दृष्टिकोण (हेमराज सिंह चौहान): उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने एम्स ऋषिकेश की शाखा कुमाऊं के ऊधमसिंहनगर में खोलने का ऐलान किया है। कुमाऊं में एम्स खोलने की मांग लंबे समय से की जा रही थी अब सरकार ने यहां नया एम्स तो नहीं खोला पर यहां के लोगों को एम्स के नाम एक सैटेलाइट सेंटर का तोहफ़ा देने का ऐलान जरूर कर दिया है।
दरअसल, सरकार के इस निर्णय को राजनीतिक एंगल से देखना ज़रूरी है। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि किसान आंदोलन ने केन्द्र की मोदी सरकार के साथ-साथ उत्तराखंड की धामी सरकार की हालत खराब कर रखी है। पहाड़ में इस आंदोलन का असर भले ही ना हो लेकिन ऊधमसिंहनगर में किसान आंदोलन का व्यापक असर है। तराई के कई इलाकों में किसान आंदोलन से उपजे गुस्से ने सरकार की नींद उड़ा रखी है। ऊधमसिंहनगर जिले से कुमाऊं की सबसे ज्यादा सीटें आती हैं। साल 2017 में बीजेपी को 70 में से 57 सीटें मिली थी और इसके पीछे इस जिले में पार्टी का शानदार प्रदर्शन भी एक वजह थी। पहाड़ प्रदेश में मोदी लहर ऐसी चली कि ऊधमसिंहनगर की नौ में से आठ सीटों पर कमल खिला और आलम यह रहा कि सिटिंग सीएम और कद्दावर नेता हरीश रावत किच्छा में लाइटवेट राजेश शुक्ला के हाथों हार बैठे।
अब 22 बैटल को लेकर नजारा पूरी तरह बदला नजर आ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह बन गया है तीन कृषि क़ानूनों और एमएसपी की गारंटी को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ 11 महीने से चला आ रहा किसान आंदोलन, जिसकी तपिश उत्तराखंड के हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जैसे मैदानी-तराई वाले जिलों में साफ-साफ दिख रहा है। यहां तक कि ऊधमसिंहनगर से लगे नैनीताल जिले की कुछ सीटों पर भी किसान आंदोलन का असर पड़ सकता है।
ऐसे में बीजेपी ने किसान आंदोलन के असर को खत्म करने के लिए और बढ़ते आक्रोश को कुछ हज तक दबाने के लिए इस ज़िले पर पूरा फोकस किया हुआ है। पहले बीजेपी ने उत्तराखंड के सीनियर नेताओं को दरकिनार करते हुए युवा चेहरे के नाम खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंकाया। इसके बाद सरकार ने एम्स ऋषिकेश का एक सेंटर ऊधमसिंहनगर में खोलने का फ़ैसला कर इसे कुमाऊं के लिए बड़ी सौगात करार दिया है। सच्चाई यह है कि अगर कुमाऊं में एम्स का सेंटर खोलना था तो वो किसी पहाड़ी जिले में खोलने का फैसला किया होता तो कहीं बेहतर होता। आखिर पहाड़ की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था को आईसीयू से निकालने की दरकार कहीं ज्यादा है। हल्द्वानी में सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज पहले से है और अभी तक पहाड़ से मरीजों को यहां रेफ़र किया जाता है। कुमाऊं के 5 पहाड़ी ज़िलों के अस्पताल महज रेफ़र सेंटर ही बने हुए हैं और अब यह कोई किसी से छिपी हुई बात भी नहीं है।
यहां के हॉस्पिटल दम तोड़ रहे हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत की तो बात करना ही बेकार है। इसलिए बीजेपी सरकार का यह फैसला पूरी तरह से राजनीतिक है और इसका जन-सरोकार और आरोग्य से कोई खास वास्ता नजर नहीं आता है। राज्य सरकार को पहले गांवों-कस्बों में स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं पर डटकर काम करना चाहिए। एम्स का सपना बेचकर महज उसका सैटेलाइट सेंटर खोलना कुमाऊं के लोगों के साथ छलावा है। आगे चलकर देखते हैं कि यह सेंटर कहां बनता है। लगता है कि ये रूद्रपुर या काशीपुर में कहीं खुलेगा और इसका फायदा पहाड़ और सीमांत जिंसों के लोगों को कम और मैदानी व पड़ोसी राज्य के सीमावर्ती जिलों को अधिक मिलेगा।
वैसे एक सच यह भी है कि कुमाऊं में ऋषिकेश एम्स का सैटेलाइट सेंटर खोलने का ऐलान जिस भुवनेश्वर AIIMS के बालासोर सैटेलाइट सेंटर की तर्ज पर हुआ है, ओडीशा में उस सैटेलाइट सेंटर का ऐलान यूपीए सरकार ने 2013 किया था, फिर पेट्रोलियम मंत्री रहते 2018 में धर्मेंद्र प्रधान ने शिलान्यास किया और अब कहीं जाकर यह सेंटर फ़ंक्शनल हुआ है। यानी चुनावी दौर में सैटेलाइट सेंटर का ऐलान कर दिया गया जरूर है लेकिन अभी इसके ऑपरेशन में आने में लंबा अरसा लगना बाकी है।
(लेखक दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।)