शुक्रवार से सियासी गलियारों में इस चीज़ पर माथापच्ची शुरू हो गई गई है कि आखिर चुनाव रणनीतिकार पीके उर्फ़ प्रशांत किशोर की एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात क्या गुल खिलाएगी? जिस रफतार के साथ देश में राजनीतिक हालात करवटें बदल रहे वे कई तरह के बदलावों के संकेत दे रही हैं। एक पखवाड़े से मोदी वर्सेस योगी टकराव का हल्ला, जितिन प्रसाद का पाला बदलकर बीजेपी में चले जाना, पंजाब में अमरिंदर वर्सेस विरोधियोें की जंग तेज होना, 10 महीने से शांत सचिन पायलट का मुखर होकर आलाकमान को पुराने वादे याद दिलाने के लिए दिल्ली में डेरा डाल लेना और चार साल में मुकुल रॉय का बीजेपी से मन भर जाना, ममता और किसान नेताओं में बैठक होना, उद्धव की पीएम से मुलाकात और अब पवार और पीके की मैराथन बैठक। साफ है 2022 के यूपी, पंजाब चुनाव से लेकर 2024 के नेशनल इलेक्शन और महाराष्ट्र चुनाव की बिसात पर सब अपनी अपनी चालें चल रहे हैं।
सवाल है कि बंगाल चुनाव नतीजे के दिन आगे किसी भी दल के लिए चुनाव रणनीतिकार की भूमिका से तौबा करने का ऐलान कर चुके पीके की शरद पवार से लंबी बैठक के मायने क्या हैं। क्या प्रशांत किशोर एनसीपी या फिर महाविकास अघाड़ी सरकार के लिए रणनीति बनाएंगे?
या फिर शरद पवार जिस तेजी के साथ बंगाल जीतने के बाद ममता मोदी से मुकाबले को दिल्ली दौड़ को आतुर दिख रही उसी कड़ी में मराठा क्षत्रप पवार भी अपने लिए राष्ट्रीय भूमिका टटोलना चाह रहे हों क्योंकि कमजोर पड़ती कांग्रेस को विरोधी दलों का नेतृत्व सौंपने को न ममता तैयार होंगी और शायद पवार भी नहीं! ऐसे मे पीके की पंवार से मुलाकात के संकेत आने वाले दिनों में दिखने लगें तो अचंभित न होइए।
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