- पहाड़ पॉलिटिक्स में 2014 से मात खाती आ रही कांग्रेस 2022 में चाहती सत्ता में वापसी
- डॉ इंदिरा ह्रदयेश का अचानक चले जाना कांग्रेसी उम्मीदों को एक आघात है जिसकी भरपाई आसान न होगी
- 2022 बैटल को लेकर कांग्रेस की सियासी कश्ती पार लगाना अब पूरी तरह से हरदा-प्रीतम के हाथों में
देहरादून: 2017 में प्रदेश की सत्ता से बड़ी चोट खाकर रुखसत हुई कांग्रेस 2022 में फिर वापसी को बेक़रार नजर आती है। लेकिन एक तो 18 मार्च 2016 का पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की अगुआई में पालाबदल कांग्रेस को गढ़वाल में तगड़ा झटका दे गया जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है। उस पर बाद में ठीक 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का अपने बेटे के साथ बीजेपी में चले जाना कुमाऊं में भी कांग्रेस की दलित राजनीति को नुकसान पहुँचा गया।
हरीश रावत के अलावा कुमाऊं में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश ही वो चेहरा थी जो प्रदेश कांग्रेस के मंच पर चेहरों के अभाव से उपजे ख़ालीपन को भरती दिखती थी। अब एक तरफ सत्ता में वापसी की छटपटाहट और दूसरी तरफ बड़े चेहरों के संकट से जूझती कांग्रेस ने पहाड़ पॉलिटिक्स में अपना तीसरा सबसे मजबूत स्तंभ भी खो दिया है।
दरअसल, बहुगुणा, महाराज, हरक, आर्य जैसे चेहरों के अभाव में 2016-17 के बाद से कांग्रेसी राजनीति तीन चेहरों इंदिरा, प्रीतम और हरीश रावत के इर्द-गिर्द सिमटती चली गई है। अंदरूनी कलह से जूझती कांग्रेस के ये दिग्गज नेता भी बखूबी जान चुके थे कि कैंप वॉर चलता रहा तो 2022 में भी कांग्रेस का सत्ता से वनवास खत्म नहीं हो पाएगा। यही वजह रही कि पिछले दो हफ़्तों के भीतर दिल्ली में पार्टी नेतृत्व के साथ पहाड़ पॉलिटिक्स में कांग्रेस के तीनों दिग्गज हरदा, इंदिरा और प्रीतम आपस में साथ बैठकर बाइस बैटल की बिसात बिछाने में जुट गए थे लेकिन इंदिरा के आकस्मिक निधन से ऐसी तमाम तैयारियों को आघात पहुँचा है।
सवाल है कि साढ़े चार दशक से भी लंबे वक्त से कांग्रेसी राजनीति और पिछले 21 साल से उत्तराखंड कांग्रेस की एक छोर पर डटी इकलौती महिला नेत्री को खोने के बाद कांग्रेस 2022 की लड़ाई से कैसे उबर पाएगी। सदन से सड़क तक डॉ इंदिरा ह्रदयेश का स्पेस भर पाना प्रदेश कांग्रेस के लिए पहाड़ सरीखी चुनौती ही होगा।