नैनीताल-
हाईकोर्ट ने सूबे की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर तीरथ सरकार पर फिर हंटर चला दिया है. जनहित याचिकाओं की अर्जेंट सुनवाई वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से करते हुए कोर्ट ने उत्तराखंड में कोरोना मृत्युदर ( 1.42 फीसदी) राष्ट्रीय औसत (1.14) से ज्यादा होने पर गहरी चिंता जताई. चीफ जस्टिस आरएस चौहान और आलोक वर्मा की बेंच ने सरकार और हेल्थ सेक्रेटरी को कई अहम निर्देश दिए.
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने एफिडेविट के ज़रिए कहा कि अस्पतालों में ऑक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन और पीपीई किट उपलब्ध नहीं हैं. पीड़ितों से एम्बुलेंस का एक किलोमीटर का किराया 5000 रु लिया जा रहा है. शवों के जलाने के लिए घाटों और लकड़ियों का संकट बन रहा है. होम आइसोलेशन वाले मरीजों को कोई सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं. आरटीपीसीआर टेस्ट धीमी गति से हो रहे हैं और 30 हजार टेस्ट रिपोर्ट पेंडिंग पड़ी हैं. इस पर हाईकोर्ट ने हल्द्वानी, हरिद्वार और देहरादून में आरटीपीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट रोजाना 30-50 हजार कराए जाएं. कोर्ट ने कहा कि होम आइसोलेशन टेस्ट बढ़ाए जाएं और सुविधाएं भी दी जाएं.
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य में ढाई हजार रजिस्टर्ड डेंटिस्ट हैं और कोविड सेंटरों में डॉक्टरों की कमी हैं तो सरकार इनसे मदद ले. कोर्ट ने कहा कि किस हॉस्पिटल में कितने बेड खाली हैं और कितनी ऑक्सीजन है उसकी जानकारी रोजाना उपलब्ध कराएं. सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के ज़रिए पेश हुए. सरकार का सात मई को एक्शन रिपोर्ट पेश करनी है और 10 मई को अगली सुनवाई होगी.
हाईकोर्ट ने सुशीला तिवारी अस्पताल में कार्यरत उपनल कर्मचारियों के खाने-पीने और रहने की व्यवस्था वहीं करने के निर्देश भी दिए. कोर्ट ने हर जिले में कोविड हेल्थ पोर्टल बनाने को कहा है जो हर घंटे हेल्थ अपडेट्स दें. कोर्ट ने कहा है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी हो रही है जिसे रोकने के लिए ड्रग्स इंस्पेक्टरों को इस पर क्यूआर कोड लगाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही प्लाज़्मा डोनेशन को लेकर लोगों को प्रोत्साहित करने की पहल भी सरकार करे.