- लगातार कोविड टेस्ट की घटता आंकड़े बताते कि सरकार खुद और लोगों को धोखे में रख रही: HC
नैनीताल: रोजाना सचिवालय में बैठकर किए जाने वाले अफसरों के दावे नैनीताल हाईकोर्ट पहुंचकर धड़ाम क्यों हो जा रहे हैं? ये सवाल हरेक के मन में उठ रहा होगा! शायद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी जरूर मंथन कर रहे होंगे कि आखिर ये वजह क्या है कि चतुर्थ तल की बैठकों में दुनिया जहान का ज्ञान बांट देने वाले अफ़सरान हाईकोर्ट पहुंचकर कैसे सारे हर्फ़ भूल जाते हैं! हाईकोर्ट ने हेल्थ हालात और क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली को लेकर पूर्व से चल रही सुनवाई को आगे बढ़ाते हुए 20 मई को फिर तीरथ सरकार को फटकार लगाई है। बकौल अमर उजाला हाईकोर्ट ने कोविड टेस्ट की घटती संख्या पर कहा कि सरकार खुद को और लोगों को धोखे में रख रही है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई की और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
हाईकोर्ट ने चार धामों के कपाट खोलने के दौरान जुटी भीड़ के सोशल मीडिया में वायरल होते वाडियो को लेकर कहा कि भीड़ देखकर ऐसा लगता है कि एसओपी का पालन नहीं किया गया। अदालत ने पर्यटन मंत्री दिलीप जावलकर से कहा कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णन आता है कि गद्दी पर बैठे राजा को जनता के दुख का पता नहीं चलता, ये जानने के लिए मौके पर पहुंचना पड़ता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने चारधाम यात्रा की एसओपी जारी कर दी, जो 30 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, जिसमें किसी भी तरह के राजनीतिक, धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगाई गई थी। इस पर कोर्ट ने पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर को खुद मौके पर जाकर एसओपी के पालन के हालात देखने को कहा है।
एक बार फिर हाईकोर्ट में सरकार के मेडिकल पॉर्टल में आईसीयू बेड को लेकर गलत जानकारी देने का मामला उठा जिसमें ऋषिकेश के एसपीएस हॉस्पिटल मे छह बेड दिखाए जाने लेकिन सीएमओ द्वारा एक भी बेड खाली ना होने का हवाला दिया गया।
याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट को ये भी बताया गया कि राज्य में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी सरकार के चलते पैदा हुई थी क्योंकि उसने समय पर केन्द्र को आवेदन ही नहीं भेजा। प्रधानमंत्री राहत कोष से देश के सभी राज्यों में लगाए जाने वाले 551 ऑक्सीजन प्लांट में उत्तराखंड में कितने प्लांट लगेंगे इसे लेकर केन्द्र को निर्देश देने की माँग भी याचिकाकर्ता ने की। इस पर मुख्य सचिव ने कोर्ट को अवगत कराया कि उनके स्तर से केन्द्र को पत्र भेजा गया है लेकिन 10 दिन बाद भी जवाब नहीं आया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि केन्द्र उत्तराखंड को गंभीरता से ले। कोर्ट ने पूछा कि आखिर उत्तराखंड के साथ सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा केन्द्र की तरफ से जबकि पीएमओ में उत्तराखंड से जुड़े कई शीर्ष अधिकारी मौजूद हैं! कोर्ट ने कहा कि क्या वे अधिकारी भी उत्तराखंड के हितों की अनदेखी कर रहे हैं।
कोर्ट ने इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि राज्य 350 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादन करने के बावजूद 40 फीसदी यानी 183 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दुर्गापुर और जमशेदपुर से लाने को मजबूर है। कोर्ट ने कहा कि ये विचित्र है कि जो गेहूँ उगाए वो अपने खाने के लिए उसे कहीं और से मँगवाए! कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड के हालात को देखते हुए उसका कोटा 300 मीट्रिक टन क्यों नहीं बढ़ा दिया जाना चाहिए! कोर्ट ने केन्द्र सरकार के वकील से कहा कि केन्द्र राज्य के मुख्य सचिव द्वारा भेजे गए पत्रों की अनदेखी कर रहा है, उनका जवाब तक नहीं दिया जा रहा है और हाईकोर्ट इसे गंभीरता से लेगी। कोर्ट में केन्द्र के सक्षम अधिकारी की उपस्थिति न होने पर भी सख्त नाराजगी जताते हुए ऐसे अधिकारियों के खिलाफ वारंट जारी करने जैसे सख्त एक्शन की चेतावनी भी दी है।