमालय से पूर्वोत्तर हिमालय तथा ईस्टर्न घाटों से लेकर वेस्टर्न घाटों में ही लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ी हैं बल्कि समूचे संसार में भूस्खलन से होने वाली बरबादी का स्केल निरंतर बढ़ता जा रहा है।

 

इसी साल की बात करें तो जनवरी में चीन के यून्नान और मई में पापुआ न्यू गिनी में हुए भूस्खलन में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और अब बीते जुलाई महीने में इंडोनेशिया से लेकर केरल के वायनाड में लैंडस्लाइड ने तबाही मचा दी है।

 

हालांकि भूस्खलन की घटनाओं को बाढ़, सूखा या फिर तूफान जैसा घातक नहीं समझा जाता रहा है इसलिए इसे लेकर भारत ही नहीं दुनियाभर में अध्ययन कम ही मिलता है। लेकिन क्लाइमेट चेंज के बढ़ते खतरे की बीच भूस्खलन से होने वाली तबाही के जख्म मानवता पर गहरे निशान छोड़ रहे हैं। इस लिहाज से भूस्खलन के खतरे को लेकर नए सिरे से सरकारों को सोचने विचारने की दरकार है।

  • क्या होते हैं भूस्खलन

पहाड़ी इलाकों से चट्टानों का लुढ़कना, जमीन खिसकना, मलबे का निचले इलाकों में विनाशकारी बहाव आदि को भूस्खलन यानी लैंडस्लाइड का नाम दिया गया है। बेहद संवेदनशील हिमालयी इलाकों में विकास के नाम पर बढ़ती इंसानी गतिविधियां भूस्खलन जैसी घटनाओं को निमंत्रण दे रही हैं।

वैसे भी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ अभी अपेक्षाकृत रूप से युवा हैं और मजबूत होते इन पहाड़ों में रोड, रेल, सुरंग, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स तथा भारी निर्माण आदि के लिए होने वाली ब्लास्टिंग व ड्रिलिंग से पैदा होने वाली कंपन इनको हिलाकर दरारें पैदा करती हैं। बारिश के सीजन या उसके बाद इनकी कमजोर होती नींव उखड़ने लगती हैं और अच्छे खासे तन कर खड़े दिखते पहाड़ अचानक भरभराकर धूल के गुबार में तब्दील होते नजर आते हैं।

एक्सपर्ट्स की मानें तो लगातार बढ़ रही भूस्खलन की घटनाओं के पीछे एक बड़ा कारण अंधाधुंध वनों की कटाई भी माना जाता है। वनों की कटाई से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है ही, इससे पहाड़ी इलाकों में चट्टानों की पकड़ भी ढीली पड़ जाती है क्योंकि पेड़ों की जड़ें मिट्टी और चट्टानों को बांधने का काम करती हैं लेकिन पेड़ काट दिए जाएंगे तो लैंडस्लाइड का खतरा बढ़ेगा ही बढ़ेगा।

इतना ही नहीं बार बार आते भूकंप और मूसलाधार बारिश के कारण भी भूस्खलन की घटनाएं होती हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार कुमाऊं हिमालय क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं कारणों से लैंडस्लाइड के लिहाज से खासा संवेदनशील माना जाता है। हमने देखा भी है कि भारी बारिश के सीजन में भूस्खलन की घटनाओं में खासा इजाफा हो जाता है। केरल के वायनाड में हुए लैंडस्लाइड के पीछे भी इन्हीं कारणों को गिना जा रहा है।

NASA कर चुकी है हिमालय क्षेत्र में लैंडस्लाइड अध्ययन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा फरवरी 2000 में कराए गए एक अध्ययन के अनुसार हिमालय क्षेत्र में क्लाइमेट चेंज और अचानक होने वाली भारी बारिश भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ा सकती है। नासा स्टडी में खुलासा हुआ था कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी चीन और नेपाल के बॉर्डर एरिया में लैंडस्लाइड एक्टिविटी बढ़ सकती है। खासकर ग्लेशियर व ग्लेशियल झील वाले इलाके में ज्यादा भूस्खलन होने से बाढ़ जैसी आपदा आ सकती है जिसका असर सैकड़ों किलोमीटर तक पड़ सकता है।

ISRO का भारत का भूस्खलन एटलस?

भारत के किन जिलों में भूस्खलन का सबसे बड़ा खतरा ? इस सवाल का जवाब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी ISRO के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर NRSC द्वारा 1998 से 2022 तक के अध्ययन में खुलासा हो गया था। पिछले साल फरवरी में जारी हुई लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि देश के 17 राज्यों के 147 जिलों में लैंडस्लाइड के लिहाज से सबसे ज्यादा खतरे की जद में उत्तराखंड के दो जिले रुद्रप्रयाग पहले पायदान तथा टिहरी दूसरे स्थान पर आता है।

वायनाड में लैंडस्लाइड से हटी भारी तबाही के बाद इसरो की इस रिपोर्ट का जिक्र दोबारा होने लगा तो लोगों ने आश्चर्य प्रकट किया कि जब इसरो का NRSC चेतावनी दे चुका था कि वायनाड देश के 147 जिलों में खतरे के लिहाज से 13वें पायदान पर है तो फिर राज्य सरकार ने बचाव के क्या कदम उठाए? लेकिन आप चौंक जाएंगे यह जानकर कि इस रिपोर्ट में उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला और टिहरी जिला देश में क्रमश: पहले और दूसरे नंबर पर हैं। यानी केरल के वायनाड से कहीं अधिक संवेदनशील! लेकिन सरकारें कहीं अधिक लापरवाह बनी नजर आती हैं।

लैंडस्लाइड की बढ़ती घटनाओं का संदेश ?

हमारे लिए भूस्खलन की घटनाओं के बढ़ने का सबसे बड़ा संदेश यही है कि पर्यावरण संरक्षण अति आवश्यक है और प्रकृति से खिलवाड़ रुका नहीं तो इंसानों के लिए यह विनाशकारी साबित होगा। लिहाजा वनों की अंधाधुंध कटाई, पहाड़ों में विकास के नाम पर होते विस्फोट तथा व्यापक तोड़फोड़ से तौबा करना होगा तथा नदियों व वनों को बचाना होगा क्योंकि विकास बेशक जरूरी है लेकिन विनाश की बुनियाद पर हरगिज नहीं।

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